कौन करेगा काली होली को रंगीली?
सभी ओर जब रंग ही रंग छितरा हो, उमंग ही उमंग भरी हो, ऐसे में जीवन की काली कारा में बन्दी -सा जीवन ढोने वालों का स्मरण कौन करता है, जिसने कभी रंग देखे तक न हों!
कोई विरला ही ऐसे जीवन को रंग से भर सकता है।
क्या हम में से कोई है ऐसा?
- कविता वाचक्नवी
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कविता जी, शायद कीर्ति चौधरी की इस कविता में आपके सवाल अपना उत्तर ढूंढ लें...
जवाब देंहटाएंशब्द पहले ही कम थे
और मुश्किल से मिलते थे
सुख-दुख की बातें करने को
जैसे एक कंगाली सी छा गई है अब?
...सर झुकाकर निकल जाएं
या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें
हवा का रुख पहचानने तक
दबाए रहें दिल में गुबार
होंठो को सी लें
और चुप की दुनिया में चले जाएं
जहां बड़े-बड़े प्रश्नचिह्नों
और खाली सतरों की ग्रेविटी है.....
बढिया और मार्मिक चित्रण।
जवाब देंहटाएंजीवन में उत्साह है, उमंग है लेकिन कभी-कभी रंग गायब हो जाते हैं और रह जाता है केवल एक रंग - काला। क्या रंग गायब होने से उत्साह समाप्त होता है? नहीं। हम किसी के भी जीवन को उत्साह से भर सकते हैं तो हम इस काले रंग को रंग-बिरंगा नहीं कर सकते? अवश्य कर सकते हैं। हम सभी संकल्प लें तो सब कुछ सम्भव है। यह देश अवश्य संकल्प लेगा।
जवाब देंहटाएंसच कहा है=== कोई विरला ही ऐसे जीवन को रंग से भर सकता है.
जवाब देंहटाएंसंतोष का विषय है की अभी दुनिया ऐसे विरलों से खाली नहीं हुई है.
कविता जी एक्स्पांड विजेट टेम्प्लेट करने की कोई जरुरत नहीं है सिर्फ ctrl+f की सहायता से ---< body >--- टैग ढूंगे और उसके ठीक निचे कोड कॉपी कर दें .कृपया --- और स्पेस हटा लें
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी डगर http://sarparast.blogspot.com
शायद ही कोई हो । कहने को हो सकता है कई लोग सामने आ जाये पर हकीकत में बहुत कम है ।
जवाब देंहटाएंकुछ कर गुजरने का हौसला हो तो क्या नहीं है संभव. ?
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास सबसे बड़ी जरुरत है . आभार.