व्यापक प्रौद्योगिकी और प्रयोजनमूलक हिन्दी
डॉ. ओम विकास
प्रौद्योगिकी और संस्कृति
मानव सभ्यता में बेहतर और गुणवत्ता के लिए सतत प्रतिस्पर्धात्मक विकास होते रहे हैं । शक्ति के मशीनीकरण से औद्योगिक क्रांति हुई, उत्पादन बढ़ा, टिकाऊ, सुन्दर उत्पाद कम कीमत पर सुलभ हुए । पहाड़ में सुरंग बनाकर नदी का प्रवाह मोड़ना संभव हुआ । ट्रेन, बस, वायुयान यातायात के साधन सुलभ हुए । बिजली के अविष्कार से प्रकाश मिला, और ऊर्जा का स्रोत भी । कोयला, पेट्रोलियम ईंधन और बिजली ऊर्जा के स्रोत बने । परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन सस्ता हुआ । शक्ति के मशीनीकरण से अन्य नए-नए अविष्कारों के लिए अवसर खुले । लेन-देन की गणना की मशीनें बनीं । ट्रांजिस्टर के अविष्कार से कंप्यूटर बने । कालांतर में इनका आकार छोटा होता गया । इनकी गणना शक्ति (प्रोसेसिंग पावर) और स्मृति कोश (मेमोरी) प्रति वर्ष बढ़ती गई । भविष्य में आज से 10 साल बाद आज के मूल्य पर ही प्रोसेसिंग पावर 100 गुणी, मेमोरी 1,000 गुणी, बैंडविड्थ 10,000 गुणी मिल सकेगी । 1970 के दशक में कंप्यूटर का प्रयोग हर क्षेत्र में संभव बनाकर उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ा दिया । सूचना का महत्व इस कदर बढ़ा कि डिजिटल इकोनोमी (सूचना-परक अर्थव्यवस्था) और अब नॉलेज इकोनोमी (ज्ञान-परक अर्थव्यवस्था) विश्व अर्थ-व्यवस्था की आधार स्तम्भ बनी है । टैक्नोलॉजी में बदलाव तेजी से हो रहे हैं - न्यूनतर आकार और बृहत्तर क्षमता के बेहतर उत्पाद कम कीमत पर सुलभ हो रहे हैं, आम आदमी तक की पहुँच में आने लगे हैं । निर्विवाद है कि आधुनिक तकनीकी उत्पादों से समाज में जीवंतता आई है, गति भी बढी़ है, और नए ढंग से कुछ सोचने और करने की प्रवृत्ति भी जगी है । मोबाइल सैल फोन से ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहे हैं । टी.वी., रेडियो और अब इंटरनेट से देशी और विदेशी जानकारी आसानी से ले पा रहे हैं । जानकारी का आदान-प्रदान कंप्यूटर से सुगम बनता जा रहा है । अलबत्ता अपनी भाषा में कंप्यूटर के प्रयोग का प्रशिक्षण आवश्यक है ।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उत्तरोत्तर विकास और प्रचलन से जीवन स्तर में सुधार हुआ । मानव-मशीन की परस्परता और निर्भरता बढ़ रही है । लेकिन मानव-मानव संबंधों में शिथिलता आ रही है । मानव शक्ति और मानव गणना की क्षमता की अपेक्षा मशीनें कई गुणा समर्थ होती जा रही हैं। बढ़ती बेरोजगारी परोक्ष परिणाम है । नई सोच की जरूरत है, जिससे मानव को रचनात्मकता और नवाचार में मशीन की मदद आसानी से मिल सके । प्रौद्योगिकी और संस्कृति (Technology and Culture) का वृहद क्षेत्र प्रशस्त किए जाने की आवश्यकता है । संस्कृति समाज में व्यवहृत ज्ञान, विज्ञान, कला, संगीत, जीवन पद्धतियाँ, वैचारिक दर्शन और सामाजिक क्रियाकलापों की समष्टिगत अभिव्यंजना है । संस्कृति के इन पक्षों को प्रबल बनाने में टैक्नोलॉजी अर्थात् प्रौद्योगिकी / तकनीकी की अहम भूमिका होगी । प्रौद्योगिकी अथवा तकनीकी के अनेक प्रयोग क्षेत्र हैं - उद्योग, वाणिज्य, व्यापार, बैंक, यातायात, मीडिया, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन इत्यादि। उनमें भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप तदनुसार होगा ।
भारत में सकल अग्र शिक्षा अनुपात (18-24 आयु वर्ग में) GER 12.9% है, विश्व औसत GER 26% है , USA में 34% . भारत की 113 करोड़ जनसंख्या में 70 करोड़ कम आय की श्रेणी में हैं, 30 करोड़ मध्यम आय वर्ग में है, 7.5 करोड़ ही कॉलेज तक पहुँच पाते हैं । 75% गरीब गाँवों में रहते हैं । भारत में गरीब 37.2% हैं (41.8% गावों में, 25.7% शहरों में) । मानव विकास सूचकांक (HDI) भारत का 0.595, चीन का 0.745, यूएसए का HDI 0.939 . HDI की गणना औसत आयु, ज्ञान और आय के आधार पर करते हैं (World Economic Forum: Global Competitiveness Report, 2003-04). NASSCOM रिपोर्ट के अनुसार केवल 15-20% इंजीनियरिंग ग्रेज्युएट इंडस्ट्री में काम करने लायक होते हैं । शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव है । टेक्नीशियन स्तर पर गुणवत्ता निम्नतर है। भारत में साक्षरता कम है, प्रतिद्वंदता और उद्यमता की भी कमी है ।
आधुनिक भारत में तकनीकी विकास तेजी से किए जाने के लिए अंग्रेजी को संबल बनाया गया। गैर सरकारी संस्था ‘प्रथम’ की वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट, 2009 में 6-14 आयु वर्ग के 7 लाख ग्रामीण बच्चों के सर्वेक्षण के अनुसार दाखिले बढ़े । लेकिन उपस्थिति 75% रही । गुणा-भाग का सरल गणना कौशल (मैथ्स) में गिरता जा रहा । इंग्लिश ज्ञान कक्षा-5 में 25.7% ही सरल वाक्य पढ़ सकते हैं । सर्वोच्च न्यायालय ने भी प्राथमिक शिक्षा मे इंग्लिश ज्ञान की कमी पर चिंता जतायी है (Mint & Times of India,16 जनवरी 2010) । विडम्बना है कि लोक भाषा ज्ञान, वैज्ञानिक प्रवृति और विश्लेषण क्षमता के बारे में ‘प्रथम’ का सर्वेक्षण मौन है ।
