गर्व का हजारवाँ चरण : प्रत्येक ज्ञात- अज्ञात को बधाई
Author: कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee | Posted at: Tuesday, November 10, 2009 | Filed Under: chitthacharcha, Kavita Vachaknavee
Priyankar Paliwal सहजीवन के शानदार बीस वर्ष और प्रमिला के लिये एक गीत :
Twenty years of conjugal bliss and a song for Pramila :
अपने तमाम गुस्से के साथ मैं बाहर आया। बाहर आकर मैनें मन ही मन यह इच्छा जाहिर की कि काश यह एक सामान्य फिल्म निकल जाये। इस फिल्म मे वह सब वहो ही नहीं जिसकी इच्छा लिये मैं एक सौ चालीस – पचास किलोमीटर आया था। मैं सोचता रहा कि काश यह डॉक्युमेंट्री फिल्म निकल जाये। काश सीरी फोर्ट मे अजीबोगरीब नियम लगाने वाले का लैपटॉप खो जाये, तमाम।
स्वगत पर कुछ दिन पूर्व आई प्रविष्टि पर भी एक दृष्टि डालें -
संदेह - दृष्टि
बोर्हेस ने ‘द रिडल ऑफ पोएट्री’ में कहा है- ‘सत्तर साल साहित्य में गुज़ारने के बाद मेरे पास आपको देने के लिए सिवाय संदेहों के और कुछ नहीं।‘ मैं बोर्हेस की इस बात को इस तरह लेता हूं कि संदेह करना कलाकार के बुनियादी गुणों में होना चाहिए। संदेह और उससे उपजे हुए सवालों से ही कथा की कलाकृतियों की रचना होती है। इक्कीसवीं सदी के इन बरसों में जब विश्वास मनुष्य के बजाय बाज़ार के एक मूल्य के रूप में स्थापित है, संदेह की महत्ता कहीं अधिक बढ़ जाती है। एक कलाकार को, निश्चित ही एक कथाकार को भी, अपनी पूरी परंपरा, इतिहास, मिथिहास, वर्तमान, कला के रूपों, औज़ारों और अपनी क्षमताओं को भी संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए।
गत दिनों सुशांत सिंहल जी से उनकी साईट के माध्यम से परिचय हुआ| प्रो. योगेश छिब्बर जी की एक कविता ने उनसे परिचय करवाया | पिछले दिनों वन्दे मातरम् को लेकर जिस प्रकार का अवांछनीय वातावरण निर्मित किए जाने की घटनाएँ हुई हैं, उन दिनों माँ, जननी, मातृ-भू, माता आदि संकल्पनाओं को अनायास ही राष्ट्र व धरती के साथ जोड़ कर देखने वाली परम्परा का स्मरण हो आता रहा| वह परम्परा भले ही वेद की ऋचाओं में "माता भूमि: पुत्रोहम् पृथिव्या: " का आदेश हो अथवा लंका जय के पश्चात राम का लक्ष्मण को लंका के वैभव को धूल समझने का विमर्श देते समय कहा गया -
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते |
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ||
या आधुनिक हिन्दी साहित्य में भारतेंदु काल से काव्य में राष्ट्रभक्ति और भारत माता की प्रतिष्ठा करने की परम्परा| सभी स्थानों पर जननी व जन्मभूमि एक शब्द युग्म की भांति आते हैं| मेरे मन की डूबती उतराती संवेदनाओं पर जिस कविता ने मरहम रखा, उसे पढ़ कर एक बारगी तो आप भी दंग रह जाएँगे| यहाँ उसका यथावत् पाठ देखिए -
दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।
लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा ।
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई अम्मा ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।
बाबूजी थे छड़ी बेंत की
माखन और मलाई अम्मा।
बाबूजी के पांव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, अम्मा।
सभी साड़ियां छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।
अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा ।
अलग हो गये घर में चूल्हे
देती रही दुहाई अम्मा ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा ।
लड़ते-सहते, लड़ते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।
अनंतिम
अब उसी नगर का एक और चेहरा देखें और मुझे विदा दें | हाँ इतना ध्यान अवश्य रखें कि चर्चा की १००० वीं प्रविष्टि होने की या अन्य सूचनाओं पर बधाई आदि देने से बढ़कर कुछ अधिक भी कहें| चर्चा पर किए जाने वाले श्रम में किसी चर्चाकार का कोई स्वार्थ नहीं होता है अतः चर्चा के इस मंच पर जब जब आप को किसी भी प्रकार का श्रम और समर्पण दिखाई दे तो अपनी भावनाओं को अवश्य व्यक्त करें , ये भावनाएँ औपचारिक शाबाशी से जितनी इतर होती हैं उतनी सुखदाई होती हैं | आप के लिए सर्वमंगल की कामनाओं सहित इस चित्र के साथ अब विराम लेती हूँ |
पांच वर्ष की यात्रा . हज़ारों ब्लॉग . दो दर्ज़न से अधिक चर्चाकार . और चिट्ठाकारों के समवेत स्वर चिट्ठाचर्चा की एक हज़ारवीं पोस्ट का ’माइलस्टोन’ . सब आशाजनक है . खास तौर पर इसलिये कि यह वीराने में बस्ती बसाने जैसा काम था . जो इसके शुरुआती सूत्रधार और कार्यकर्त्ता थे उन्हें एक गुलाब का फूल मेरी ओर से और हिंदी चिट्ठा-परिवार के सभी सदस्यों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंएक ऐतिहासिक चर्चा...क्यों न हो...१०००वीं पोस्ट जो ठहरी:) बधाई॥
जवाब देंहटाएंईमेल द्वारा प्रेषित सन्देश
जवाब देंहटाएंकविता जी ,
हिदी जगत के प्रति जैसी जागरूकता और आत्मीयता का प्रदर्शन आपने किया है वह असाधारण है । कविता मनुष्यता का पर्याय है ,निश्चय ही आप अपने नाम को सार्थक करेंगी । हजारवीं प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
अनंत शुभ कामनाएं ,--राधेश्याम शुक्ल
ईमेल द्वारा प्रेषित सन्देश
जवाब देंहटाएंआदरणीय कविता जी,
एक हज़ारवी प्रस्तुति के लिए बधाई.
शुक्ला जी का लेख/के लेख आखिरकार हिन्दी भारत तक पहुंच ही गये.वन्देमातरम गीत की सार्थकता पर जितने प्रश्न चिह्न लगे हुए हैं उनसभी का प्रमानपूर्वक समाधान, निश्चित ही सारे देश के लिए नेत्रोन्मीलक है.शुक्लाजी को इस महती कार्य के लिए बधाई और धन्यवाद.
एम वेंकटेश्वर
M Venkateshwar
बधाई...१००० वीं पोस्ट के मुकाम पर आपको चर्चा करता देख अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंएक हजारवीं और इतनी सुंदर पोस्ट के लिए बधाई और धन्यवाद। भविष्य के लंबं सफर के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंरा.
आपने इसे सचमुछ यादगार और सहेज कर रखने लायक चर्चा बना दिया। आपकि लगन और श्रमशक्ति को सलाम। विद्वता के क्या कहने?
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