दसवाँ : तीन दिवसीय लेखक सम्मेलन : 29, 30 व 31 जनवरी

  


दसवाँ राष्ट्रीय समता लेखक सम्मलेन
विषय: बहु ध्रुवीय दुनिया - सुरक्षित दुनिया
आयोजक - महावीर समता संदेश (पाक्षिक) उदयपुर
तिथि 29, 30, 31 जनवरी 2010,

स्थान - उदयपुर
email : samtasandesh@yahoo.co.in










 दि: 10 नवम्बर, २००९
प्रतिष्ठा में
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विषय: ‘‘बहुध्रुवीय दुनिया-सुरक्षित दुनिया’’ विषय पर तीन दिवसीय लेखक सम्मेलन के आयोजन में सहयोग हेतु।

मान्यवर,
महावीर समता संदेश ‘‘पाक्षिक’’ गत 18 वर्षों से उदयपुर से प्रकाशित हो रहा है। प्रकाशन के साथ-साथ यह सामाजिक चेतना के लिए अनेक आयोजन भी करता रहा है। इन आयोजनों में लेखक सम्मेलनों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। अब तक नौ लेखक सम्मेलन आयोजित किए जा चुके है -




विषय तथा मुख्य वक्ता


1)- लघु समाचार पत्र एवं सामाजिक प्रतिबद्वता
- डॉ. शान्ति भारद्वाज ‘राकेश’

2) -बाजार का आक्रमण और संवेदना का संकट
- वेद व्यास एवं अर्थशास्त्रीय तेजसिंह सिंघटवाडिया

3) -सत्ता, समाज और लेखन
- डॉ. राम शरण जोशी एवं सुरेश पण्डित

4)- फांसीवाद की दस्तक और लेखन की चुनौतियाँ
  - समायान्तर के सम्पादक पंकज बिष्ठ, एवं स्वयंप्रकाश

5) दलित एवं स्त्री अस्मिताएँ : भारतीय सामाजिक आन्दोलन
- प्रो. शिव कुमार मिश्र एवं ओम प्रकाश वाल्मीकि

6 ) सामाजिक बदलाव के नये सन्दर्भ
- समाजवादी चिन्तक रघु ठाकुर एवं प्रो.लाल बहादुर वर्मा

7)- ‘‘हिन्दी साहित्य : गाँधी दर्शन एवं प्रतिरोध की चेतना’’
- प्रभाष जोशी, पत्रकार, डॉ. रामशरण जोशी, उपाध्यक्ष,केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा

8 )- ‘‘मानवाधिकार एवं लोकतन्त्र’’
- ’हंस’ के सम्पादक राजेन्द्र यादव, पत्रकार असगर अली इंजी.

9 ). वैकल्पिक दुनिया बनाने में कार्ल मार्क्स, गाँधी, लोहिया और अम्बेडकर की भूमिका
- साहित्यकार रत्नाकर पाण्डे, विभूतिनारायण राय, कुलपति: महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय/वर्धा,कुमार प्रशान्त, सम्पादक सर्वोदय जगत/ मुम्बई




वर्ष 2010 की 29, 30 व 31 जनवरी को दसवाँ लेखक सम्मेलन का आयोजन प्रस्तावित है। इस बार का लेखक सम्मेलन में विषय ‘‘बहुध्रुवीय दुनिया : सुरक्षित दुनिया’’ रखा गया है। चूँकि  विषय बहुत जटिल है, इस पर ठोस विचार विमर्श हो पाये इसके लिए इसे विभिन्न सत्रों में बाँटने का प्रयास किया है।


प्रस्तावित सत्र


उद्घाटन सत्र - बहुध्रुवीय दुनिया- सुरक्षित दुनिया,
दूसरा सत्र -
निगुर्ट देश व संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका में बदलाव की आवश्यकता
तीसरा सत्र -
मीडिया, साहित्य कविता और विश्व शान्ति

कवि गोष्ठी



30 जनवरी (महात्मा गाँधी निधन दिवस)


प्रथम सत्र
    -   हिन्द स्वराज और विश्व शान्ति,
दूसरा सत्र    -  अहिंसा, निशस्त्रीकरण और विश्व शान्ति,
तीसरा सत्र -   गाँधी : विचार और मानवता की रक्षा

