रूस की सर्दियों में भारत का बसंत





रूस की सर्दियों में भारत का बसंत
डॉ. वेदप्रताप वैदिक



प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह की मास्को-यात्रा की तुलना यदि उनकी वाशिंगटन-यात्रा से और ओबामा की पेइचिंग-यात्रा से की जाए तो माना जाएगा कि यह मास्को-यात्रा अधिक सगुण और अधिक सार्थक रही है| इस मास्को-यात्रा का कोई खास शोर-शराबा नहीं था, जैसा कि उल्लिखित दोनों यात्राओं का था लेकिन इस यात्रा में से जैसे समझौते और दिशा-निर्देश निकले हैं, वे सिर्फ भारत-रूस संबंधों में ही गर्माहट पैदा नहीं करेंगे, वे दक्षिण एशिया और विश्व-राजनीति पर भी अपना गहरा प्रभाव डालेंगे|


दो साल पहले प्रधानमंत्री की मास्को-यात्रा में जिस तरह का मोह-भंग हुआ था, उसने भारत-रूस संबंधों को लगभग बर्फ में जमा दिया था| गोर्शकोव-सौदा तो अधर में झूल ही रहा था, परमाणु-सौदे भी खटाई में पड़ गए थे| भारत को यह समझ ही नहीं पड़ रहा था कि अमेरिकी सौदा संपन्न होने के पहले वह रूस से सौदा करे या न करे| भारत-रूस व्यापार भी सिर्फ चार बिलियन डॉलर पर अटका हुआ था| इधर अमेरिका और रूस में परमाणु-छतरी को लेकर तनाव बढ़ गया था और भारत अमेरिका के नज़दीक जाने के लिए बेताब हो रहा था| यह भी पता नहीं चल रहा था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान आदि के प्रति भारत और रूस के रवैए में कितनी समानता हो सकती है| लेकिन पिछले साल रूसी प्रधानमंत्री विक्तोर झिबकोव की भारत-यात्रा के दौरान जो हल्के-से संकेत उभरे थे, उन्हें हमारे प्रधानमंत्री की इस मास्को-यात्र ने गरज़ती हुई प्रतिध्वनियों में बदल दिया है| इधर भारत में मनमोहन सिंह दुबारा प्रधानमंत्री बने और उधर रूस में मई 2008 में व्लादिमीर पुतिन खुद प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपने शिष्य दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बना दिया| इस पट-परिवर्तन के साथ-साथ भारत-अमेरिकी परमाणु-सौदा भी संपन्न हो गया| इन घटनाओं ने भारत और रूस के सामने संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए| इसीलिए रूस के साथ हुआ परमाणु-सौदा अमेरिकी सौदे से भी काफी आगे निकल गया| रूस की सर्दियों में भारत का बसंत खिल गया|


भारत-अमेरिकी सौदे पर पाँच साल की खींचातानी के बावजूद प्रधानमंत्री की वाशिंगटन-यात्रा के दौरान परमाणु-ईंधन का मामला अधर में ही लटका रहा लेकिन मास्को-यात्रा के दौरान रूस ने भारत को वे रियायतें दे दी हैं, जो अमेरिका उसे सपने में भी नहीं दे सकता| अमेरिका की शर्त है कि अगर परमाणु-सौदा भंग होता है तो ईंधन की सप्लाई तुरंत बंद हो जाएगी और सारे संयंत्र लौटाने होंगे याने भारत ने यदि कोई परमाणु-विस्फोट कर दिया तो उसे लेने के देने पड़ जाएँगे | अमेरिकी ईंधन से चलनेवाले उसके संयंत्र ठप्प हो जाएँगे और अरबों रूपए के अमेरिकी संयंत्र उसे वापस लौटाने होंगे जबकि उसी स्थिति में रूसी ईंधन की सप्लाय जारी रहेगी| रूस जी-8 के उस प्रस्ताव को भी नहीं मानेगा जो कहता है कि भारत-जैसे परमाणु-अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करनेवाले राष्ट्रों को ईंधन संशोधन और परिवर्द्धन की तकनीक न दी जाए| इसका अर्थ यह हुआ कि रूस ने भारत को व्यावहारिक तौर पर छठा परमाणु शक्तिसंपन्न राष्ट्र मान लिया है| अमेरिका के 123 समझौते ने जो बंधन भारत पर डाले हैं, उन्हें रूसी सौदे ने दरी के नीचे सरका दिया है| अब ऐसा लग रहा है कि दो साल पहले भारत और रूस जो अचानक ठिठक गए थे, वह उन्होंने ठीक ही किया था| अब अमेरिका सौदे ने भारत का मार्ग प्रशस्त कर दिया है| इसका लाभ उठाकर भारत ने फ्रांस, केनाडा, नामीबिया, मंगोलिया, कजाकिस्तान, नाइजीरिया आदि के साथ भी परमाणु संयंत्रें और ईंधन के समझौते कर लिये हैं| रूस के साथ हुआ यह समझौता न केवल भारत को छह नए परमाणु-संयंत्र देगा बल्कि लगभग 20 संयंत्र अलग-अलग प्रांतों में भी लगाएगा| राष्ट्रपति मेदवेदेव ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि भारत को परमाणु संयंत्र, तकनीक या ईंधन देते समय रूस किसी के दबाव में आनेवाला नहीं है और ये समझौते सिर्फ क्रय-विक्रय संबंधी नहीं हैं| इनके तहत दोनों देशों के बीच परमाणु-शोध और व्यापक उर्जा सहयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा| इसमें संदेह नहीं है कि रूस और फ्रांस ने परमाणु-उर्जा से बिजली बनाने के जो सफल प्रयोग किए हैं, उनका लाभ भारत को मिलेगा|