लोक भाषा हिन्दी लोक कथा, कहानी, कविताओं तक सीमित रह गई । अखबार की हिन्दी भी कुछ अंग्रेजी जानने वालों को ही समझ आती है । नीति निर्माता कहते हैं कि हिन्दी तकनीकी शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए समर्थ नहीं है । लेकिन राजनीति स्तर पर हिन्दी का ढ़ोल पीटने के लिए अलग-थलग प्रशासनिक संस्थाएं हैं, लेकिन उनमें तालमेल नहीं, राष्ट्रीय नीति में समवेत स्वर होकर हिन्दी की सामर्थ्य का दावा नहीं कर पाते । इससे बहुसंख्य आम आदमी असहाय है, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नए अनुसंधानों के बारे में सामान्य जानकारी से भी वंचित है । प्रौद्योगिकी की व्यापकता उद्योग, वाणिज्य, बैंक, व्यापार, यातायात, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, पर्यटन, मीडिया, इत्यादि सभी क्षेत्रों में है । प्रौद्योगिकी के प्रयोग क्षेत्र में प्रयोजन के अनुसार भाषा का स्वरूप - शब्द भंडार, प्रयुक्तियाँ आदि विकसित होते हैं ।
3 जनवरी 2010 को माननीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 97वें इंडियन साइंस कांग्रेस अधिवेशन के उद्घाटन भाषाण में कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं । अधिक महिलाएँ वैज्ञानिक बनें, ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन बनाएँ, सौर ऊर्जा को बढ़ाएँ; स्वास्थ्य, जल, खाद्यान्न सुरक्षा, यातायात, सार्व. ढ़ांचा आदि के लिए समुचित तकनीकी विकसित करें । आम आदमी की भागेदारी को ध्यान में रखकर तीन मुद्दे प्रमुख हैं । इनके लिए हमारी लोकभाषाओं में पर्याप्त ज्ञान-सामग्री हो, शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधा हो ।
1. ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन बनाना । इसके विशद् अभिप्राय है कि ब्रेन ड्रेन अर्थात् जो प्रतिभा विदेशों को पलायन कर गईं, और ब्रेन ड्रॉप अर्थात् जो प्रतिभा देश में ही कुंठित रह गईं, दोनों को ब्रेन गेन अर्थात् प्रतिभा-पुंज बनाकर अग्रणी भारत के निर्माण में लगाना । टेक्नीशियन स्तर पर गुणवत्ता निम्नतर है । ब्रेन ड्रेन की अपेक्षा ब्रेन ड्रॉप अर्थात् कुंठित प्रतिभा बहुत अधिक है । चिंता का विषय है । ब्रेन ड्रॉप को लोकभाषा के माध्यम से प्रशिक्षण देकर ही ब्रेन गेन में बदल सकते हैं ।
2. विज्ञान में महिलाएँ रूचि लें, उनमें वैज्ञानिक सोच और अविष्कारोन्मुखी प्रवृत्ति को पनपाएँ, बढ़ावा दें। यह कार्य भी लोकभाषा के माध्यम से ही संभव है ।
3. सरकार ने 2010-2020 दशक को नवाचार दशक ( डिकेड ऑफ इन्नोवेशन ) घोषित किया है । इन्नोवेशन आलीशान प्रयोगशालाओं में डिग्री होल्डरों तक ही सीमित न हो । इन्नोवेशन सार्वभौमिक प्रक्रिया है, कहीं ही, कोई भी इसमें योगदान कर सकता है- किसान भी, मजदूर भी, गाँव की महिला भी । आम आदमी को नवाचारयुत अविष्कारोन्मुखी बनाना लोकभाषा के माध्यम से ही संभव है ।
लगभग 60 प्रतिशत लोग हिन्दी में तकनीकी काम सीख सकते हैं, जानकारी का आदान-प्रदान कर सकते है । प्रयोजन के अनुसार भाषा का शब्द भंडार, प्रयुक्तियाँ और बहु लिपि समावेश नीति निर्धारित करते हैं । ऐसा न होने से मशीन या टूल्स पर प्रशिक्षण रटन्त होगा, वैज्ञानिक सिद्धांतों की समझ न हो सकेगी । इससे उनमें इन्नोवेशन करने की क्षमता भी नगण्य होगी । नवाचार दशक की परिकल्पना कोरी कल्पना भर रह जाएगी । सरकार ने संकल्प लिया है, साधन और अवसर भी उपलब्ध कराने को कटिबद्ध है । लेकिन दायित्व हमारा है लोकभाषा को विज्ञान सम्मत बनाने का, व्यवसाय परक शब्द भंडार और प्रयुक्तियाँ तैयार करने का । आज के संदर्भ में लोकभाषा हिन्दी के प्रयोजनमूलक स्वरूप को सबल बनाने की आवश्यकता है ।
आम आदमी के योगदान से सकल नवाचार सूचकांक (ग्रॉस इन्नोवेशन इंडेक्स) को पूर्णांक बनाना संभव है । इस प्रतिभा के बल पर भारत को 2020 तक विश्व-अग्रणी बनाने का संकल्प साकार हो सकता है ।
दृष्टांत - जापानी भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप
जापान विश्व की प्रमुख ‘आर्थिक शक्ति’ के रूप में उभर चुका है । टैक्नोलॉजी व्यापार का घरेलू बाजार भी सशक्त है । लेकिन ज्ञातव्य है कि जापान में अंग्रेजी का प्रयोग कार्य-व्यवहार में नहीं होता है। अंग्रेजी का प्रयोग केवल निर्यात संबंधी व्यापार तक सीमित है । जापानी लोग अंग्रेजी न जानने पर अपने को हेय नहीं समझते । उन्हें जापानी भाषा, जापानी कार्य-प्रणाली और जापानी गुणवत्ता पर गर्व है । जापानी मैनेजमेंट पश्चिमी देशों में शोध और व्यवहार का विषय बन गया हैं । एयरपोर्ट, बैंक, रेलसेवा, विपणन (रिटेल व डिस्ट्रीब्यूशन), स्वास्थ्य केन्द्रों, कारखानों और कार्यालयों आदि सभी स्थानों पर जापानी भाषा में ही काम होता है और जापानी भाषा में ही उत्पादकता बढ़ाने वाले कंप्यूटर आदि मशीनों का प्रयोग होता है । विज्ञान और टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास एवं शोध कार्य के प्रकाशन मूलत: जापानी भाषा में किए जाते हैं । उनका मानना है कि 90 प्रतिशत काम जापानी लोगों के द्वारा और उनके बीच होता है, जो जापानी भाषा में ही सहज, सुगम और सस्ता होता है । बहुत कम काम रह जाता है जिसे अनुवादकों की सहायता से पूरा करते हैं । ऐसा करना व्यावहारिक दृष्टि से आसान है और आर्थिक दृष्टि से भी किफायती है।
