चित्तौड़गढ़ में परिसंवाद
समय की आवारा पूँजी ऐसे समाज की रचना कर रही है जिसमें भावना और विचार के लिए कोई
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परिसंवाद में कवि-समालोचक डॉ. सत्यनारायण व्यास ने कहा कि जो साहित्य समाज के लिए उपयोगी न हो उसे साहित्य मानना भूल होगी। प्रेमचन्द की अमर कहानी ‘कफन’ को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ’कफन’ जैसी रचनाएँ साहित्य की शक्ति का असली परिचय देती हैं जिसे पढ़ने के बाद दलितों-वंचितों के प्रति हमारी दृष्टि ही बदल जाती है। डॉ. व्यास ने कहा कि साहित्य की प्रकृति कलात्मक होती है लेकिन उसकी परिणति सामाजिक ही हो सकती है। भागीदारी कर रहे डॉ. राजेन्द्र सिंघवी, गोविन्दराम शर्मा और माणिक सोनी के सवालों पर प्रो. रविभूषण ने विस्तृत चर्चा की। प्रयास के सचिव डॉ. नरेन्द्र गुप्ता ने कहा कि आवारा पूँजी हमारे आस-पास समृद्धि का छलावा जरूर पैदा कर रही है लेकिन विश्व बैंक की रिपोर्ट का सच है कि विश्व की अस्सी प्रतिशत पूँजी पर केवल पाँच प्रतिशत लोगों ने कब्जा जमा रखा है। उन्होंने इस छलावे को तोड़ने में साहित्य की भूमिका को रेखांकित किया। ‘बनास’ के सम्पादक डॉ। पल्लव ने शिक्षित समुदाय को सांस्कृतिक जागरूकता के लिए अपने दायित्व को तय करने की आवश्यकता बताई। परिसंवाद में सामाजिक कार्यकर्ता प्रीति ओझा, प्राध्यापक गुणमाला जैन, कन्हैयालाल सांवरिया, रामेश्वरलाल शर्मा ने भी भाग लिया।
इस अवसर पर चन्द्रकांता व्यास द्वारा सम्पादित राजस्थानी लोकगीतों के सद्य प्रकाशित संकलन `माँ के गीत’ का विमोचन प्रो. रविभूषण ने किया। श्रीमती व्यास ने पुस्तक के सम्पादन के अपने अनुभव बताते हुए कहा कि सांस्कृतिक प्रदूषण के दिनों में लोक की यह विरासत हमारे लिए प्रेरक सिद्ध होगी। आभार प्रदर्शित करते हुए ’सम्भावना’ के अध्यक्ष डॉ. के.सी. शर्मा ने कहा कि साहित्य की भूमिका अब स्वान्तः सुखाय से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।
माणिक सोनी,
सम्भावना, म-16, हाउसिंग बोर्ड, कुम्भानगर,
चित्तौड़गढ़-३१२००१
रविभूषण जी ने खरी बात कही..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
saarthak charchaa
जवाब देंहटाएंuttam aalekh !