ब्रिटेन में क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन २०११ संपन्न
लन्दन/ 2 जुलाई 2011
लन्दन में दिनांक 24 से 26 जून, 2011 तक बर्मिंघम के एस्टन विश्वविद्यालय प्रांगण में यू. के. क्षेत्रीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मलेन का आयोजन विभिन्न संगठनों के सहयोग से किया गया. भारतीय उच्चायोग, लन्दन और प्रधान कोंसुलावास, बर्मिंघम के संरक्षण में गीतांजलि बहुभाषी साहित्यक समुदाय द्वारा गीतांजलि ट्रेंट, चौपाल, एचसीए वेल्स, सैंडवेल कन्फेडरेशन ऑव इंडियन्स, संत निरंकारी मंडल यूके, कथा यूके, भारतीय भाषा संगम, नेशनल काउंसिल ऑव हिन्दू प्रीस्ट्स, संस्कृति यूके, डीयूटी नीदरलैण्ड के सहयोग से सम्मलेन को सफल बनाया जा सका.
सम्मेलन का उदघाटन भारत के उच्चायुक्त नलिन सूरी ने किया. इस अवसर पर सैंडवैल की डिप्टी मेयर काउंसलर एनी शैकिल्टन, लॉर्ड तरसेम किंग, बेरनेस संदीप वर्मा, एस्टन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर जूलिया किंग, कोंसुल जनरल सी. गुरुराज राव, हरमोहिन्दर सिंह भाटिया उपासक और सैण्डवेल के पुलिस उपाधीक्षक श्री कैम्पबेल भी उपस्थित थे.
इस अवसर पर उपस्थित देश-विदेश से आए सैकड़ों प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए उच्चायुक्त महोदय ने कहा कि वे ब्रिटेन को केन्द्र में रखकर यूरोप में हिन्दी के प्रचार प्रसार को एक नई दिशा देना चाहते हैं. युवाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि वे विभिन्न सत्रों में खुले मन से हिस्सा लेते हुए सार्थक सुझाव दें. उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष से अटूट रूप में मौजूद भारतीय संस्कृति से जोड़ने वाली और 42 करोड़ भारतीयों की मातृभाषा हिन्दी को किसी भी स्थिति में नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता. हिन्दी शिक्षण में सूचना प्रौ़द्योगिकी के प्रयोग पर बल देते हुए उन्होंने यह संदेश भी दिया कि हमारी जिम्मेदारी अगली पीढ़ी तक अपने संस्कारों के संचार की भी है इसलिए भी हमें अपनी मातृभाषा एवं संस्कृति के प्रति सजग रहना होगा.
सम्मेलन के प्रारंभ में ‘हिन्दी की दशा और दिशा’ पर दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री कृष्ण दत्त पालीवाल ने कहा कि भाषा एक सांस्कृतिक पाठ है और हिन्दी सत्ता की नहीं, जन आंदोलन की भाषा है. निरंकारी संतगुरु श्री त्रिलोचनदास जी ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए वहां उपस्थित प्रतिभागियों का आह्वान किया. भारतीय उच्चायोग में मंत्री आसिफ इब्राहीम ने युवाओं को हिन्दी से जोड़ने के लिए युवाओं की रुचि और परिवेश को ध्यान में रखने का आह्वान करते हुए कहा कि युवाओं को आकर्षित करने वाली शायरी, फिल्म और संगीत आदि का प्रयोग करना भी भाषा को सिखाने का प्रभावी माध्यम हो सकता है.
सम्मेलन में ब्रिटेन से श्री जनार्दन अग्रवाल, श्रीमती कादम्बरी मेहरा, श्री महेन्द्र वर्मा, श्रीमती फ्रेंचिस्का ओरसिनी, श्रीमती उषा राजे सक्सेना, श्री वेद मित्र मोहला, डॉ. कविता वाचक्नवी, श्री ऐश्वर्ज कुमार, श्रीमती जय वर्मा, श्रीमती चित्रा कुमार, श्रीमती वंदना मुकेश शर्मा, श्रीमती शिखा वार्ष्णेय ने अलग अलग विषयों पर अपने शोध-पत्र पढ़े.