जापान में जापानी भाषा का व्यवहार भी उदाहरणीय है । जापानी भाषा में जापानी सोच और परंपरा से जुड़े मूल शब्दों को हीरागाना लिपि में लिखते हैं, विदेशी मूल के शब्दों को काताकाना लिपि में, और चीन से प्रभावित संकल्पनाओं को चीनी रूपाक्षरों अर्थात् कांजी (लिपि) में लिखते हैं । तीन लिपियों का संगम - स्वदेशी, विदेशी और पड़ोसी – प्रगत देश की संस्कृति की अभिव्यक्ति का अनूठा संगम है । इससे राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा होती है, विदेशी ज्ञान को विदेशी पहचान के साथ अपने ढंग से आत्मसात करने का प्रयास होता है । चीनी प्रभाव से संकल्पनाओं को कांजी रूपाक्षरों के रूप में रखकर स्वतंत्र और हीरागाना से संयुक्त अभिव्यक्ति देते हैं । इन तीन लिपियों के अतिरिक्त अंग्रेजी के संक्षोपाक्षरों, जैसे WHO, UNDP, WIPO, को रोमन में लिखते हैं । भाषा का यह मिला-जुला स्वरूप उद्योगों और व्यापार को अधिकाधिक गतिमान बनाने में सहायक सिद्ध होता है ।
जापान में जापानी भाषा का व्यवहार भी उदाहरणीय है । जापानी भाषा में जापानी सोच और परंपरा से जुड़े मूल शब्दों को हीरागाना लिपि में लिखते हैं, विदेशी मूल के शब्दों को काताकाना लिपि में, और चीन से प्रभावित संकल्पनाओं को चीनी रूपाक्षरों अर्थात् कांजी (लिपि) में लिखते हैं । तीन लिपियों का संगम - स्वदेशी, विदेशी और पड़ोसी – प्रगत देश की संस्कृति की अभिव्यक्ति का अनूठा संगम है । इससे राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा होती है, विदेशी ज्ञान को विदेशी पहचान के साथ अपने ढंग से आत्मसात करने का प्रयास होता है । चीनी प्रभाव से संकल्पनाओं को कांजी रूपाक्षरों के रूप में रखकर स्वतंत्र और हीरागाना से संयुक्त अभिव्यक्ति देते हैं । इन तीन लिपियों के अतिरिक्त अंग्रेजी के संक्षोपाक्षरों, जैसे WHO, UNDP, WIPO, को रोमन में लिखते हैं । भाषा का यह मिला-जुला स्वरूप उद्योगों और व्यापार को अधिकाधिक गतिमान बनाने में सहायक सिद्ध होता है ।
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टूरिस्ट डायरी उपलब्ध हैं: फ्रैंच से रोमन जापानी, जर्मन से जापानी, अंग्रेजी से जापानी आदि । विदेशियों को आपानी अध्ययन सुगम बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिक्शनरी हैं जिनमें 220,000 या अधिक मूल प्रविष्टियाँ और उनके संदर्भगत अर्थ है । इलेक्ट्रॉनिक डिक्शनरी प्रयोग क्षेत्र विषयक भी हैं । विदेशियों को उद्योग-व्यापार परक जापानी भाषा प्रशिक्षण AOTS संस्था के द्वारा विदेशों में आयोजित किए जाते है । उत्पादकता संवर्धन, बेहतर प्रबंधन, अलग-अलग दूरस्थ स्थानों पर समकालिक समन्वयन के लिए कंप्यूटर का प्रयोग व्यापक बन गया है । इन सभी में जापानी भाषा में सूचना संसाधन करते हैं । कार्यालय के अंदर इंट्रानेट और दूरस्थ कार्यालयों के बीच इंटरनेट पर संदेश, फाइल आदि का आदान-प्रदान जापानी भाषा में ही करते हैं । वेबसाइट पर कंपनी-सूचना जापानी भाषा में होती है । इस प्रकार जापानी भाषा के प्रयोजनमूलक स्वरूप को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर समकालिक आधार पर कम कीमत पर उपलब्ध कराया गया है । टैक्नोलॉजी का विकास विभिन्न देशों में बहुत तेज गति से हो रहा है, इसकी अद्यतन जानकारी का जापानी अनुवाद तीन माह के अंदर उपलब्ध कराते है । जानकारी ‘बिजनेस’ का अंग है, इसलिए इसका मूल्य है और इस प्रकार ‘अनुवाद-इंडस्ट्री’ चलती है ।
जापान के समान फ्रांस, जर्मनी देशों में भी टैक्नोलॉजी और व्यापार का विकास उनकी अपनी भाषाओं में ही हो रहा हैं । अलबत्ता उनकी भाषा की लिपि रोमन है, इसलिए तकनीकी दृष्टि से व्यवहार में सरल है । लेकिन उनका यूरोपियन कमीशन और आर्थिक संघ सभी भाषाओं के सामान व्यवहार को बढ़ावा देता है । पारस्परिक मशीनी अनुवाद को भी बढ़ावा मिला है । इन भाषाओं के प्रयोजनमूलक स्वरूप इंटरफेस बनाने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं ।
अंग्रेजी का प्रयोजनमूलक प्रसार
राजनीतिक एवं औपनिवेशिक विस्तार से अंग्रेजी को मान्यता मिली । बहुसंख्यक समाज के लिए प्रयोजनमूलक अंग्रेजी को बढ़ावा दिया गया, अंग्रेजी का प्रयोग उत्पादकता बढ़ाने और एकरूपता लाने के उद्देश्य से किया गया । कालांतर में अंग्रेजी प्रयोग की बारंबरता सामाजिक स्वीकृति और सुगमता में बदलने लगी । ब्रिटिश काउन्सिल ने प्रयोजनमूलक अंग्रेजी के विकास और प्रसार के लिए महत्वपूर्ण योजनाएँ चलाई हैं । ‘पुस्तक-से-पोर’ नीति के अंतर्गत मोटी पुस्तकों की बृहद जानकारी को डिजिटल रूप में अंगुली के पोर पर संक्षिप्त रूप में लाने के प्रयास किए गए । संक्षिप्त डिक्शनरी, नर्सिंग शब्दावली, इलेक्ट्रॉनिक शब्दावली, विज्ञान शब्दावली, तकनीकी लेखन आदि विविध प्रयोजनमूलक शब्दकोश वेब पर उपलब्ध हैं । प्रयोजनमूलक अंग्रेजी सीखने के कोर्स भी आयोजित किए जाते हैं ।
हिन्दी के लिए सुगम सूचना टैक्नोलॉजी
बेहतर प्रस्तुति, संग्रह, उत्तरोत्तर संशोधन सुविधा, शैली परिष्कार, तुलनात्मक विश्लेषण, अनुवाद-स्वरूप सूचना टैक्नोलॉजी, अर्थात् कंप्यूटर, कम्यूनिकेशन और (मल्टीमीडिया) कंटेंट की संगम टैक्नोलॉजी के प्रयोग से संभव हो सकते हैं । हिन्दी में शब्द संसाधन संभव है, डाटाबेस बनाए जा सकते हैं । हिन्दी में विविध फौंट चुनकर आकर्षक प्रकाशन किया जा रहा है, सीमित स्तर पर कंप्यूटर से अनुवाद प्रारूप तैयार किए जा सकते हैं । हिन्दी के कंप्यूटर के संदेश देश-विदेश में भेजे जा सकते है । हिन्दी के कंप्यूटर, इलेक्टॉनिक डायरी, प्रिंटर, वर्ण पहचान यंत्र आदि उपलब्ध हो रहे है । आवश्यकता है इन यंत्रों के प्रयोग संवर्धन की, जिससे और बेहतर टैक्नोलॉजी का विकास संभव हो और हिन्दी लेखन में सृजनात्मकता और शैली सौष्ठव बढे़, संप्रेषणीयता और रोचकता बढ़े ।
