‘अदृश्य’ पदार्थ (डार्क मैटर) और ‘अदृश्य’ ऊर्जा (डार्क इनर्जी)






‘अदृश्य’ पदार्थ (डार्क मैटर) और ‘अदृश्य’ ऊर्जा (डार्क इनर्जी)
ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य (७)
गतांक से आगे 



इस प्रतिगुरुत्वाकर्षण जैसे बल को समझाने के लिये ही अदृश्य ऊर्जा की संकल्पना की गई है। किन्तु इसके साथ ही अदृश्य पदार्थ की भी संकल्पना की गई है। पहले हम अदृश्य पदार्थ पर चर्चा करें। अदृश्य पदार्थ क्या केवल कल्पना है या इसके कुछ ठोस प्रमाण भी हैं? जब कोई पिण्ड गोलाकार घूमता है तब उस पर अपकेन्द्री बल कार्य करने लगता है। इसी बल के कारण तेज मोटरकारें तीखे मोड़ों पर पलट जाती हैं, मोटरसाइकिल वाला सरकस के मौत के गोले में बिना गिरे ऊपर–नीचे मोटरसाइकिल चलाता है। इसी अपकेन्द्री बल के कारण परिक्रमा-रत पृथ्वी को सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अपनी ओर अधिक निकट नहीं कर पाती है, और वह अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा करती रहती है। जो अपकेन्द्री बल पृथ्वी के परिक्रमा–वेग से उत्पन्न होता है वह गुरुत्वाकर्षण बल का संतुलन कर लेता है। इसी तरह की परिक्रमा हमारा सूर्य 200 कि.मी.प्रति सैकण्ड के वेग से अन्य तारों के साथ अपनी मन्दाकिनी–आकाश गंगा– के केन्द्र के चारों ओर लगाता है। चूँकि यह सारे पिण्ड अपनी नियत कक्षाओं में परिक्रमा रत हैं अर्थात उन पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षण बल तथा उनके अपकेन्द्री बल में संतुलन है।



एक और विस्मयजनक घटना है। एक तारा और कुछ ग्रह मिलकर सौरमंडल (सोलार सिस्टम) के समान तारामंडल बनाते हैं; कुछ करोड़ों तारे मिलकर मन्दाकिनी बनाते हैं; कुछ मन्दाकिनियाँ मिलकर ‘स्थानीय समूह’ (लोकल क्लस्टर) बनाती हैं; ऐसे कुछ समूह मिलकर विशाल गुच्छ (बिग क्लस्टर) बनाते हैं; कुछ विशाल गुच्छ मिलकर मन्दाकिनि–चादर (गैलैक्सी शीट) बनाते हैं; और ऐसी चादरें मिलकर ब्रह्माण्ड बनाती हैं। हमारी मन्दाकिनी आकाश गंगा अपनी पड़ोसन एन्ड्रोमिडा तथा कोई पन्द्रह पड़ोसन छोटी मन्दाकिनियां मिलकर स्थानीय समूह बनाती हैं जो ‘कन्या’ (’वर्गो‘) नामक विशाल गुच्छ के किनार पर स्थित है। आकाश गंगा तथा एन्ड्रोमिडा एक दूसरे की ओर गतिमान हैं; स्थानीय समूह विशाल कन्या गुच्छ के केन्द्र की ओर गतिमान है। पूरा कन्या गुच्छ एक अन्य विशाल गुच्छ के साथ ‘विशाल आकर्षक’ नामक किसी अतुलनीय पदार्थ की ओर तीव्र गति से भाग रहा है। यह समस्त गतियाँ ‘प्रसारी’ गतियों के अतिरिक्त हैं, अर्थात प्रसारी गतियों के कारणों से इन गतियों को नहीं समझा जा सकता अथवा प्रसारी गतियों को इन गुरुत्वीय गतियों से नहीं समझा जा सकता। किन्तु इन दोनों गतियों को अलग से समझना आवश्यक है।



हबल के अभिरक्त विस्थापन का उपयोग कर किसी भी परिक्रमा रत पिण्ड का वेग जाना सकता है, और उस वेग का संतुलन करने के लिये आवश्यक गुरुत्वाकर्षण बल की गणना की जा सकती है। तत्पश्चात गुरुत्वाकर्षण पैदा करने वाले पदार्थ की भी गणना की जा सकती है। ऐसी गणनाएँ करने पर ज्ञात हुआ कि अन्तरिक्ष में विशाल पिण्डों के अपकेन्द्री बलों का सन्तुलन कर सकने वाली पदार्थ की जो मात्रा आवश्यक है, वह दृश्य पदार्थ की मात्रा से कई गुना अधिक है। अर्थात प्रसारी वेग की‌ तो बात ही न करें, यह तो अपकेन्द्री बल को भी नहीं समझा पा रहे हैं ! और चूँकि संतुलन कर सकने वाला वह पदार्थ हमें ‘दिख’ नहीं रहा है, इसलिये वह ‘अदृश्य पदार्थ‘ है। अन्य विधियों से भी यही निष्कर्ष निकलता है। यथा ब्रह्माण्ड में पदार्थ के घनत्व का आकलन करने के लिये वैज्ञानिक विशाल मन्दाकिनियों द्वारा उत्सर्जित प्रकाश ऊर्जा तथा उनके द्रव्यमान के अनुपात का उपयोग करते हैं। यह अनुपात भी दर्शाता है कि ब्रह्माण्ड में जितनी मात्रा में पदार्थ होना चाहिये उतना नहीं है। अतएव वैज्ञानिकों ने 1999 में उस पदार्थ को अदृश्य–पदार्थ की संज्ञा दी है।


