४ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण और सम्मान समारोह
२७ जनवरी, २00९ को अपनी पुस्तक समाज-भाषाविज्ञान ( रंग-शब्दावली: निराला-काव्य ) के (तथा अन्य 3 पुस्तकों के) लोकार्पण समारोह में सम्मिलित होने के लिए कल सुबह तड़के इलाहाबाद की यात्रा पर जा रही हूँ। निस्संदेह मेरे लिए यह क्षण जाने कितनी स्मृतियों के भाव बोधन का और साधना की पूर्णाहुति जैसा है, अपितु फलश्रुति ही है। यद्यपि स्वयं इस पर कुछ कहना अपने आप में उचित तो जान नहीं पड़ता, बहुत संकोच भी हो रहा है, पुनरपि पुस्तक की प्रकाशक,ऐतिहासिक संस्था हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सहयोगी मित्रों (विशेषत:संथा के सचिव डॉ.एस.के.पाण्डेय जी की इच्छानुसार) उनकी ओर से प्राप्त जानकारी को नेट पर सुरक्षित रखने व इस बहाने सभी को सूचना देकर आमंत्रित करने का यह सुअवसर भी बार बार नहीं मिलता। एकेडेमी के अधिकारी श्री सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी जी के माध्यम व सौजन्य से प्राप्त इस सामग्री को आप से यथावत् बाँट रही हूँ व स्वयं अपनी ओर से भी कार्यक्रम में आमंत्रित कर रही हूँ।
आपकी उपस्थिति व शुभकामनाएँ मेरे लिए सुखदायी व हर्ष का कारण होंगी। इलाहाबाद में श्री ज्ञानदत्त जी पाण्डेय व श्रीमती रीता पाण्डेय जी की शुभकामनाएँ व स्नेह तो वहाँ साक्षात मिलेगा ही, ऐसा पूर्ण विश्वास है।
- कविता वाचक्नवी
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हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से हिन्दी, संस्कृत एवं उर्दू के कुछ लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों का सम्मान समारोह २७ जनवरी २००९ ,मंगलवार को एकेडेमी सभागार में अपरान्ह ४ बजे आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय मंत्री, उच्च शिक्षा, उत्तरप्रदेश डॉ. राकेश धर त्रिपाठी जी होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त जी करेंगे। इस अवसर पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है।
निवेदक
डॉ. एस. के. पाण्डेय
सचिव
हिन्दुस्तानी एकेडेमी
इलाहाबाद
१)
लेखक : गौरीशंकर चटर्जी
पृष्ठ : ३०८
मूल्य : २००.००
भारतवर्ष के मध्ययुग के इतिहास में सम्राट हर्षवर्द्धन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इस पुस्तक में हर्षवर्द्धन के वंशजों का परिचय, तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था, शासन-प्रबन्ध का वर्णन इत्यादि विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। यह पुस्तक भारत के गौरवमयी इतिहास की परम्परा का मानक है जहाँ भारतीय इतिहास एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा था।
२)
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और दिनकर का तुलनात्मक अध्ययन
लेखक : डॉ० दादूराम शर्मा
पृष्ठ : ३४४
मूल्य : २००.००
प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और दिनकर के काव्य में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीयता और युगचेतना को प्रस्तुत करते हुए उनका तुलनात्मक अनुशीलन करने का विनम्र प्रयास है। यह शोध-प्रबन्ध दोनों महान कवियों की कृतियों के प्रति गंभीर अवगाहन और साथ ही उनके अध्यवसाय के प्रति सहज ही हमारे मन में सम्मान का भाव उभारता है।
3)
सूर्य विमर्श
पृष्ठ : ३२४
मूल्य : १७५.००
पुस्तक में वैदिक वाड्.मय में सूर्य की स्थिति, उपनिषदों में सूर्य की महिमा, पुराणों में सूर्य का महत्त्व एवं लौकिक संस्कृत साहित्य में सूर्य-विषयक साहित्य पर ५२ लेखकों के विचारों को प्रस्तुत किया गया है। यह भी प्रयास किया गया है कि सूर्य का धार्मिक, ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, वास्तुशास्त्रीय, खगोलीय एवं वृष्टिविज्ञान सम्बन्धी स्वरूप पाठकों के समक्ष इस पुस्तक के माध्यम से उजागर हो।
