भाषा की मर्यादा की रक्षा के लिए *

पुस्तक चर्चा  
भाषा की मर्यादा की रक्षा के लिए *
 


निस्संदेह समय बदल गया है और हम नवजागरण काल में नहीं उत्तरआधुनिक काल में जी रहे हैं , तथापि जिन कुछ चीज़ों की प्रासंगिकता आज भी नहीं बदली है उनमें एक है राष्ट्र और राष्ट्रभाषा का वह संबंध जिसे पारिभाषित करते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था - निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति कौ मूल / बिन निज भाषा ज्ञान के , मिटे न हिय कौ सूल. भारतेंदु की चिंता का आधार था हम भारत के लोगों का अंग्रेजी-मोह. वह अंग्रेजी-मोह अपने विकट रूप में आज भी जीवित है और भारतीय जीवनमूल्यों को हानि पहुँचाने के साथ हमारे भाषायी गौरव को लगातार क्षीण कर रहा है.यह देखकर किसी भी देशप्रेमी भारतीय को खेद ही हो सकता है कि हमारा भाषायी स्तर दिनोदिन गिरता जा रहा है तथा हमारे समाज की भाषायी समझ कुंठित हो रही है. इसमें संदेह नहीं कि हिंदी आज अंतरराष्ट्रीय भाषा है और वैधानिक रूप से विश्व भाषा की सारी योग्यताएँ उसमें हैं . प्रसन्नता की बात यह है कि अंग्रेजी - मोह के बावजूद हिंदी का प्रचार - प्रसार भी बढ रहा है. अधिक उचित यह कहना होगा कि आज के तकनीकी क्षेत्रों में उसका व्यवहार बढ़ रहा है, इससे एक बार फिर हिंदी को निर्भ्रांत रूप में व्याकरणसम्मत सिद्ध करने की चुनौती सामने है.



हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए, इस आकलन में एक बड़ी बाधा यह रही है कि भाषा के स्वरूप का ज्ञान करानेवाला हमारा व्याकरण अंग्रेजी भाषा के व्याकरणिक ढाँचे से आवश्यकता से अधिक जकड़ा हुआ है. ज़रूरत इस चीज़ कि है कि हिंदी व्याकरण को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि वह अंग्रेजी की अनुकृति लगने के स्थान पर हिंदी की प्रकृति और प्रवृत्ति का आइना बन सके. यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -


१. संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है, 
२. वह सब से अधिक सरल भाषा है, 
३. वह सब से अधिक लचीली भाषा है,  
४, वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं तथा 
५. वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है, 
 
 
लंबे समय से महसूस किए जा रहे इस अभाव की पूर्ति के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर कई तरह के प्रयास हुए हैं , परंतु डॉ. बदरीनाथ कपूर द्वारा प्रस्तुत 'नवशती हिंदी व्याकरण' इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सफल प्रतीत होता है. डॉ. बदरीनाथ कपूर हिंदी के वरिष्ठतम भाषाविदों में से हैं. वे प्रतिष्ठित कोशकार हैं तथा भाषाचिंतन के क्षेत्र में आज भी सक्रिय है. उन्होंने कई वर्ष के दीर्घ अध्यवसाय से यह व्याकरण तैयार किया है, यह जानना रोचक होगा कि कुछ समय पूर्व जब वे शारीरिक उत्पातों और व्याधियों से इस प्रकार त्रस्त थे कि ३-४ वर्ष तक उन्हें शय्याग्रस्त रहना पड़ा, तब उन्होंने व्याकरण सम्बन्धी चिंतन -मनन में ही संबल प्राप्त किया , कदाचित ऐसा संबल जिसने जीवनरक्षक औषधि का काम किया. इससे व्याकरण चिंतन के साथ उनके गहन तादात्म्य का अनुमान किया जा सकता है. विवेच्य पुस्तक उनके इसी चिंतन से प्रकट नवनीत है. यह आधुनिक हिंदी का वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया अकेला व्याकरण है जो नियमों और प्रयोगों को आमने सामने रख कर उदाहरणों के साथ सही और गलत भाषा व्यवहार की पहचान कराता है. डॉ. बदरीनाथ कपूर की यह स्थापना प्रेरणास्पद है कि - 
 
 
"व्याकरण नियमों का पुलिंदा भर नहीं होता, वह भाषाभाषियों की ज्ञान गरिमा, बुद्धि वैभव , रचना कौशल, सौंदर्य बोध, सजग प्रवृत्ति और सर्जनक्षमता का भी परिचायक होता है. अकेली 'अष्टाध्यायी' ने संस्कृत भाषा को विश्व में जितना गौरव दिलाया उतना किसी अन्य विधा के ग्रंथ ने नहीं. अतः व्याकरण पर नाक-भौंह सिकोड़ना नहीं चाहिए बल्कि उसके प्रति पूज्य भाव रखना चाहिए. व्याकरण भाषा की मर्यादा की रक्षा के लिए समाज को प्रेरित करता है."

