आतंकवादी अड्डों की शल्यक्रिया जरूरी
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पाकिस्तान ने युद्ध की पूरी तैयारी कर ली है। लाहौर, कराची और इस्लामाबाद पर उसके हवाई जहाजों ने पहरा देना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी और सेनापति अशफाक परवेज कयानी ने खुले-आम घोषणा कर दी है कि वे किसी भी हमले का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। तालिबान और इस्लामी तत्वों ने भारत के विरूद्ध पाकिस्तान सरकार का साथ देने का एलान किया है। पाकिस्तान के सभी राजनीतिक दल मिलकर दुश्मन' के विरूद्ध एकजुट हो गए हैं। उन्हें आशंका है कि भारत हवाई हमला करेगा। आतंकवादी अड्डे जहाँ-जहाँ होंगे, भारत वहाँ मिसाइल और बम गिराएगा। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने तो घुमा-फिराकर यह भी कह दिया है कि यह मत भूलो कि पाकिस्तान के पास भी परमाणु बम है।
भारत के प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि हम युद्ध नहीं करना चाहते। इसके बावजूद पाकिस्तान में युद्व के नगाड़े क्यों बजने लगे हैं ? इसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला तो यह कि अगर पाकिस्तान में युद्ध का माहौल खड़ा नहीं किया गया तो फौज और आईएसआई को कौन पूछेगा ? लोगों का ध्यान आतंकवादियों पर केंद्रित हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना पड़ेगा। गैर-फौजी सरकार का पलड़ा भारी हो जाएगा। आतंकवाद से त्रस्त पाकिस्तान की जनता आसिफ़ जरदारी जैसे नाम-मात्र के राष्ट्रपति को सचमुच इस लायक बना देगी कि वह अपने फैसले खुद कर सकें। युद्ध के नगाड़े बजते ही आतंकवाद का मुद्दा दरकिनार हो गया और राष्ट्ररक्षा मुख्य मुद्दा बन गया। लोकतांत्रिक सरकार नीचे चली गई और फौज दुबारा ऊपर आ गई। युद्ध के माहौल का दूसरा लाभ यह है कि अंतरराष्ट्रीय जगत को गुमराह किया जा सकता है। पाकिस्तान सारे संसार के सामने यह यक्ष-प्रश्न खड़ा करना चाहता है कि पहले आप परमाणु-युद्ध रोकेंगे या आतंकियों को पकड़ेंगे ? आतंकियों को तो हम पकड़ ही रहे हैं। आप पहले भारत को थामिए। युद्ध का खतरा दिखाकर पाकिस्तान सारे विश्व में भारत-विरोधी हवा फैलाना चाहता है। युद्ध के खतरे को भुनाने का एक तीसरा दांव भी है। वह यह कि यदि हमें भारत से लड़ना पड़ा तो अफगान-सीमांत पर डटी हमारी फौजों को भारतीय सीमांत पर तैनात करना होगा याने पिछले आठ साल से वहाँ अमेरिका की जो सेवा हो रही थी, वह बंद हो जाएगी। इसका कारण भारत की धमकी ही है। इसलिए, हे कृपानिधान, बुश महोदय, भारत को धमकाइए। हमारे खातिर नहीं, अमेरिका की खातिर धमकाइए !
पाकिस्तान की यह चाल सफल हुए बिना नहीं रहेगी। पाकिस्तानी नेताओं को यह पता है कि हिंदुस्तानी नेता कितने पानी में हैं। अमेरिका को नाराज करने की हिम्मत भारत के नेताओं में नहीं है। अमेरिका किसी भी क़ीमत पर भारत-पाक युद्ध नहीं चाहता है। भारत जब-जब भारी पड़ा, अमेरिका ने पाकिस्तान को टेका लगाया है। अब भी अमेरिका चाहेगा कि सिर्फ गीदड़भभकियों से काम चल जाए। अब मुंबई-हमले को एक माह हो रहा है, कौनसी धमकी काम आ रही है ? इस बीच अमेरिकी सेनापति मुलेन दो बार पाकिस्तान हो आए हैं। उनकी कौन सुन रहा है ? ओबामा, बुश, राइस - सबकी गुहार चिकने घड़े पर से फिसलती जा रही है। पाकिस्तान की सरकार ने सुरक्षा परिषद् को भी चकमा दे दिया है। आतंकवादी अड्डों को खत्म करने और चारों कुख्यात आतंकवादियों को पकड़ने की बजाय वह रोज आँख मिचौनी खेल रही है। जरदारी और गिलानी सारी दुनिया को बेवकूफ बनाने में लगे हुए हैं। दोनों की छवि मसखरों की-सी हो गई है। पाकिस्तानी जनता भी उन पर हँस रही है। वे दोनों भारत से अब भी प्रमाण माँग रहे हैं। उनके अपने अखबारों और चैनलों ने जो प्रमाण जग-जाहिर किए हैं, उन्हें भी वे झुठला रहे हैं। मियाँ नवाज शरीफ तक पल्टी खा गए हैं।
