यह कैसे होगा ?
यह क्यों कर होगा?
नई-नई सृष्टि रचने को तत्पर
कोटि-कोटि कर-चरण
देते रहें अहरह स्निग्ध इंगित
और मैं अलस-अकर्मा
पड़ा रहूँ चुपचाप !
यह कैसे होगा ?
यह क्योंकर होगा ?
यथा समय मुकुलित हों
यथासमय पुष्पित हों
यथासमय फल दें
आम और जामुन, लीची और कटहल !
तो फिर मैं ही बाँझ रहूँ !
मैं ही न दे पाऊँ !
परिणत प्रज्ञा का अपना फल !
यह कैसे होगा ?
यह क्योंकर होगा ?
भौतिक भोगमात्र सुलभ हों भूरि-भूरि,
विवेक हो कुंठित !
तन हो कनकाभ, मन हो तिमिरावृत्त !
कमलपत्री नेत्र हों बाहर-बाहर,
भीतर की आँखें निपट-निमीलित !
यह कैसे होगा ?
यह क्योंकर होगा ?
- नागार्जुन
अच्छी प्रस्तुति ....बाबा नागार्जुन की कविता पढवाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंबाबानागार्जुन की कविता पर मुझे शायद टिप्पणी का हक़ नहीं है ,इसे पढवाने के लिये आपका आभार।
जवाब देंहटाएंनूतन वर्ष 2011 की शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट 1/1/11-1/11 की प्रथम वार्ता में शामिल है।
नये वर्ष में इंटरनेट से इंट्रेस्टिंग प्रवेश
जवाब देंहटाएंपेट्रोल पानी मिट्टी का तेल बचायेगा
जो आयेगा ग्यारह में आशीष भरपूर पायेगा
यह इंटरनेट है प्यारे
सदा ही यूं गुदगुदायेगा
10 का 11
11 का 111
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
जवाब देंहटाएंयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंपल पल करके दिन बीता दिन दिन करके साल।
नया साल लाए खुशी सबको करे निहाल॥
अनमोल रचना पढ़वाने हेतु शुक्रिया... नव वर्ष की हार्दिक सादर शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंजब पर्यावरण का दोहन शोषण होगा तो पेड भी मौसम के विपरीत चलेंगे ही.... आजकल ऐसा ही हो रहा है, न फूल समय पर खिल रहे हैं न फल समय पर आ रहे हैं :(
जवाब देंहटाएंmujhe apki ye rachna bahut achchhi lagi or asha h ke app future me bhi bhi esi rachna krte rahenge
जवाब देंहटाएंkripya aap banti chor ka follower na banen.
जवाब देंहटाएंaap jaisi sober aur intelectual lady uski follower ?? apni garima ka dhyaan rakhen plaese.
baba ko is tarah yaad karna bahut achcha laga
जवाब देंहटाएंsab tak ye rachna pahunchane k liye shukriyaa
जवाब देंहटाएं:-)
प्रभावकारी लेखन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंकृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
नागार्जुन जी की कविता पढवाने के लिये आप बहुत -बहुत धन्यवाद् .
जवाब देंहटाएंमेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
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