टैक्नोलॉजी ट्रांसफर (अंतरण), टैक्नोलॉजी व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में हिन्दी के व्यवहार संवर्धन में अंग्रेजी-हिन्दी मशीनी अनुवाद प्रणाली महत्वपूर्ण सिद्ध होगी । हिन्दी में विविध फौंटों के साथ प्रकाशन-सॉफ्टवेयर पैकेज भी उपलब्ध हैं जिनमें सुंदर, सस्ता, शीघ्र पकाशन संभव हो गया है । अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में भी अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, जापानी, रूसी आदि विदेशी भाषाओं की तकनीकी और व्यापारिक ज्ञान सामग्री को अधिकांश भारतीयों तक हिन्दी के माध्यम से पहुँचाना युक्ति संगत होगा । संयुक्त राष्ट्र संघ में सूचना टैक्नोलॉजी के माध्यम से हिन्दी को सार्थक स्थान दिलाया जा सकता है । विश्व के कई देशों में बसे प्रवासी भारतीयों को हिन्दी के लिए उपलब्ध सूचना टैक्नोलॉजी की जानकारी पहुँचाना भी उपयोगी होगा ताकि वे कंप्यूटर पर हिन्दी में शब्द संसाधन, डाटाबेस प्रबंधन, प्रकाशन, पेजन आदि कर सकें । इसके अतिरिक्त मल्टीलिंग्वल मल्टीमीडिया में और कल्पायन ( Semantic Web ) इंटरनेट पर हिन्दी प्रयोग संवर्धन के लिए विकास कार्य किए जाएँ ।
टैक्नोलॉजी ट्रांसफर (अंतरण), टैक्नोलॉजी व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में हिन्दी के व्यवहार संवर्धन में अंग्रेजी-हिन्दी मशीनी अनुवाद प्रणाली महत्वपूर्ण सिद्ध होगी । हिन्दी में विविध फौंटों के साथ प्रकाशन-सॉफ्टवेयर पैकेज भी उपलब्ध हैं जिनमें सुंदर, सस्ता, शीघ्र पकाशन संभव हो गया है । अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में भी अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, जापानी, रूसी आदि विदेशी भाषाओं की तकनीकी और व्यापारिक ज्ञान सामग्री को अधिकांश भारतीयों तक हिन्दी के माध्यम से पहुँचाना युक्ति संगत होगा । संयुक्त राष्ट्र संघ में सूचना टैक्नोलॉजी के माध्यम से हिन्दी को सार्थक स्थान दिलाया जा सकता है । विश्व के कई देशों में बसे प्रवासी भारतीयों को हिन्दी के लिए उपलब्ध सूचना टैक्नोलॉजी की जानकारी पहुँचाना भी उपयोगी होगा ताकि वे कंप्यूटर पर हिन्दी में शब्द संसाधन, डाटाबेस प्रबंधन, प्रकाशन, पेजन आदि कर सकें । इसके अतिरिक्त मल्टीलिंग्वल मल्टीमीडिया में और कल्पायन ( Semantic Web ) इंटरनेट पर हिन्दी प्रयोग संवर्धन के लिए विकास कार्य किए जाएँ ।
हिन्दी में ई-मैग्जीन भी आने लगी हैं, कुछ मासिक भी हैं । ब्लॉग, फेस बुक, ट्विटर, ऑर्कट ने भूले बिसरे, दूरस्थ जनों को नजदीक ला दिया है । प्राय: लोग ‘कंप्यूटर पर हिन्दी’ को ‘तकनीकी हिन्दी’ से भ्रमित कर बैठते हैं । लेकिन कंप्यूटर मात्र एक सहायक उपादान है, उत्पादकता उन्नायक टैक्नोलॉजी है । कंप्यूटर प्रयोग की जानकारी सभी प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रमों में बहुत उपयोगी सिद्ध होगी ।
प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप
साहित्यिक हिन्दी से इतर प्रयोग-क्षेत्र के अनुसार प्रयोजनमूलक हिन्दी का विकास और व्यवहार टैक्नोलॉजी सघन अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है । ‘सबके लिए सब कुछ’ की भाषायी नीति से काम नहीं चलेगा । ‘जैसी माँग वैसी भाषा’ की नीति के अनुसार प्रयोजनमूलक हिन्दी का विकास, व्यवहार, शिक्षण, प्रशिक्षण किए जाने की आवश्यकता है ।
प्रयोजमूलक हिन्दी का स्वरूप कैसा हो ? सरल और सर्वग्राह्य हो । दिल्ली में सरल हिन्दी का अभिप्राय होता है येन केन प्रकारेण अंग्रेजी- उर्दू शब्दों का बाहुल्य । शैली, भाषा-सौष्ठव और संप्रेषण के आधार पर इस मिश्रण की कोई कसौटी नही है । ऐसी भाषा महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल, कर्नाटक, केरल आदि के लोगों को सुगम हो, ऐसा भी नहीं है । आसानी से समझे जाने वाले संस्कृत के तत्सम, तद्भव अथवा अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग और प्रांत विशिष्ट शब्दों का समावेश बहुग्राह्य होगा । अंग्रेजी के संक्षेपाक्षर (WHO, WIPO, WTO, UNDO, IQ आदि), रासायनिक फार्मूले, (H2O, CH3, CUSO4 आदि), अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मापन संक्षेपाक्षर ( Hz, Mbps, KB आदि ) और विदेशी रोमन आधारित विशिष्ट शब्द रोमन में ही लिए जाएँ । संक्षेपाक्षरों का देवनागरीकरण शब्द विस्तार में सहायक नहीं होगा । प्रयोग क्षेत्र की विशिष्ट शब्दावली और अभिव्यक्ति-पैटर्न के प्रयोग से कम से कम समय में संप्रेषण-प्रभावी प्रस्तुति का आकर्षक प्रिंट मिल सके । संप्रेषण और प्रस्तुति की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया जाए ।
समाज, टैक्नोलॉजी, राजतंत्र और व्यापार के प्रयोग क्षेत्र के अनुसार प्रयोगजनमूलक हिन्दी के प्रमुख भेद इस प्रकार हैं:
1. मीडिया और जन संचार की हिन्दी,
2. तकनीकी हिन्दी,
3. प्रशासनिक हिन्दी और