विवेच्य पुस्तक में कुल अस्सी पाठ हैं, जिनमें व्याकरण संबंधी सभी विषय और तथ्य समाहित हैं. खास बात यह है कि हर पाठ में बाएँ पृष्ठ पर नियम और उदाहरण हैं, तथा दाहिने पृष्ठ पर अभ्यास दिए गए हैं , जिसके कारण यह पुस्तक स्वयं-शिक्षक बन गई है. आरम्भ में ही 'कुछ नवीन तथ्य' शीर्षक से हिंदी की प्रक्रति और प्रवृत्ति के उस वैशिष्ट्य को उजागर किया गया है जो इस भाषा को संस्कृत और अंग्रेजी दोनों की रूढ़ व्यवस्थाओं से स्वतंत्र अपनी व्यवस्था के निर्माण के लिए प्रेरित करता है. चाहे कर्ता की पहचान हो या कर्म की, क्रियापदों के वर्गीकरण की बात हो या संयुक्त क्रियाओं की, वाच्य की चर्चा हो या काल की - इन सभी स्तरों पर हिंदी के निजीपन को रेखांकित और व्याख्यायित करने के कारण यह व्याकरण छात्रों और अध्यापकों के साथ ही सामान्य पाठकों के लिए भी हिंदी का ठीक प्रयोग सीखने में बहुत मददगार साबितहोगा, इसमें दो राय नहीं. 
 
 
लेखक ने अब तक चले आ रहे व्याकरणों में दिए जाने वाले रूढ़ हो चुके उदाहरणों से आगे बढ़ कर हर पाठ में आधुनिक जीवन संदर्भ वाले ऐसे उदाहरण शामिल किए हैं जो पर्याप्त रोचक और सरस हैं. जैसे - वह हमारा सलामी बल्लेबाज है./वह हमारे देश की प्रधानमंत्री थीं/हमें ठंडी आइसक्रीम खाने के लिए नहीं मिली थी/मोबाइल काम कर रहा है/आतंकियों ने सिपाही पर गोली चलाई/जिनके घर जले, उन्होंने प्रदर्शन किया.



यद्यपि लेखक ने भाषा मिश्रण को खुले मन से स्वीकार किया है, तथापि ऐसे प्रयोगों की व्याकरणिकता पर भी विचार करने की आवश्यकता थी जो मानक के रूप में स्वीकृत न होते हुए भी शैलीभेद के रूप में प्रचुरता में प्रयुक्त हैं. ऐसे तमाम प्रयोगों को समेटे बिना हिंदी के बोलीय आधार को पूरी तरह संतुष्ट नहीं किया जा सकता. संभवत: चूक से ही सही पर एक ऐसा वाक्य पुस्तक में आ भी गया है -' क्रिकेट खेलने वाले देशों के लोग सचिन तेंदुलकर का नाम अवश्य सुने होंगे'.



पुस्तक की उपादेयता को तीन परिशिष्टों में दी गई शब्द सूचियों, अभ्यासों के उत्तर और विवेचित विषयों की अनुक्रमणिका ने और भी बढा दिया है. इस यथासंभव परिपूर्ण , नवीन, सरल और सरस व्याकरण को सामने लाने के लिए राजकमल प्रकाशन बधाई के पात्र हैं.



- ऋषभ देव शर्मा


*नवशती हिंदी व्याकरण /

डॉ. बदरीनाथ कपूर / 
राजकमल प्रकाशन , १-बी , नेताजी सुभाष मार्ग, 
नई दिल्ली - ११० ००२ /
२००६ / ९५ रुपये / २३६ पृष्ठ.  


5 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन एक बात औऱ कि हम अपनी ही भषा बोलने में संकोच क्यों करते है,,,,और कहीं न कहीं हिंदी के तथाकथित ठेकेदार भी इसकी बर्बादी में अहम रोल निभा रहे हैं...लेकिन कोइ हर्ज नहीं ऐसे लेखों से बल जरूर मिलता है...

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  2. व्याकरण पर अच्छी जानकारी। आज के युग में व्याकरण पर उतना अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अंग्रेज़ी में भी वही हाल हो रहा है। अब तो स्थिति यह है कि जो भाषा वहां का आम आदमी बोलता है वही सही भाषा है। उसका जीताजागता उदाहरण बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हैं जो लिंगभेद के बिना अपनी बात रखते हैं और लोगों का मनोरंजन भी करते हैं:)

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