भारत ने सिर्फ परमाणु-उर्जा ही नहीं, तेल और गैस देने के लिए भी रूस को पटा लिया है| रूस के ताइमन पेचोरा क्षेत्र के त्रेब और तीतोव में भारत अब तेलोत्खनन करेगा और यह सुविधा उसे अब सखालिन-3 में भी मिल सकती है| अब भारत अपनी युद्ध-क्षमता बढ़ाने के लिए दुबारा रूस की तरफ अभिमुख हो रहा है| उसने यातायात और युद्धक विमान बनाने के नए समझौते तो किए ही हैं, विमानवाहक पोत गोर्शकोव का सौदा भी सुलझा लिया है| भारत रूस व्यापार को अगले कुछ वर्षों में तिगुना करने का संकल्प भी लिया गया है| दोनों देशों ने अफगानिस्तान की स्थिरता और पुनर्निर्माण पर भी विचार किया है| ईरान के बारे में दोनों देशों का रवैया अन्य महाशक्तियों से ज़रा भिन्न हैं और दोनों ने पाकिस्तान के आतंकवादी तत्वों पर खुले-आम उंगली उठाई है| भारत और रूस की इस लौटती हुई घनिष्टता से अमेरिका और चीन जैसे राष्ट्रों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, यह बात रूसी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री ने एकदम स्पष्ट कर दी है| चीन और अमेरिका के साथ रूस और भारत अपने द्विपक्षीय संबंध अपने-अपने ढंग से आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन इन दो पुराने मित्रों की घनिष्टता विश्व-राजनीति के दादाओं के कान खड़े कर सकती है| यह मित्रता विश्व-राजनीति को बहुध्रुवीय बनाने में तो सहायक होगी ही, वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर चलनेवाली अनेक अंतरराष्ट्रीय दादागीरियों पर ब्रेक लगाने में भी सक्षम हो सकती है| इस समय भारत को रूस की जितनी जरूरत है उतनी ही जरूरत रूस को भारत की है| पाँच-सात साल पहले तक रूस अपने गैस और तेल की उपलब्धि के दम पर भारत जैसे मित्रें को हाशिए में डालता चला जा रहा था| उसे न तो अपने पारंपरिक शस्त्र-बाजार की परवाह रह गई थी और न ही वह अपने पुराने परखे हुए संबंधों को निभाते रहना चाहता था| लेकिन अब जबकि तेल और गैस के अंतरराष्ट्रीय दाम काफी गिर गए हैं, रूस को अब अपने पुराने ग्राहकों, दोस्तों और भारत जैसी नई विश्व-शक्तियों का दुबारा ध्यान आ रहा है| साम्यवाद के चंगुल से छूटा हुआ रूस अभी तक अपनी नई ज़मीन नहीं तलाश पाया है| वह अब भी विचारधारा के शिशिर में ठिठुर रहा है| भारत का लोकतंत्र और प्रगति के पथ पर बढ़ता हुआ अर्थतंत्र रूस की सर्दियों में बसंत को खिला सकता है|

ए-19 प्रेस एन्क्लेव नई दिल्ली-17

3 टिप्‍पणियां:

  1. sसभी देशों से अपने सम्बन्ध बनाए रखना और अपने हित में अंतर्राष्ट्रीय समन्वय स्थापित करना सफ़ल राजनीति की निशानी है। किसी एक देश की ओर झुकाव घातक भी हो सकता है। भारत का अमेरिका और रूस से निकटता का सम्बंध चारों ओर घिरे शत्रु राष्ट्रों से रखवाली का अच्छा साधन हो सकता है॥

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  2. उपतोक्त टिप्पणी से सहमत। देश को अपना हित ध्यान मे रखते हुए सभी से अच्छे संबध बनाने चाहिए।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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