4. वाणिज्यिक हिन्दी ।
मीडिया से तात्पर्य है अखबार, विज्ञापन, फिल्म, टी.बी. (दूरदर्शन), रेडियों, इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन, इंटरनेट आदि। इसका उद्देश्य है कम शब्दों में तुरंत प्रभाव। सामान्यत: इस हिन्दी की विधा स्थायी नहीं हैं, परिवर्तनशील है । भाषा शैली और शब्दों का सातत्व भी प्रधान नहीं है जिससे समाज पर बिनबोझिल प्रभाव हो । यदि विज्ञापन कंपनियों को सही, सामयिक दिशा व सहयोग मिल जाए तो फिल्मों की भांति इनका भी महत्व है हिंदी को सहज ग्राह्य बनाने में ।
विज्ञापन की भाषा उत्पाद-प्रधान होती है, जबकि पत्रकारिता / जन संचार की भाषा संप्रेषण प्रधान होती है और नई टैक्नोलॉजी और उत्पादों के प्रति समाज के ग्राह्यता स्तर के अनुसार परिवर्तनशील होती है । समाज ज्यों-ज्यों टैक्नोलॉजी को आत्मसात करता जाता है, जन संचार की भाषा भी त्यों-त्यों परिष्कृत और परिपक्व होती जाती है।
तकनीकी हिन्दी में अनुवाद की शुद्धता, विषय की जानकारी, स्पष्ट अभिव्यक्ति और संप्रेषणीयता महत्वपूर्ण होते है । विज्ञान और टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में सूचना टैक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, मटीरियल साइंस, मैन्यूफैक्चरिंग साइंस, जेनेटिक इंजीनियरिंग इत्यादि नए विषय विकसित होते जा रहे हैं । इस प्रकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुवाद नितांत आवश्यक हो गया है । अनुवाद की गुणवत्ता बनाए रखना भी जरूरी है । बहुधा अटपटा अनुवाद दिखाई देता है, जिसमें शब्दानुशब्द पर बल दिया जाता है, प्राय: प्रयोक्ता-परिवेश से मेल नहीं खाता, भाव और संदर्भ उपेक्षित रहते हैं । ऐसे अनुवाद की संप्रेषणीयता और तदनुसार उपादेयता बहुत कम होती है । तकनीकी अनुवाद इंटेलीजेंट ट्रांसलेशन हो, जो सुबोध, संप्रेषणीय और रोचक हो । मशीन सह अनुसृजन (IMtHT : Integrated Machine translation and Human Transcreation) से कम समय में सुबोध अनुसृजन संभव है ।
राजतंत्र में प्रशासनिक हिन्दी राजभाषा अधिनियम के अंतर्गत प्रयोजनमूलक हिन्दी के रूप में विकसित हुई है । यह तथ्य परक है । सभी केन्द्रीय कार्यालयों में प्रशासनिक हिन्दी का प्रयोग वांछनीय है, अनुवाद भी इसका प्रमुख अंग है । क्षेत्रीय शब्दों का समुचित समावेश हिन्दी को सहज ग्राह्य बना देगा । अधिनियम के अनुसार केन्द्र में आतंरिक फाइल प्रोसेसिंग हिन्दी में 35 प्रतिशत हो, अहिन्दी भाषी प्रांतों से फाइल आदान-प्रदान हिन्दी में 10 प्रतिशत हो ।
वाणिज्य और वित्त बड़े क्षेत्र है। इनका अपना विशाल शब्द कोश है । बिजनेस के विस्तार में वाणिज्यिक हिन्दी का प्रयोग महत्वपूर्ण है । इस क्षेत्र में भी सुबोध अनुवाद / अनुसृजन की आवश्यकता पड़ती है ।
प्रयोजनमूलक लेखन का मूल्यांकन
1. वाक्य-पदीय
वर्ण. अक्षर, शब्द, वर्तनी, पद, वाक्य. संक्षेपाक्षर.
शब्द स्वयं परिभाषित हों, प्रयोजन क्षेत्र में अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हो लेकिन इन शब्दों के परिभाषा द्योतक हिन्दी में समानार्थी शब्द भी कम से कम पहली बार अंग्रेजी के शब्द के साथ देने विषय-बोध सुगम होगा । टैक्नोलॉजी के साथ प्रयुक्त अंग्रेजी, जर्मन आदि विदेशी शब्दों को सरल ढंग से समझाया जाए । जैसे- आगम-निर्गम (Input-Output), अंतक (Terminal), क्रमादेश (Program), कल्पायन (Semantic web) आदि । संक्षेपाक्षर रोमन में रहें, अन्तर-राष्ट्रीय मान्य रासायनिक सूत्र ( जैसे H2O, CH4 ) रोमन में ही रहें । संख्या रोमन अंक में हो । वाक्य छोटे हों, सरल हों । जटिल अन्तर-संबंधित प्रक्रियाओं को समझाने की दृष्टि से विज्ञान-प्रयोग, प्रविधि, उत्पाद-सेवा परियोजना प्रबंधन के चित्र, आरेखों का प्रयोग किया जाए ।
वर्तनी का मानक व्यवहार अक्षर-परक ध्वन्यात्मक वैशिष्ट्य को बनाए रखे । द्वितीय में ‘द्वि’ अक्षर को ‘द् वि’ लिखना केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने मानक माना है, यह ध्वनि सिद्धांतत: गलत है ।
2. शैली
तथ्यपरक, उदाहरण, केस स्टडी, सरस-सार्थक शीर्षक, प्रयोग-प्रसंग, कड़ी-दर-कड़ी विषय-प्रतिपादन .
प्रयोजन मूलक लेखन तथ्य परक होता है। इसे रोचक बनाने के लिए डिजिटल (खड़ी) अभिव्यक्ति की अपेक्षा लयात्मक अभिव्यक्ति पर बल दिया जाए । उदाहरण और केस स्टडी से विषय-प्रतिपादन सुगम होगा। यथा-स्थान संदर्भों को दर्शाया जाए । एक साथ ढ़ेर सारे संदर्भ देने की प्रथा विषय से न्याय संगत नहीं होगी ।
पैराग्राफ के शीर्षक सरस और सार्थक हों । विषयानुसार वैज्ञानिकों के प्रयोग-प्रसंग पाठक को प्रेरक-प्रसंग बन सकते हैं । प्रस्तुति में अतीत की उपलब्धि और अपनी संस्कृति के मूल्यों को जोडते हुए वर्तमान का विशद् विवेचन हो । भविष्य में संभावनाओं के बारे में संक्षिप्त उल्लेख देना भी सराहनीय होगा ।
लेखक में अधिगम सिद्धांत (Learning Theory) के आधार पर संरचनात्मक पद्धति (Constructivist Approach) को अपनाना उचित होगा । इसमें विषय-प्रतिपादन कड़ी-दर-कड़ी आत्मसात कराते हुए किया जाए । तकनीकी लेखन बालकों के लिए सुबोध और स्नातक/स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के लिए उच्च स्तर का हो ।
3. सामाजिक मूल्य समावेशन
सांस्कृतिक, सामाजिक एवं मानव मूल्य.