४)
समाज - भाषाविज्ञान
रंग-शब्दावली : निराला-काव्य
लेखक : डॉ. कविता वाचक्नवी
पृष्ठ : २२५
मूल्य : १५०.००
"प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी के रंग शब्दों कीसमाज-सांस्कृतिक संबद्धता को देखने का सराहनीय प्रयास किया गया है। महाप्राण निराला का चयन हिंदी की रंग शब्दावली को खोलने में सर्वथा समर्थ है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। निराला की कविताएँ जितनी विविधरंगी हैं, रंग शब्दों का काव्यात्मक उपयोग भी उन्होंने उतनी ही अर्थछटाओं में बाँध कर किया है। इन सबका अत्यंत सम्यक् और सूक्ष्म विश्लेषण लेखिका ने करके यह जता दिया है कि कविता की आत्मा और कवि का व्यक्तित्व जब जीवन के साथ एकमेक होते हैं तब उसके इर्द-गिर्द बिखरे शब्द किस तरह काव्यार्थ को द्विगुणित कर देते हैं। वाक्य की परिधि के ऊपर जाकर यह अध्ययन प्रोक्ति-विश्लेषण का एक नया रास्ता प्रशस्त करता है। रंग शब्द हमारे जीवन का अटूट हिस्सा हैं। मूल रंग शब्दों के न जाने कितने लोकनिर्मित पर्याय हैं; और फिर रंग मिश्रण के लिए अभिव्यक्ति के अनेक तरीके हिंदी भाषा समाज अपनाता है। इन सबकी अच्छी परख इस पुस्तक में निराला के काव्य संसार के माध्यम से की गई है। इस काव्य संसार में प्रयुक्त रंग शब्दावली का वर्गीकरण अत्यंत संवेदनात्मक ढंग से किया गया है। रंगों में छिपी मनुष्य की संवेदनात्मक गहराई और सृजनात्मक ऊँचाई को मापने का यह पुस्तक सार्थक प्रयास करती है। हिंदी भाषा में निहित रंग संसार की शाब्दिकता को डाॅ. रघुवीर के सहारे सामने लाने का यत्न भी सराहनीय है। रंगों का जीवन और शब्दों का जीवन इस अध्ययन में एकरस हो गए हैं। हिंदी भाषा की शब्द संपदा और इस संपदा में आबद्ध लोकजनित, मिथकीय और सांस्कृतिक अर्थवत्ता की पकड़ से यह सिद्ध होता है कि हिंदी भाषा की व्यंजनाशक्ति का कोई ओर-छोर नहीं है। इस फैलाव को पुस्तक में मानो चिमटी से पकड़कर सही जगह पर रख दिया गया है। भाषा अध्ययन को बदरंग समझने वालों के लिए रंगों की मनोहारी छटा बिखेरने वाला कविताकेंद्रित यह अध्ययन किसी चुनौती से कम नहीं। इस तरह के साहसी और श्रमसाध्य भाषा अध्ययन का यह अनुप्रयोगात्मक तरीका पाठकों को भीतर तक सराबोर कर देगा। "
बधाई और यात्रा और समारोह की सफलता की शुभकामनाएं ! अच्छा पुस्तक परिचय ! काश मैं भी पहुँच पाता !
जवाब देंहटाएंबधाई - आयोजन की सफलता के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबधाई।
जवाब देंहटाएंकविता जी,
जवाब देंहटाएंमेरी हार्दिक बधाई। यह अवसर हम सभी के लिए गौरवास्पद है।
निराला के काव्य पर रंगों की दृष्टि से विचार करना एक अद्भुत परि़योजना है। आपके इस काम का साहित्य, मनोविज्ञान, दर्शन आदि कई दृष्टियों से बहुत महत्व है। हमें आप पर गर्व है।
रा.
सभी को बधाई
जवाब देंहटाएंऔर मुझसे पहले देने वालों को
भी मेरी बधाई।
राजकिशोर जी
हमें गर्व करने वालों
पर गर्व है।
हमारे लिए तो
आपकी टिप्पणी पढ़ना
भी हमारे लिए पर्व है।
abhi sirph badaai...post par aur bhi kuch likhnaa chaahti hoon baad main....
जवाब देंहटाएंबधाई। यात्रा, आयोजन और सबके लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंइलाहाबाद में सभी हिन्दी सेवियों व साहित्य प्रेमियों का हार्दिक स्वागत। -हिन्दुस्तानी एकेडेमी
जवाब देंहटाएंकविताजी मेरी तरफ से आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंइलाहाबाद प्रवास के दौरान के अनुभव, साहित्यिक मित्रों और इलाहाबाद के बारे में भी लिखना चहिये आपको ताकि आपके ब्लोगर मित्र भी इलाहाबाद के बारे में जान सकें।
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