गुरुत्वाकर्षण का लैंस
जिस तरह काँच के लैंस किरणों को केन्द्रित या विकेन्द्रित कर सकते हैं, उसी तरह अत्यधिक द्रव्यमान वाले पिण्ड अथवा पिण्डों का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र प्रकाश के लैंस की तरह कार्य कर सकता है, आइन्स्टाइन ने अपने व्यापक सापेक्षवाद में ऐसी भविष्यवाणी की थी। जिसके फलस्वरूप कोई मन्दाकिनी अधिक प्रकाशवान दिख सकती है, तथा एक पिण्ड के अनेक बिम्ब दिख सकते हैं। ‘नेचर’ पत्रिका के 18/25 दिसम्बर 2003 के अंक में एक प्रपत्र प्रकाशित हुआ है। इसमें स्लोन तंत्र (एस डी एस एस) की टीम ने रिपोर्ट दी है कि चार निकट दिखते हुए क्वेसार वास्तव में गुरुत्वाकर्षण लैंस के द्वारा एक ही क्वेसार के चार बिम्ब हैं। सामान्यतया क्वेसारों के बीच पाई जाने वाली दूरी अब तक अधिकतम 7 आर्क सैकैण्ड पाई गई है। इन चारों के बीच अधिकतम दूरी 14 आर्क सैकैण्ड है। इतनी अधिक दूरी के लिये जितना द्रव्य–घनत्व चाहिये वह दृश्य पदार्थ से नहीं बनता। अतएव वहाँ पर अदृश्य पदार्थ होना चाहिये जिससे इतना शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण लैंस बना है। और उसे ‘शीतल अदृश्य पदार्थ‘ होना चाहिये जिसका घनत्व ‘उष्ण’ अदृश्य पदार्थ से कहीं अधिक होता है। दिसम्बर 2003 तक अस्सी से अधिक गुरुत्वाकर्षी लैंस–क्वेसार खोजे जा चुके हैं। इस तरह के बड़े गुरुत्वाकर्षण लैन्स कम संख्या में अवश्य हैं किन्तु सिद्धान्त के अनुरूप ही अपेक्षित संख्या में हैं, और महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे दृश्य तथा अदृश्य पदार्थों के संबन्धों की खोज में सहायता मिलती है।



पदार्थों को जो दूरदर्शी उपकरण देखते हैं वे विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के केवल प्रकाश पट्ट का ही उपयोग नहीं करते, वरन रेडियो तरंगें, सूक्ष्म तरंगें, अवरक्त किरणें, परावैंगनी, एक्स, गामा किरणों आदि पूरे वर्णक्रम का उपयोग करते हैं। जब वैज्ञानिक ‘अदृश्य’ शब्द का उपयोग करते हैं तब वे इन सभी माध्यमों के लिये ‘अदृश्य’ शब्द का उपयोग करते हैं। पदार्थ वह है जो उपरोक्त उपकरणों की पकड़ के भीतर है। इसलिये ‘अदृश्य पदार्थ‘ पद के दोनों शब्दों में अन्तर्विरोध है एक तो पदार्थ है और फिर अदृश्य! इसका समन्वय आज ब्रह्माण्डिकी के लिये एक सबसे बड़ी चुनौती है। यद्यपि यह भी सत्य है कि दृश्य जगत की कार्यविधियाँ, यथा तारों, मन्दाकिनियों, ‘ब्लैक होल’ आदि के निर्माण, मूलभूत कणों के गुण इत्यादि वैज्ञानिकों को काफी सीमा तक ज्ञात हो चुके हैं। किन्तु दृश्य जगत ब्रह्माण्ड का मात्र 4 प्रतिशत है।



- विश्वमोहन तिवारी (पूर्व एयर वाईस मार्शल)





4 टिप्‍पणियां:

  1. हम अभी तक कितना कम जानते हैं अपने ब्रह्मांड के बारे में यह इस लेख को पढ़कर एक बार फ़िर अंदाजा लगा।

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  2. आप तीनों सुधी पाठकों के 'दृश्य' (उत्साहवर्धक) शब्दों से मुझे 'दृश्य' प्रसन्नता प्राप्त हुई है।
    बहुत धन्यवाद्

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  3. ये जो अपकेन्‍द्र बल, अभिकेंद्र और गुरूत्‍वाकर्षण बल हैं ....
    शायद ये ही हैं ब्रह़मा, विष्‍णु और महेश हैं

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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