प्रयोजनमूलक लेखन में सावधानी बरती जाए कि सांस्कृतिक, सामाजिक एवं मानव मूल्य आहत न हों। अपितु अपेक्षा है कि ये मूल्य सबल बनें । कुछ विज्ञापनों में भाषा खिचड़ी होती है, चित्र संस्कृति से मेल नहीं खाते, इन बातों पर ध्यान देना उचित होगा । लेखन में उदाहरण समाज में स्वीकार्य हों । सेक्स, ड्रग्स, नशा, हिंसा आदि का अतिरेक न हों । पीत पत्रकारिता से बचा जाए । आविष्कारोन्मुखी समाज बनाने के लिए साहित्य सृजन भी तदनुसार हो, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हो, वैज्ञानिकों और उद्यमियों के बारे में प्रेरक प्रसंग दिए जाएँ ।
आवश्यक है कि प्रयोजन मूलक हिन्दी में रचना, निबन्ध, विज्ञापन, फिल्म, विडियो गेम्स संवाद, समाचार पत्र, मेग्जीन आदि में प्रस्तुति की स्वस्थ समीक्षा भी होती रहे । इस समय ऐसी समालोचनाओं का नितांत अभाव है ।
प्रयोजनमूलक हिन्दी में प्रशिक्षण
स्कूली स्तर पर हिन्दी का पाठ्यक्रम प्रयोजनमूलक बनाया जाए । पाठों में विज्ञान प्रयोग-प्रसंगों, वैज्ञानिकों की जीवनी और खोजी प्रसंग कथाओं का समावेश किया जाए । विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों के प्रोजेक्ट इस प्रकार डिजाइन किए जाएं कि वे हिन्दी को व्यवहार में लाएँ, अभिव्यक्ति कौशल का विकास करें । इंजीनियरी, मेडिकल और प्रबंधन में स्नातक स्तर पर हिन्दी भाषा में जन संपर्क प्रोजेक्ट अनिवार्य हों जिससे वे लोक भाषा हिन्दी में सूचना संग्रह कर सकें, सामाजापयोगी कार्यक्रमों को आम लोगों को समझाने में समर्थ हो सकें । विचारणीय है कि हमारे इंजीनियर, डाक्टर, प्रबंधक, उपयुक्त टैक्नोलॉजी और तकनीकों को जानकारी और विकास में जन सामान्य की भागीदारी जितनी तेजी से बना सकेंगे, देश की समुन्नति उतनी ही तेज गति से संभव होगी । देश की प्रगति और लोकभाषा में सकल जन संप्रेषण क्षमता के बीच सीधा संबंध है । आज जितनी आवश्यकता इंजीनियरी, मेडिकल, प्रबंधन के विशेषज्ञ प्रशिक्षकों की है, उतनी ही महत्ता है इन विषयों के लोकभाषा हिन्दी में प्रस्तुति संप्रेषण की भी । जो विशेषज्ञ सरकार, उद्योग, शिक्षा-संस्थाओं में कार्यरत हैं, उनके लिए लोकभाषा हिन्दी में संप्रेषण प्रशिक्षण योजना चलाई जाए, आवश्यक प्रशिक्षण सामग्री तैयार कराई जाए, और इन विषयों में हिन्दी में लेखों / पुस्तकों के प्रकाशन को प्रोत्साहित किया जाए । अधिक से अधिक टैक्नोलॉजी संगोष्टियां आयोजित की जाएँ जिनका माध्यम व्यावहारिक हिन्दी हो । सरकार से वित्त पोषित सभी संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में कम से कम 30% चर्चाएँ / प्रस्तुतियाँ हिन्दी में हों ।
प्रयोजनमूलक हिन्दी का पाठ्यक्रमप्रयोजनमूलक हिन्दी के बी.ए. (स्नातक) और एम.ए. (स्नातकोत्तर) पाठ्यक्रम उत्तर और दक्षिण के राज्यों के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों तथा IGNOU में चलाए जा रहे हैं ।
बी.ए./एम.ए. के बाद रोजगार संभावनाएं :
स्वयं रोजगार : ट्यूटर, स्वतंत्र अनुवादक/दुभाषिया, भाषिक इंटरफेस ।
वैतनिक रोजगार : हिन्दी अनुवादक/दुभाषिया, उद्घोषक (टी.वी., रेडियो), हिन्दी रिपोर्टर, स्वागत डेस्क पर सहायक, कंप्यूटर सहायक ।
बी.ए. (प्रयोजनमूलक हिन्दी) का प्रस्तावित पाठ्यक्रमप्रति सेमेस्टर
विषय पेपर अंक वर्ष-1 वर्ष-2 वर्ष-3
प्रयोजनमूलक हिन्दी 2 2X50 200 200 200
अंग्रेजी 1 50 100 100 100
अन्य भाषा/विषय 1 50 100 100 100
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200 400 400 400
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प्रयोजनमूलक हिन्दी के 12 पेपर इस प्रकार प्रस्तावित है:
सेमेस्टर 1.1
पेपर 1 : व्यावहारिक हिन्दी व्याकरण और वार्तालाप – पाणिनी वर्ण सारणी, वर्तनी, शब्द-युग्म, प्रयुक्तियाँ, पारिभाषिक वाक्यांश
पेपर 2 : IT-1 सूचना टैक्नोलॉजी – (विहंगम परिचय, शब्द संसाधन, स्प्रैडशीट, डेटाबेस, प्रेजेंटेशन, ओ सी आर, संक्षेपण), कंप्यूटर अनुप्रयोग एवं इंटरनेट सेवाएं
प्रोजेक्ट : टंकण, आशुलिपि
सेमेस्टर 1.2
पेपर 3 : राजभाषा नीति एवं कार्यालयी हिन्दी
पेपर 4 : वाणिज्यिक, बैंकिंग एवं व्यापारिक हिन्दी
प्रोजेक्ट : सरकारी कार्यालयों एवं उद्योगों में प्रशिक्षण भ्रमण
सेमेस्टर 2.1
पेपर 5 : IT-2 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी – विहंगमदृष्टि (ओवरव्यू) एवं तकनीकी हिन्दी (इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट)
पेपर 6 : टिप्पणी, रिपोर्ट लेखन चर्चा, संक्षेपण
प्रोजेक्ट : कंप्यूटर पर रिपोर्ट तैयार करना
सेमेस्टर 2.2
पेपर 7 : IT-3 सुबोध अनुवाद (इंटेलीजेंट ट्रांसलेशन) एवं संप्रेषण जाँच
पेपर 8 : मीडिया जन संचार एवं विज्ञापनिक हिन्दी
प्रोजेक्ट : दूरदर्शन, रेडियों और प्रकाशन केन्द्रों का प्रशिक्षण-भ्रमण
सेमेस्टर 3.1
पेपर 9 : आशु अनुवाद (इंटरप्रेटेशन) (संक्षेपण, विस्तारण, संपादन, चर्चा-सार)
पेपर 10 : स्व-व्यवसाय प्रशिक्षण (एंट्रेप्रेन्यूरशिप प्रोजेक्ट योजना)
प्रोजेक्ट : कार्यालयीन, वाणिज्यिक, तकनीकी, मीडिया जनसंचार हिन्दी लेखन व अनुवाद / अनुसृजन की केस स्टडी
सेमेस्टर 3.2
पेपर 11 : कंटेंट क्रिएशन, शब्द-संहिता (लेक्सिकॉन), अनुवाद प्रारूप और शैली सुधार
पेपर 12 : IT-4 इंडस्ट्री में ट्रेनिंग (क्षेत्र-विशेष में टिप्पणी, प्रतिवेदन, अनुवाद, संप्रेषण क्षमता)
प्रोजेक्ट : हिन्दी व्यवहार तंत्र डिजाइन पर थीसिस (पेपर 12 के आधार डेटा का विश्लेषण, सिस्टम (तंत्र) डिजाइन और कंप्यूटर से रिपोर्ट
