पुलिस अफसर हत्या : दूसरा पहलू
- डॉ वेदप्रताप वैदिक
मुरैना में होली के दिन हुई पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या ने सारे देश में सनसनी-सी फैला दी थी| माना यह जा रहा था कि वह किसी खनन-माफिया की करतूत है और यह नहीं हो सकता कि इस माफिया के मप्र सरकार के साथ सूत्र न जुड़े हों| यह कैसे हो सकता है कि एक मामूली ट्रैक्टर ड्राइवर एक पुलिस अफसर को कुचल कर मार डाले? कांग्रेस के कुछ प्रांतीय नेताओं ने टीवी चैनलों पर यह तक कह डाला कि खनन माफिया के तार सीधे मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के साथ जुड़े हैं| लेकिन अब अखबारों में जो तथ्य आ रहे हैं, उनसे सारे निष्कर्ष उल्टे पड़ते दिखाई पड़ रहे हैं| ट्रैक्टर चलाने वाले किसान मनोज गूजर ने माना कि नरेंद्र कुमार को उसी के ट्रैक्टर ने कुचला है लेकिन यह जान-बूझकर नहीं हुआ है| पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार ने मनोज पर पिस्तौल तानी और उसे रुकने के लिए कहा, लेकिन मनोज ने डर के मारे ट्रैक्टर तेजी से भगा लिया| इस पर नरेंद्र ने ऊपर कूदकर ट्रैक्टर का स्टीयरिंग व्हील पकड़ने की कोशिश की और वे फिसलकर नीचे गिर पड़े| इस हड़बड़ में वे कुचले गए| मनोज के भाइयों का कहना है कि वह अच्छे पुलिस अफसर थे और उनके उनके परिवार का कोई झगड़ा नहीं था| लोग अपना ट्रैक्टर इसलिए अंधाधुंध भगा ले जाते है कि पकड़े जाने पर पुलिस मोटी रिश्वत माँगती है|
जहाँ तक खनन माफिया की बात है, ट्रैक्टर चालक किसी का नौकर नहीं है| उसके अपने परिवार की काफी अच्छी खेती है| यह परिवार अपना दूसरा नया मकान बना रहा था| उसी के लिए वह अपने ट्रैक्टर पर पत्थर लादकर ले जा रहा था| पुलिस का कहना है कि यह संपन्न परिवार है और इसका अपराधों से दूर-दूर का भी संबंध नहीं रहा है| किसी माफिया की दलाली या नौकरी का सवाल तो उठता ही नहीं है|
यदि ये तथ्य सत्य है तो सारी घटना पर पुनर्विचार के लिए हमें विवश होना पड़ेगा, लेकिन पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार के बलिदान और उनकी बहादुरी के आगे सारे देश को नतमस्तक होना ही पड़ेगा| राज्य की संपदा की रक्षा के लिए वे अपनी जान पर खेल गए| मप्र सरकार को चाहिए कि स्व. नरेंद्र कुमार की स्मृति को अविस्मरणीय बनाए, उनके परिवार को असाधारण मुआवजा और उनके नाम से वार्षिक पुरस्कार प्रदान करें ताकि देश के पुलिए वाले वीर नरेंद्र बनने की कोशिश करें|
आपकी बात सही हो सकती है लेकिन अगर घर के लिये पत्थर ले जा रहा हो तो इसका मतलब उसका काम नाजायज नहीं होगा। फ़िर पुलिस को देखकर भागने की बात सही नहीं लगती। पूरी बात तो निष्पक्ष जांच से ही पता चलेगी।
जवाब देंहटाएंसंपादक जी,
जवाब देंहटाएंहर घटना के दो पहलू होते हैं.
हम तो वही पहलू उछालते है जो हमारे हित का और तथाकथित मानवीय मूल्यों से जुडा नज़र आये.
उछालने के चक्कर में सच्चाई कही दब के रह जाती है और समय के साथ अपना अस्तित्व खो बैठती है...मामला वक़्त के साथ रफा-दफा हो जाता है...बस.
अविनाश बागडे...
इस घटना के बारे में बिना सच जाने एक खास पार्टी के नेता ने सच जनता के सामने लाये बिना राजनीति करनी शुरु कर दी थी। पुलिस वाले सडको पर इन वाहनों को इतना सताते है कि वाहन चालक डर के मारे वाहन भगा लेते है लेकिन कुछ जान बूझ कर पुलिस वालों पर भी वाहन चढा देते है।
जवाब देंहटाएंएक अत्यंत बहादुर, समर्पित और काबिल नौजवान पुलिस अधिकारी नरेंद्र कुमार की मुरैना (मध्यप्रदेश) में खनन माफिया ने नृशंस हत्या कर डाली। सारा मामला दिल दहलाने वाला है, क्योंकि खनन माफिया का नृशंस शिकार बना शख्स कोई मामूली इंसान नहीं था, वरन् एक युवा आईपीएस अधिकारी था, जोकि अपने इलाके में खनन माफिया से कड़ी टक्कर लेने का निरंतर हौंसला प्रदर्शित कर रहा था। मध्य प्रदेश हुकूमत ने हत्या की वारदात होते ही इस घटना पर लीपापोती प्रारम्भ कर दी। बाद में मामले के अधिक तूल पकड़ जाने के पश्चात मुख्यमंत्री महोदय ने न्यायिक जाँच का हुक्म दिया। इस वारदात से कुछ समय पूर्व मध्यप्रदेश में पत्रकार चंद्रिका राय की परिवार सहित हत्या की खबर आयी थी तो इस हत्या की वजह भी साथ छपी थी। उस वक्त कहा गया था कि चंद्रिका राय की हत्या इसलिए की गयी, क्योंकि वह लगातार खनन माफिया के अवैध खनन संबंधी कारनामों को अखबारों में उजागर करते रहते थे। खनन माफिया तत्वों ने उनकी पत्नी और बच्चों की इसलिए हत्या की क्योंकि उनको खौफ़ था कि वे हलाक़त के चश्मदीद गवाह रहे और सब खिलाफ गवाही दे सकते हैं। चंद्रिका राय वस्तुतः ऐसे आठवें बदनसीब पत्रकार थे, जिनकी विगत चार वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में जिनकी हत्या खनन माफिया के द्वारा अंजाम दी गई। इन हत्याओं के विरोध में अनेक सशक्त आवाजें उठी हैं। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्केण्डेय काटजू ने इन हत्याओं की जांच के लिए एक तहक़ीकाती टीम का गठित की और मध्यप्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह टीम को तहक़ीकात में अपेक्षित सहयोग करे। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट इस तमाम वारदातों से खुद को स्तब्ध महसूस कर रहा है। फेडरेशन का कहना है कि इस तरह से तो निर्भीक पत्रकारिता गंभीर खतरे में पड़ जाएगी। क्या ये सभी बुलंद हुई आवाजें कुछ दिनों में खामोश हो जाएंगी और खनन माफिया का नृशंस खेल आगे और अधिक नृशंता के साथ जारी रहेगा। खनन माफिया का दुस्साहस तो इतना प्रबल है कि वह यदा कदा सीधे पुलिस दल पर भी हमला कर देता है। अब तो खनन माफिया एक युवा आईपीएस अधिकारी को मौत के घाट उतार चुके हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।