इस्राइल का अतिवाद और शांति की पराजय
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
फलस्तीन और इस्राइल के बीच चल रही मुठभेड़ किसी युद्ध से कम नहीं हैं। 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हुए हैं। गाजा-क्षेत्र का कौनसा नामी-गिरामी भवन है, जिसे इस्राइली राकेटों ने खंडहर में नहीं बदल दिया है। हते भर से चला यह युद्ध रूकने का नाम नहीं ले रहा है। सुरक्षा परिषद् की युद्वबंदी की अपील का कोई असर नहीं हैं। अमेरिका अपने पट्ठे इस्राइल की पीठ ठोक रहा है और रूस समेत यूरोपीय राष्ट्र दोनों पक्षों से शांति की अपील किए जा रहे हैं। यदि सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो अगले एक-दो हफते बाद गाजा की पहचान ही खत्म हो जाएगी। इस्राइल हमास को उखाड़ने के नाम पर गाजा के 15 लाख फलस्तीनियों को अपने वतन में ही शरणार्थी बना देगा। दुनिया की कोई ताकत नहीं है, जो इस्राइल को रोक सके।
आखिर इस्राइल इतना बेकाबू क्यों हो गया है ? क्या वजह है कि उसने गाजा-क्षेत्र पर राकेट-वर्षा शुरू कर दी ? इतने एकतरफा विनाश के बावजूद वह क्यों थम नहीं रहा है ? इस्राइल और हमास के बीच पिछले तीन साल में कोई युद्ध नहीं छिड़ा, यह अपने आप में आश्चर्य है। जनवरी 2006 में जब यासर अराफात की फतह पार्टी को संसदीय चुनाव में हराकर हमास पार्टी सत्तारूढ़ हुई थी तो उसने खुले-आम घोषणा की थी कि वह इस्राइल से तब तक बात नहीं करेगी, जब तक वह फलस्तीनी राज्य की स्वतंत्रता और संप्रभुता को मान्यता नहीं देगा। इसमें शक नहीं कि हमास ने लोकतंत्र का रास्ता तो पकड़ा लेकिन उसके मुँह से आतंकवाद के शोले लगातार बरसते रहे। फतह पार्टी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास पहले से अपने पद पर विराजमान थे। अब राष्ट्रपति फतह का और प्रधानमंत्री हमास का हो गया। दोनों की नीतियाँ अलग-अलग थीं। दोनों के प्रति इस्राइल और अमेरिका के रूख अलग-अलग हो गए। अब्बास के साथ ये दोनों राष्ट्र बातचीत चला रहे थे लेकिन हमास को वे बिल्कुल रद्द करते रहे। हमास के कार्यकर्त्ताओं ने गाजा-क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और वहाँ अपनी समानांतर सरकार बना ली। सउदी अरब और मिस्र की सहायता से फतह और हमास में कामचलाऊ संबंध स्थापित हो गया। लेकिन हमास को हमेशा यह शिकायत रही कि गाजा खाली करने के बावजूद इस्राइल गाजा में लगातार दखलंदाजी करता रहा है। गाजा का दम घोंटने के लिए उसने क्या-क्या पैंतरे नहीं अपनाए। गाजा की रसद बंद कर दी। अंतरराष्ट्रीय सहायता उस तक पहुँचने नहीं दी। सीमा-कर गाजा की सरकार को देने के बदल इस्राइल हड़प गया। गाजा के 15 लाख लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए। राष्ट्रपति अब्बास ने अमेरिकी इशारे पर फलस्तीन की चुनी हुई हमास सरकार को बर्खास्त कर दिया। इस्राइल का एक मात्र लक्ष्य यह रह गया कि गाजा में सक्रिय हमास के आखिरी निशान को भी उखाड़ फेंका जाए।
ऐसी स्थिति में हमास ने जून 2007 में तख्ता-पलट कर दिया और गाजा की सत्ता अपने हाथ में ले ली। यह जले पर नमक छिड़कना हुआ। इस्राइल ने गाजा का टेंटुआ दुबारा कसना शुरू कर दिया। दोनों पक्ष आक्रामक हो गए। दोनों एक-दूसरे को खत्म करने की तैयारी में जुट गए। कहाँ इस्राइल और कहाँ हमास ? लेकिन इस बार हमास ने काफी तैयारी कर डाली। गाजा-क्षेत्र को ईरानी राकेटों का भंडार बना दिया। नौजवानों के सैकड़ों आत्मघाती दस्ते तैयार किए। गाजा को सैन्य-छावनी में बदल दिया। गाजा में बाहर से रोज आनेवाले 750 ट्रकों को रोक दिया गया। मिस्र और इस्राइल में खुलनेवाले गाजा के दरवाजे बंद कर दिए गए। जून 2008 से शुरू हुए युद्ध-विराम को आगे होकर हमास ने दिसंबर में तोड़ दिया। खिसियाकर उसने इस्राइल के कुछ सीमावर्ती शहर पर रॉकेट बरसा दिए। इस्राइल ने सख्त चेतावनी दी लेकिन ईरान और सउदी अरब की शै पर मस्ताए हुए हमास नेताओं ने कोई ध्यान नहीं दिया। जवाब में इस्राइल ने हमेशा की तरह मक्खी मारने के लिए हथौड़ा चला दिया। उसका लक्ष्य हमास के उकसावे का जवाब देना भर नहीं है बल्कि हमास को जड़मूल से उखाड़ना है। हमास को उखाड़ने के चक्कर में इस्राइल ने गाजा के 15 लाख लोगों का जीवन नरक बना दिया है। दो डालर रोज से भी कम पर गुजारा करनेवाले ये सब लोग हमास के समर्थक नहीं हैं लेकिन वे सब युद्ध का शिकार बनने के लिए मजबूर हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!