एम.एम. (प्रयोजनमूलक हिन्दी) का पाठ्यक्रम
बी.ए. के बाद एम.ए. की उच्च शिक्षा पाने का भी प्रावधान हो । प्रयोजनमूलक हिन्दी में बी.ए. देने वाले कॉलेजों की कुल संख्या की 20 प्रतिशत संख्या के कॉलेजों में प्रयोजनमूलक हिन्दी में एम.ए. के प्रशिक्षण की भी सुविधा उपलब्ध हो । IT-1 का पूर्व ज्ञान अपेक्षित है । एम.ए. (प्रयोजनमूलक हिन्दी) का पाठ्यक्रम इस प्रकार प्रस्तावित है:
सेमेस्टर 1.1
पेपर 1 : कार्यालयी, वाणिज्यिक, तकनीकी और जन संचार हिन्दी
पेपर 2 : IT-2 प्रौद्योगिक विहंगम परिचय और केस स्टडी का तुलनात्मक अध्ययन
सेमेस्टर 1.2
पेपर 3 : IT-3 अनुवाद / अनुसृजन केस स्टडी
पेपर 4 : आशु अनुवाद केस स्टडी
प्रोजेक्ट : हिन्दी व्यवहार में अनुवाद/लेखन की संप्रेषणीयता का मापन
सेमेस्टर 2.1
पेपर 5 : अंतरराष्ट्रीय राजनयिक और व्यापार अनुबंध
पेपर 6 : IT- योजित भाषा शिक्षण, अनुवाद एवं लेखन
सेमेस्टर 2.2
पेपर 7 : IT-4 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग
पेपर 8 : विस्तृतकेस स्टडी (क्षेत्र विषयक)
प्रोजेक्ट : थीसिस (इंडस्ट्री से सह-गाइड)
पाठ्यक्रम की विशेषताएं
वर्ष में दो सेमेस्टर, 2 पेपर प्रति सेमेस्टर, इस प्रकार बी.ए. में 12 पेपरों (प्रश्न पत्रों) का प्रावधान, और एम.ए. में 8 पेपरों का । पाठ्यक्रम में चार IT प्रश्न पत्रों का समावेश है जिससे रोजगार मिलने, बदलने और स्वयं कुछ कर सकने की उद्यमिता क्षमता पैदा होगी ।
IT-1 इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी (सूचना प्रौद्योगिकी)
कंप्यूटर-कम्यूनिकेशन और सूचना माध्यम के एकीकरण से इन्फॉर्मेशन टैक्नोलॉजी का तेजी से विकास हो रहा है। हिन्दी व्यवहार में इसकी जानकारी और अनुप्रयोगों का अभ्यास आवश्यक हो गया है। वर्ड प्रोसेसिंग, डेटाबेस डिजाइन, स्प्रैडशीट, इंटरनेट सर्विस, वेब सर्विस आदि सूचना संसाधन के प्रभावी साधन (टूल्स) है।
IT-2 इंट्रोडक्शन-टु-टैक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी विहंगम परिचय)
टैक्नोलॉजी जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित कर रही है। प्रयोगशाला से जन सामान्य तक की टैक्नोलॉजी का यात्रा काल उत्तरोतर वर्षों से घटकर माह और माह से घटकर सप्ताह तक होने लगा है। ऐसी स्थिति में इंजीनियरी, मेडिकल और मैनेजमेंट की टैक्नोलॉजी के विहंगम परिचय मदद मिलेगी।
IT-3 इंटेलिजेंट ट्रांसलेशन (संबोध अनुवाद)
सुबोध अनुवाद हिन्दी व्यवहार को लोकप्रिय बनाने और बढ़ाने के लिए आवश्यक है। शब्दानुशब्द अनुवाद बोझिल और अटपटा बन पड़ता है। पाठक के स्तर और विषय स्पष्टता को ध्यान में रखकर अनुवाद को सुबोध, उपादेय और भाव संप्रेषणीय बनना आवश्यक है। विधि (कानून) के क्षेत्र को छोड़कर अन्य कई बड़े-बड़े क्षेत्रों में सुबोधता और संप्रेषणीयता पर बल देना प्राथमिक आवश्यकता है। अनुवाद की संप्रेषणीयता जांच के उपायों से भी छात्रों को अवगत कराया जाए। सुबोध अनुवाद के साथ अनुसृजन की ओर भी प्रेरित किया जाए। अनुसृजन से उपादेयता बढ़ेगी।
IT-4 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग
व्यावहारिक ज्ञान और विविध प्रचलित पद्धतियों की जानकारी के लिए सरकारी कार्यालयों, वाणिज्यिक, वाणिज्यिक बैंक और व्यापार केन्द्रों, तकनीकी विकास संस्थानों और जन संचार केन्द्रों के प्रशिक्षण-भ्रमण से हिन्दी व्यवहार की समस्याएँ, नवीन उपायों/पद्धतियों की जानकारी हो सकेगी। इससे हिन्दी व्यवहार के समस्या के समाधान की क्षमता पैदा होगी।
शोध की नई दिशाएं - प्रयोजनमूलक हिन्दी में ( एम.फिल./पीएच.डी. )
तकनीकी हिन्दी
1. हिन्दी के लिए टैक्नोलॉजी विकास का इतिहास
2. कंप्यूटर से हिन्दी भाषा शिक्षण
3. कंप्यूटर से हिन्दी भाषा विश्लेषण और संप्रेषणीयता का आकलन
4. सुबोध अनुवाद (इंटेलिजेंट ट्रांसलेशन) – सिद्धांत, संप्रेषणीयता एवं मूल्यांकन
5. मशीनी अनुवाद – प्रारूप लेक्सिकॉन निर्माण, प्रयोक्ता – मशीन संवाद
6. हिन्दी में इंटरनेट – समस्याएँ, संभावनाएँ और समाधान
7. हिन्दी की बेसिक तकनीकी शब्दावली
8. हिन्दी के लिए टैक्नोलॉजी–वैविध्य का अध्ययन
9. विज्ञान एवं तकनीकी लेखन की समालोचना/समीक्षा
10. तकनीकी विषयक शब्दावली एवं प्रयुक्तियों की समीक्षा
11. प्रमुख वैज्ञानिकों की जीवनी एवं संस्मरण संग्रह
वाणिज्यिक हिन्दी
1. हिन्दी में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स – समस्याएँ, संभावनाएँ और समाधान
2. वाणिज्यिक, बैंकिंग, व्यापार में हिन्दी व्यवहार – बाजार प्रसार
3. हिन्दी की बेसिक वाणिज्यिक शब्दावली की समीक्षा
4. हिन्दी प्रयोग और वाणज्यिक लाभ – एक अध्ययन
5. पर्यटन में हिन्दी संवाद
6. प्रमुख उद्योगपतियों की जीवनी एवं संस्मरण संग्रह
प्रशासनिक हिन्दी
1. हिन्दी में इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस
2. हिन्दी को बेसिक प्रशासनिक शब्दावली की समीक्षा
3. हिन्दी व्यवहार और प्रशासनिक सक्षमता
4. हिन्दी में कार्यरत प्रशासक – परिचय एवं संस्मरण संग्रह
जनसंचार की हिन्दी
1. दूरदर्शन पर हिन्दी प्रयोग – विश्लेषण, समाज पर प्रभाव और नीति
2. रेडियों पर हिन्दी प्रयोग – विश्लेषण , प्रभाव और नीति
3. मल्टीमिडिया गेम्स और एनिमशन फिल्मों में हिन्दी प्रयोग
4. इंटरनेट एवं सोशल नेटवर्किंग पर हिन्दी प्रयोग
5. हिन्दी में सुबोध इंटेलिजेन्ट सूचना लेखन/उद्घोषणाएँ
6. जनसंचार की हिन्दी : संक्रमण काल में
7. जनसंचार में श्रेष्ठ रचनाएँ
अन्य
