ब्रिटिश सेना के कमीशंड ऑफ़िसर कैप्टन अब्बास अली को १९४० में जापान के विरुद्ध युद्ध के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया भेजा गया था। किन्तु १९४४ में सिंगापुर में नेता जी के व्याख्यान को सुनने के पश्चात् ये "इंडीयन नेशनल आर्मी" में सम्मिलित हो गए।
इन्होंने नेता जी को बहुत निकट से देखा सुना है। उनसे हुई इस बातचीत में भी ये नेता जी के उस व्याख्यान की यादें दुहराते हैं, जो उन्होंने रंगून में दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह ज़फ़र की समाधि पर खड़े होकर दिया था।
इनका कहना है कि कथित विमान दुर्घटना में नेता जी के मारे जाने के दस दिन बाद ये निस्सन्देह नेता जी से मिले भी थे।
बाद में ब्रिटिश सेना द्वारा कोट मार्शल कर के कैप्टन अब्बास अली को मृत्युदण्ड (फाँसी) का आदेश सुनाया गया था, किन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् अन्य कई राजनैतिक बन्दियों की भाँति अगस्त १९४७ में इन्हें मुक्त कर दिया गया।
आज के भारत की दशा दिशा से खिन्न कैप्टन अब्बास अली से नेता जी से हुई भेंट व अन्य संस्मरण आप स्वयं हिन्दी में सुन सकते है -
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प्लेयर सौजन्य : विजय राणा
सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट....... ज़रा यह भी देखें !
जवाब देंहटाएंनेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
अगर हम(कांग्रेस) ये मान लें कि नेताजी दुर्घटना के बाद भी जिंदा थे तो हमारे (कांग्रेसी) नेताओं को कौन पुछेगा
जवाब देंहटाएंउस समय के नेताओं का अंग्रेजों के साथ जो गुप्त समझौता था, वो शायद जानबूझ कर किया गया था।
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