कल रात रामलीला मैदान में जो रावणलीला हुई उस पर श्रेष्ठ बुजुर्ग कवि श्री उदय प्रताप सिंह जी की आज ही लिखी ग़ज़ल -
ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई
ऊंची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फरेब
आखिर में उसके पंख कतरती है सचाई
बनता है लोह जिस तरह फौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुजरती है सचाई
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई
जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर ,तो इक रोज़
बाग़े-बहार बन के सँवरती है सचाई
रावण क़ी बुद्धि बल से न जो काम हो सके
वो राम क़ी मुस्कान से करती ही सचाई
ग़ज़ल, आन्दोलन, सामयिक
रचना बहुत बदिया है . सटीक है . विषय से जुडी हुई है मार्मिक है. - वरुण इंगले
जवाब देंहटाएंsundar va satek rachanaa....
जवाब देंहटाएंबढिया कविता। उदय प्रताप सिंह जी को सुना था हैदराबाद में॥
जवाब देंहटाएंआकाश बड़ा सत्य है धरती है सचाई!/
जवाब देंहटाएंहर झूठ को पामाल भी करती है सचाई!!/
सुनते हैं सच्चे लोग कई मुल्क में हुए,/
क्यों आज भी जटायु सी मरती है सचाई!!!!!
[ऋषभ]
दुष्यंतकुमार ने पहले ही कहा है -
जवाब देंहटाएंतेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।