नीदरलैण्ड से प्रो. मोहन कांत गौतम, रुस से श्री बोरिस जखारिन और सुश्री लुडमिला खोखलोवा, डेनमार्क से श्रीमती अर्चना पेन्यूली, इज़राइल से श्री गेन्नादी श्लोम्पेर ने और भारत से श्री परमानंद पांचाल, श्री गगन शर्मा, श्री राकेश दुबे, डॉ ज्ञान सिंह मान, श्री राकेश पाण्डेय, सुश्री वर्तिका नन्दा ने अपने-अपने शोध-पत्र पढ़े. इसके अलावा भारत से ही श्री महेश भारद्वाज, श्री ओंकारेश्वर पांडेय, सुश्री रूही सिंह ने पैनल में हिस्सा लिया. स्थानीय युवा-वर्ग से श्री गुरप्रीत भाटिया, श्री प्रताप हिरानी, श्री नितेश शर्मा, सुश्री निवेदिता, श्री मुहम्मद और श्री रवि ने सक्रिय और सकारात्मक भागीदारी की.
सम्मेलन के दौरान डॉ अखिलेश गुमाश्ता द्वारा रामायण के आख्यान पर अंग्रेजी में लिखी गई `हिम्स ऑव हिमालयास' का, सामयिक प्रकाशन की पत्रिका ‘समीक्षा’ का, प्रवासी संसार पत्रिका के ‘प्रवासी कहानी विशेषांक’ का, सुश्री वर्तिका नन्दा के काव्य संकलन ‘मरजानी’ का और श्रीमती अरुणा सभरवाल के काव्य संकलन ‘बाँटेंगे चंद्रमा’ का लोकार्पण भी हुआ.
श्री केशरी नाथ त्रिपाठी जी की अध्यक्षता में आयोजित कवि सम्मेलन में भारत से डॉ. फरीदा सहित कई प्रतिष्ठित स्थानीय कवि-कवियित्रियों ने हिस्सा लिया. सांस्कृतिक कार्यक्रम का प्रारंभ नेहरू सेंटर लन्दन में द्वितीय सचिव श्री गौरी शंकर ने किया. भारत से श्रीमती विजया भारती और बर्मिंघम के आर्य समाज तथा अन्य स्थानीय संस्थाओं के कलाकारों ने लोकगीतों तथा सुन्दर नृत्यों की प्रस्तुतियाँ दीं.
विदेश मंत्रालय की उपसचिव सुश्री राकेश शर्मा ने भारत सरकार द्वारा हिन्दी के प्रचार प्रसार के संबंध में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं, प्रोत्साहनों, सुविधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. भारतीय उच्चायोग में हिन्दी और संस्कृति अताशे श्री आनन्द कुमार ने सम्मेलन के नोडल अधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
समापन समारोह में सभी वक्ताओं, हिन्दी सेवियों, स्वयंसेवकों, स्थानीय हिन्दी शिक्षकों को सम्मान स्वरूप प्रमाण पत्र प्रदान किए गए. कार्यक्रम के अंत में ब्रिटेन की सुश्री दिव्या शर्मा ने कालबेलिया नृत्य प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन, गीतांजलि बहुभाषी साहित्यिक समुदाय के अध्यक्ष और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार द्वारा किया गया.
ध्यातव्य है कि उद्घाटन सत्र में सम्मलेन की स्मारिका, सम्मलेन में प्रस्तुत किए गए सभी शोधपत्रों का पुस्तक के रूप में संकलन तथा सभी प्रपत्र प्रस्तोताओं की एक परिचय पुस्तिका का लोकार्पण भी उच्चायुक्त महोदय द्वारा संपन्न हुआ |
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आयोजन का रोचक विवरण शिखा जी के ब्लॉग पर भी मिला था. अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी.
जवाब देंहटाएंविवरण और चित्रण देख गर्व हुआ कि हिंदी-भारत भी इसमें शरीक है :)
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
काफी दिनों बाद आपको देखकर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र ,अनुपम प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी फोटोग्राफी हुई है आपके कैमरे द्वारा.
ब्रिटेन में हिन्दी सम्मलेन के बारे में अच्छी जानकारी दी है आपने.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.