यशस्वी लेखक यशपाल से कौन हिन्दी का सुधी पाठक परिचित न होगा। उनके बृहद् उपन्यास ‘झूठा सच’ से लेकर ‘परदा’ तक के गद्य में जो जादुई भावोन्मेष की शक्ति है वह आलोचकों को समीक्षा के लिए ही नहीं अपितु साधारण पाठक को भी पुनर्पाठ के लिए लुभाती, उकसाती है।
मेरे लिए यशपाल का एक अर्थ और है, हिन्दी का वह प्रतिष्ठित लेखक जो पंजाब के भाषायी विभाजन के साथ हिमाचल में हिन्दी के लिए लड़ते एक अकेले लेखक ( मेरे पिताश्री श्री इन्द्रजीत देव) को दिए जाते सरकारी/ गैरसरकारी उत्पीड़न की सुध लेने सुन्दरनगर हमारे यहाँ आए थे। .... और जिनके सान्निध्य का सुअवसर अपने बालपने में ही मुझे मिला था। साथ ही जिनके ‘झूठा सच’ में कितनी बार अपनी बुआ, दादी, दादा और उनके तत्कालीन समय, समाज व परिवेश को जीवन्त होते देखने के यत्न किए हैं.....
खैर ... आप देखें उन्हीं यशपाल पर केन्द्रित/निर्मित यह वृत्त चित्र , जो ३ भागों में है -
भाग १
भाग २
भाग ३
thanks kavita jee
जवाब देंहटाएंआभार --
जवाब देंहटाएंएक अविस्मरनीय रचनाकार से
साक्षात्कार हुआ कविता जी
nice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राम त्यागी जी, लावण्या दी’ एवम् सुमन जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! इसे दिखाने के लिये शुक्रिया।
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