31 जनवरी,  गाँव झाड़ोल   -   ग्राम विकास और विश्व पर्यावरण - समापन 

तीन दिवसीय इस राष्ट्रीय समता लेखक सम्मेलन में देश भर से लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, कवि, प्राध्यापक, समाजकर्मी, महिलाऐं एवं छात्र-छात्राऐं भाग लेंगे। इस आयोजन में पूर्व सांसद एवं साहित्यकार रत्नाकर पाण्डे, बनारस, रघु ठाकुर नई दिल्ली, पत्रकार अनिल चमेड़िया, डॉ. राम शरण जोशी तथा पत्रकार एवं समाजकर्मी सुरेश पण्डित सा. अलवर, समाजवादी चिन्तक सुरेन्द्र मोहन दिल्ली, मंजू मोहन, गिरिराज किशोर कानपुर, प्रो. बृजेश लखनऊ व वेद व्यास, जैसे समाजकर्मियों व चिन्तकों के भी इस सम्मेलन में भाग लेने की सम्भावना है

आशा ही नहीं, पूरा विश्वास है कि आप हमारे प्रस्ताव पर विचार कर सकारात्मक उत्तर देंगे।




डॉ. हेमेन्द्र चण्डालिया, ----------------------------------------- हिम्मत सेठ
सम्पादक, ------------------------------------------------------- प्रधान सम्पादक





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आधार पत्र


विश्व को उम्मीद थी कि साम्यवादी सोवियत संघ के पतन, शीत युद्ध की समाप्ति और एकल ध्रुवीय शक्ति व्यवस्था के उदय के साथ राष्ट्रों के बीच तनाव भी खत्म होंगे और मानवता स्थायी शांति के युग में प्रवेश करेगी। लेकिन विगत दो दशकों (1989-2009) की अनुभव गाथा राष्ट्रों के बीच तनावों, हिंसात्मक संघर्षों, क्षेत्रीय युद्धों और कमजोर देशों पर आक्रमणों और धार्मिक आतंकवाद की त्रासदियों का इतिहास है। 1997 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने स्वयं संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए इस सच्चाई को औपचारिक रूप से स्वीकार किया था कि शीत युद्ध (कोल्ड वार) की समाप्ति के बावजूद विश्व में हिंसक संघर्षों की तादाद बढी है। शांति लौटी नहीं, अंशाति बढ़ी है। आखिर क्यों?


इस सवाल का जवाब सीधा व साफ है। आज विश्व में एक ही शक्ति है अमेरिका। दूसरी महाशक्ति के रूप में रूस के विलुप्त होने के पश्चात विश्व मानवता ने सुख शांति की आशाएँ अमेरिका से बाँधी थीं। हम सभी को विश्वास था कि पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में लम्बे समय से चले आ रहे हिंसात्मक विवादों का अन्त हो जाएगा। परमाणु शस्त्रों की होड़ नहीं लगेगी, निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया तेज होगी, और गरीबी अशिक्षा एवं भुखमरी के विरूद्ध विकसित व विकासशील देशों का साझा युद्ध तीव्रतर होता रहेगा। राष्ट्रों और समाजों के बीच समतावाद परिवेश को विकसित किया जाएगा। लेकिन क्या ऐसा हुआ?

बहु प्रचारित वैश्वीकरण के बावजूद स्थिति में रैडीकल सुधार नहीं हुआ है। विश्व बैक ने स्वयं अपनी वार्षिक रिपोर्टों में यह सच्चाई स्वीकारी है कि वैश्वीकरण के दौर में विषमता बढ़ी है। आज एक अरब से अधिक लोग भुखमरी की कगार पर जिंदा है। क्या अमेरिकी नेतृत्व में उभरी एकल ध्रुवीय व्यवस्था मानवता को इन त्रासदियों से त्राण दिला सकी?

हम क्यों भूल जाते है कि एकल ध्रुवीय दौर में ही दो दो खाड़ी युद्ध हुए | अफगानिस्तान अशांति में झुलस रहा है। कारगिल युद्ध हुआ, फिलिस्तनी व इजराइल के बीच झडपें जारी हैं। भारत पाक चीन की सीमाएँ सुलगी हुई हैं। क्यों नहीं यह व्यवस्था इन समस्याओं का हल निकाल सकी है।


जाहिर है, आज विश्व अमेरिकी वर्चस्ववाद की कृपा दृष्टि पर आश्रित है क्योंकि तमाम आर्थिक संगठन, सामरिक संगठन, इस देश के बंधक बने हुए है। जब वारसा संधि समाप्त हो चुकी है तो नाटों को जिंदा रखा जा रहा है। जब अमेरिका का एकमात्र दुश्मन साम्यवादी सोवियत संघ हमेशा के लिए परास्त हो चुका है। तब नाटों जैसे सैनिक संगठन को किस लिए सक्रिय रखा गया है। आज नाटों की सेवाएँ अफगानिस्तान में कहर बरफा रही है। अमरिका ने विश्व के विभिन्न कोनों में अपनी सैनिक  छावनियाँ कायम रखी हुई है। आखिर क्यों?


