मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में (२०)


अबाध
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मित्रो!

लंबे अरसे बाद मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में के सार-अंशों के इस क्र को यहाँ पुन: पिछली कड़ी से आगे आरम्भ किया जा रहा है| इस बीच राष्ट्रीय विपदा की घड़ी में केवल तद्संबंधी विषयों पर केंद्रित सामग्री छापने के संकल्प के प्रति हम प्रतिबद्ध थेउसकी पूर्ति में कई सम्मानित लेखकों ने अपने तलस्पर्शी विशदचिन्तन-प्रधान लेखों के माध्यम से हमें सहयोग दियातदर्थ हम उनके आभारी हैंसाथ ही यहाँ उस सामग्री पर अपने मत और विचार देने वाले सहयोगी पाठकों के प्रति भी आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, जिनके कहे शब्द हमें निरंतर बल देते रहे, जिनकी सराहना का एक एक वाक्य हमें हमारी प्रतिबद्धता के प्रति सचेत कराने का कार्य करता रहा हैउन विषयों पर यहाँ लेखन के क्रम को यद्यपि किंचित भी विराम नहीं दिया गया है, पुनरपि समानान्तर चलने वाले साहित्यिक क्रम को भी अनवरत बनाया जा रहा है (जो महीना- दो- महीना होल्ड पर था)|


आशा है, आपका स्नेह सहयोग पूर्ववत् मिलता रहेगा अपने विचारों से भी आप निरंतर अवगत करवाते रहेंगे


- कविता वाचक्नवी


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मणिपुरी
कविता : मेरी दृष्टि में

- डॉ. देवराज
[२०]




द्वितीय समरोत्तर मणिपुरी कविता : एक दृष्टि
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मणिपुर में एक ओर स्वतंत्रता का संग्राम चल रहा था तो दूसरी ओर समस्त विश्व भी युद्ध के व्यूह में फ़सा जा रहा था। दूसरे विश्व युद्ध ने न जाने कितने विनाशकारी संस्मरण मानव-मानस पटल पर छोडे़ हैं। समस्त मानव समाज एक जिजीविषा के दौर से गुज़र रहा था। मणिपुरी साहित्य भी इतिहास के इस मोड़ के साथ अंगडाई लेने लगा था। उस समय की साहित्यिक एवं राजनीतिक भूमिका पर दृष्टि डालते हुए डॉ. देवराज बताते हैं :-

"मणिपुरी भाषा की द्वितीय विश्वयुद्धोतर कविता को ‘आधुनिक कविता’ नाम दिया जाता है और मणिपुरी भाषा की कविता के आधुनिक काल का प्रारम्भ रोमानी मूड के कवि इ.नीलकान्त सिंह की सन १९४९ ई. में प्रकाशित कविता ‘मणिपुर’ से स्वीकार किया जाता है। इस सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य की ओर संकेत करना आवश्यक है। वह यह कि दिसम्बर, १९८७ में एच. इरावत सिंह का एक काव्य-संकलन ‘इमागी पूजा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। एच. इरावत सिंह मणिपुर में कम्यूनिस्त पार्टी के संस्थापक हैं और उनका कहना है कि ‘इमागी पूजा’ की कविताएँ सन १९४२ के काल में रची गई थीं। यदि ये रचनाएँ उसी समय प्रकाश में आ जातीं , तो निश्चय ही मणिपुरी काव्येतिहास में आधुनिक कविता के पुरस्कर्ता का श्रेय एच. इरावत सिंह को दिया जाता। अब भी यह निष्कर्ष तो निकाला ही जा सकता है कि मणिपुरी भाषा की कविता में सन ४२ के आस-पास ही वह व्याकुलता दिखाई देने लगी थी, जिसने आगे चल कर ‘मणिपुर’ जैसी युग-परिवर्तनकारी रचना का रूप लिया और सन १९४९-५० में आधुनिक कविता की नींव रखी।


"मणिपुरी भाषा की रचनात्मक स्थितियों को प्रभावित करने में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन, राजनीतिक परिवर्तन कमोबेश एक साथ चालीस के दशक में आए। इस काल में अंग्रेज़ी पढे़-लिखे उन लोगों को सामाजिक सम्मान मिलना शुरू हो गया था जिन्हें इससे पहले अंग्रेज़ी पढ़कर घर लौटने पर पुस्तके एक निर्धारित स्थान पर रख कर स्नान करने के बाद ही गृह-प्रवेश की अनुमति मिलती थी। सामाजिक रूढि़यों को समाप्त करने के प्रयास भी इसी काल में ही और स्त्री-शिक्षा का औचित्य भी इसी काल में लोगों के गले उतरने लगा। और तो और, मणिपुर को शेष भारत से भावात्मक स्तर पर जोड़नेवाला हिन्दी-प्रचार आन्दोलन भी तीस के दश्क के अन्तिम वर्षों में शुरू होकर चालीस के दशक में फला-फूला। इसी काल में मणिपुर के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाली संस्था मणिपुरी हिन्दू महासभा’का गठन हुआ जिसने बाद में ‘निखिल मणिपुर महासभा’ के नाम से कार्य किया। इस संस्था ने मणिपुर में ‘चरखा व्रत’ चलाया और इसके कार्यकर्ताओं ने महात्मा गांधी के सन्देशों तथा शिक्षाओं के सहारे विशाल राजनीतिक जागरण का अभियान चलाया।"



प्रस्तुति सहयोग : चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

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