1. स्कूलों में व्यावसायिक (वोकेशनल) शिक्षा में हिन्दी प्रयोग – स्वरूप एवं सिद्धांत
2. सार्क (SAARC) , नैम (NAM) और संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी प्रयोग – समस्याएँ व समाधान
3. विदेशी छात्रों के प्रशिक्षण की विधाएँ
4. मशीनी अनुवाद की व्यापारिक संभावनाएँ
5. मशीन सह मानव अनुसृजन
6. राष्ट्रीय भाषायी नीति समीक्षा
और आगे सार में ...मानव-मशीन की परस्परता और निर्भरता बढ़ रही है । लेकिन मानव-मानव संबंधों में शिथिलता आ रही है । बेरोज़गारी बढ़ी है । नई सोच की जरूरत है, जिससे मानव को रचनात्मकता और नवाचार में प्रौद्योगिकी / मशीन की मदद आसानी से मिल सके । प्रौद्योगिकी और संस्कृति (Technology and Culture) का वृहद क्षेत्र प्रशस्त किए जाने की आवश्यकता है । सरकार ने 2010-2020 दशक को नवाचार दशक ( डिकेड ऑफ इन्नोवेशन ) घोषित किया है । आम आदमी की नवाचारयुत भागेदारी आवश्यक है । ब्रेन ड्रेन की अपेक्षा ब्रेन ड्रॉप अर्थात् कुंठित प्रतिभा बहुत अधिक है । ब्रेन ड्रॉप को लोकभाषा के माध्यम से प्रशिक्षण देकर ही ब्रेन गेन में बदल सकते हैं । भारत में वैज्ञानिक सोच के साथ साक्षरता का नितांत अभाव है, प्रतिद्वंदता और उद्यमता की भी कमी है ।
सूचना प्रौद्योगिकी से योजित प्रयोजनमूलक हिन्दी (IT-enabled Functional Hindi) का विकास एवं प्रयोग संवर्धन आधुनिक सामाजिक तंत्र की नितांत आवश्यकता है । मुक्त अर्थव्यवस्था के संदर्भ में प्रयोजनमूलक हिन्दी उपभोक्ता संस्कृति को बढ़ाने के लिए व्यापारी वर्ग के लिए आवश्यक है, साथ ही राजतंत्र में सामाजिक मूल्यों की रक्षा करते हुए प्रयोजनमूलक हिन्दी का विकास आवश्यक है । इसमें प्रशिक्षित लोग महत्वपूर्ण इंटरफेस का काम करेंगे । शिक्षकों को ट्रेनिंग देनी होगी । सरकारी कार्यालयों, वाणिज्य केन्द्रों, तकनीकी शोधशालाओं में प्रशिक्षणार्थियों के लिए प्रशिक्षण भ्रमण कार्यक्रमों का समन्वयन करना होगा । प्रस्तावित बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रमों में IT-1: इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी, IT-2: इंट्रोडक्शन-टु-टैक्नोलॉजी, IT-3: इंटेलिजेंट ट्रांसलेशन, IT-4: इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग प्रस्तावित हैं । इससे कम्प्यूटर पर कार्य निपुणता, विविध प्रौद्योगिकी का विहंगम परिचय और उद्योगों में विमर्श विधि का परिचय बहुत उपयोगी होगा । प्रयोजन मूलक हिन्दी साहित्य की स्वस्थ समीक्षा भी आवश्यक है । मूल्यांकन 3 स्तरों पर हो – वाक्य-पदीय, शैली, सामाजिक मूल्य समावेशन । हिन्दी के लिए विविध सॉफ्टवेयर बने हैं, कई ऑपेन डोमेन में हैं । उन सभी में संगतता / कंपेटिबिलिटी नहीं है, टैक्नोलॉजी–वैविध्य का अध्ययन और समाधान निकालने की आवश्यकता है । सरकारी सहायता से बनी बेसिक टैक्नोलॉजी प्राइवेट कंपनियों को भी मुफ्त / सांकेतिक कीमत पर मिलें जिससे विविधतापूर्ण उपलब्धि सर्वत्र सुलभ हो । टोल-फ्री तकनीकी सहायता केन्द्र हो, जहां से तुरंत मदद मिल सके ।
संदर्भ :1. ओम विकास, ‘हिन्दी का वर्तमान और भविष्य की दृष्टि’, गर्भनाल, जनवरी 2010, अंक 38, पृष्ठ 4-6
2. ओम विकास, ‘बहुभाषिकता : संदर्भ सिमटती दूरियाँ सूचना क्रांति में’, गवेषणा, 2010
3. ओम विकास, ‘भाषा, राजतंत्र, टैक्नोलॉजी और व्यापार’, विज्ञान गरिमा सिंधु, वर्ष 1999, अंक 29, पृष्ठ 22-30
4. ओम विकास, ‘हिन्दी के विकास में टैक्नोलॉजी का योगदान’, प्रयोजनमूलक हिन्दी विशेषांक, गवेषणा, 67-68/1996/55-60
5. ओम विकास, ‘मशीनी अनुवाद की समस्याएँ’ (अनुवाद, सं. डॉ. नागेन्द्र), 1993
6. ओम विकास, ‘तकनीकी हिन्दी का विकास : शोध की नई दिशाएँ’, गवेषणा के.हि. संस्थान, 1984, राजभाषा तकनीकी विशेषांक 1984, तकनीकी हिन्दी का विकास कार्यशाला, रूड़की, 1984
7. ओम विकास, ‘विज्ञान और हिन्दी प्रयोग की संभावनाएँ’, तकनीकी हिन्दी का विकास कार्यशाला, रूड़की, 1984
8. ओम विकास, ‘हिन्दी के प्रचार-प्रसार में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग’, तकनीकी रिपोर्ट, इलेक्ट्रॉनिकी विभाग, 1984
9. ओम विकास, ‘तकनीकी हिन्दी का प्रादुर्भाव’ इलेक्ट्रॉनिकी भारती, इलैक्ट्रॉनिकी विभाग, अक्तूबर, 198310. ओम विकास, ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हिन्दी अनुवाद’, बहुभाषिक अनुवाद संगोष्ठी, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, फरवरी, 1983 (प्रो. आर. एन. श्रीवास्तव का ‘अनुवाद सिद्धांत’ और प्रो. भोलानाथ तिवारी की ‘वैज्ञानिक सामग्री का अनुवाद’) में पुन: प्रकाशित)
11. ओम विकास, ‘तकनीकी लेखन का माध्यम हिन्दी’, अनुवाद त्रैमासिक, जन-मार्च 1984, पृ. 60-65
वाह ! इतना विस्तार से इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार पढ़कर अति प्रसन्नता हो रही है। वस्तुत: ऐसे लेखों से कम्प्यूटर के युग के अनुरूप भाषा के विकास की समग्र चिन्तन सामने आया है जिसे अधिक से अधिक लोग चिनतन-मनन करें। भाषाविद और पाठ्यक्रम निर्माता भाषा-कम्प्युटिंग का अर्थ समझें; उसका महत्व समझें और उसको सही दिश्हा कैसे दिया जाय - यह सोचें।
जवाब देंहटाएंलेखक को एकबार पुन: इस विषय से धुंध हटाकर सुग्राह्य बनाने के लिये साधुवाद।
सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी के विस्तार के लिए यह चिंतन महत्वपूर्ण है। साहित्य के साथ साथ आधुनिक हिंदी की भी बात होनी चाहिए। साधुवाद।
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