आओ भाई घर घर खेलें
-आलोक तोमर
-आलोक तोमर
आओ भाई घर घर खेलें
छोटा सा इक नीड़ बनाएँ
उसको मन से रचें,सजाएँ
खिड़की से आकाश दिखे औ'
रात को तारे घर में आएँ
एक झोंपड़ी या कुछ कमरे
जो अब तक सपनों में ठहरे
उनको फिर से रचें -रचाएँ
आओ भाई घर घर खेलें
छोटा सा एक नीड़ बनाएँ
छोटा सा एक नीड़ बनाएँ
खलिहानों और दालानों में
सब आएँ और धूम मचाएँ
जिनका जीवन ठहर गया हो
वे भी मन की रस्म निभाएँ
काली आँखें, लाल बिन्दियाँ
खूब निहारें,खूब सँवारें
जिसमें सब कुछ अपना सा हो
ऐसा एक स्वयंवर खेलें
आओ भाई घर घर खेलें
आओ भाई, खेलें...बेहतरीन सोच!!
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