सिर्फ इसलिए कि एकल ध्रुवीय व्यवस्था के माध्यम से वैश्विक पूंजीवाद को उसकी मंजिल तक सुरक्षित पहुँचाया जा सके। यह स्थिति नव साम्राज्यवाद व नव उपनिवेशवाद की सूचक है। इसका प्रतिरोध किया जाना चाहिए और अन्य विकल्पों के संबंध में भी सोचने की जरूरत है।


क्या यह आवश्यक नहीं है कि एकल ध्रुवीय व्यवस्था के समानान्तर बहुध्रुवीय व्यवस्था के निर्माण के लिए आवाजें बुलंद की जाएँ , लोगों को बतलाया जाए कि जब विश्व में शक्ति संतुलन नहीं होगा तब तक स्थायी या दीर्घजीवी शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। जब बहुध्रुवीय व्यवस्था स्थापित होगी तो संयुक्त राष्ट्र संघ का भी लोकतान्त्रिकरण होगा। आज सुरक्षा परिषद और अन्य संस्थाओं में अमेरिकी शिविर का ही वर्चस्व है। अतः यह और भी अपरिहार्य है कि विश्व को तीसरे युद्ध से बचाने के लिए प्रतिरोधक शक्ति ध्रुव पैदा हों।


इसके साथ ही गुट निरपेक्ष आन्दोलन को भी शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है। इसे अमेरिका के प्रभाव से मुक्त कराया जाना चाहिये। इसे पाँचवें, छठे, सातवें दशकों के समान सक्रिय बनाया जाना चाहिये। इस मंच का प्रयोग अमेरिकी वर्चस्ववाद के विरूद्ध जागरूकता उत्पन्न करने के लिए होना चाहिए।


अतः इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रख कर इस तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। इसमें वे सभी साथीगण आमंत्रित है जो विश्व शान्ति व मानव कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध है और हर प्रकार के वर्चस्ववाद सैन्यवाद और कट्टरतावाद के विरूद्ध खड़े है।

संगोष्ठी का समापन पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी उदयपुर से 50 किलोमीटर दूर तहसील झाड़ोल में रखा गया है।


प्रधान सम्पादक
हिम्मत सेठ

 (संपादक)
श्रीमान श्याम अश्याम (बांसवाड़ा)
डॉ. अनिल पालीवाल
श्रीमान् मनीष मेहता (राजसमंद)
डॉ. गोपाल सहर (कपडवंज, गुजरा

सम्पादक मण्डल
प्रो. जमना लाल दशोरा
डॉ. नरेश भार्गव
डॉ. एस.बी. लाल
डॉ. हेमेन्द्र चण्डालिया

दिल्ली कार्यालय प्रभारी
फ्लेट नं. ४२०, प्लाट नं. ५०
पार्श्व  विहार, जैन मंदिर सोसायटी
गुरुद्वारा रोड, मधु विहार,
पडपड गंज बस डिपो के पास
नई दिल्ली (भारत)


2 टिप्‍पणियां:

  1. कार्यक्रम में तो अभी काफ़ी दिन हैं, फ़िर भी एक अनुरोध कि गोष्ठी में पढे़ जाने वाले पर्चों को भी यदि यहां प्रकाशित कर पाएं तो, अच्छा रहेगा।
    शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. विजय गौड़ जी,
    प्रतिक्रिया व सुझाव के लिए आभारी हूँ |

    आयोजक यदि कार्यक्रम के बाद हमें वह सामग्री उपलब्ध करवा सकेंगे तो उसे प्रकाशित करने का यत्न अवश्य किया जाएगा|

    मैंने सम्पादक जी को आपकी टिप्पणी का लिंक दे दिया है, शेष जैसा होगा, भविष्य में पता चलेगा|

    जवाब देंहटाएं

आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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