ऐसी स्थिति में भारत क्या करे ? क्या वह पाकिस्तान पर सीधा हमला बोल दे ? यदि भारत सरकार सिर्फ गीदड़भभकियाँ ही देती रही तो हमारे मंत्रियों और नेताओं का घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा। कुछ ही हतों में ऐसे हालात बन जाएँगे कि खाली-पीली बोम मारनेवाले नेताओं को जनता पकड़-पकड़कर मारेगी। नेताओं को यह पता है। इसीलिए वे गरम-नरम, दोनों धाराएँ साथ-साथ चलाते रहते हैं। वे स्वयं काफी दिग्भ्रमित मालूम पड़ते हैं। प्रधानमंत्री एक बात कहते हैं तो विदेश मंत्री दूसरी बात और रक्षा मंत्री तीसरी ! ये सब नेता यह क्यों नहीं कहते कि हमें पाकिस्तान से युद्ध नहीं करना है। हमें सिर्फ आतंकवाद से लड़ना है। पाकिस्तान हमारा साथ दे। भारत और पाकिस्तान, हम दोनों मिलकर आतंकवाद का सफाया करेंगे। वास्तव में प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे एक विशेष दूत पाकिस्तान भेजें, जो वहाँ के सभी प्रमुख नेताओं से मिले और उनके गले यह तर्क उतारे। आज टीवी चैनल ऐसे माध्यम हैं, जिनसे लाखों पाकिस्तानी घरों में सीधे पहुँचा जा सकता है। यदि भारत सरकार सचमुच आतंकवादी अड्डों पर शल्य-क्रिया करना चाहती है तो उसे विश्व जनमत के साथ-साथ पाकिस्तानी जनता और नेताओं को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। यदि पाकिस्तान की सरकार युद्ध का हौवा खड़ा करने में सफल हो गई तो आतंकवादियों के विरूद्ध की जानेवाली शल्य-क्रिया को लकवा लग सकता है और बाद में भारत को कूटनीतिक मात खाने के लिए भी तैयार रहना होगा।
फिलहाल आतंकवादी अड्डों पर शल्य-क्रिया करने के पहले भारत को पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद करना होगा। उससे सारे संबंध तोड़ने होंगे। उसे विश्व-समाज के सामने पाकिस्तानी सरकार और आतंकवादियों की मिलीभगत का भंडाफोड़ करना होगा। पाकिस्तान को आतंकवादी राज्य घोषित करवाना होगा। भारत को पाकिस्तान के विरूद्ध सुरक्षा परिषद से वैसे ही प्रतिबंधों की माँग करनी चाहिए, जैसे कि तालिबानी अफगानिस्तान, सद्दामी एराक और ईरान पर लगाए गए थे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अमेरिका से मिलनेवाले अरबों डॉलरों की आवक जैसे ही बंद हुई, पाकिस्तान की फौज और सरकार, दोनों के होश फाख्ता हो जाएँगे। पाकिस्तान की बेकसूर जनता को कुछ तक्लीफ़ तो भुगतनी होगी लेकिन उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। निकम्मे नेताओं और निरंकुश फौज को अपनी छाती पर बिठाने का कुछ खामियाजा तो उसे भुगतना ही होगा।
पिछले एक माह का सबक यह है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। भारत की क्या, अमेरिकियों की बातों का भी कोई असर नहीं हो रहा है। यह भी ठीक से पता नहीं कि अमेरिकी नेता जो माइक पर बोलते हैं, वही बात क्या वे पाकिस्तानी नेताओं के कान में भी बोलते हैं ? अगर बोलते हैं तो उसका पालन न होने पर वे क्या कर रहे हैं ? अब उन्हें कुछ करने के लिए मजबूर किया जाए। पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद करने के लिए अगर वे तैयार न हों तो भारत अपना वक्त खराब क्यों करे ? भारत शल्य-क्रिया की तैयारी करे, कम से कम तथाकथित आजाद कश्मीर में तो करे ही, जिसे पाकिस्तान स्वतंत्र राष्ट्र' कहता है। वह न राष्ट्र है, न राज्य है। वह संप्रभु क्षेत्र भी नहीं है। वह अराजक क्षेत्र है। वह आतंकवाद का विराट् अड्डा है।
भारत के प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि हम युद्ध नहीं करना चाहते। इसके बावजूद पाकिस्तान में युद्व के नगाड़े क्यों बजने लगे हैं ? इसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला तो यह कि अगर पाकिस्तान में युद्ध का माहौल खड़ा नहीं किया गया तो फौज और आईएसआई को कौन पूछेगा ? लोगों का ध्यान आतंकवादियों पर केंद्रित हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना पड़ेगा। गैर-फौजी सरकार का पलड़ा भारी हो जाएगा। आतंकवाद से त्रस्त पाकिस्तान की जनता आसिफ़ जरदारी जैसे नाम-मात्र के राष्ट्रपति को सचमुच इस लायक बना देगी कि वह अपने फैसले खुद कर सकें। युद्ध के नगाड़े बजते ही आतंकवाद का मुद्दा दरकिनार हो गया और राष्ट्ररक्षा मुख्य मुद्दा बन गया। लोकतांत्रिक सरकार नीचे चली गई और फौज दुबारा ऊपर आ गई। युद्ध के माहौल का दूसरा लाभ यह है कि अंतरराष्ट्रीय जगत को गुमराह किया जा सकता है। पाकिस्तान सारे संसार के सामने यह यक्ष-प्रश्न खड़ा करना चाहता है कि पहले आप परमाणु-युद्ध रोकेंगे या आतंकियों को पकड़ेंगे ? आतंकियों को तो हम पकड़ ही रहे हैं। आप पहले भारत को थामिए। युद्ध का खतरा दिखाकर पाकिस्तान सारे विश्व में भारत-विरोधी हवा फैलाना चाहता है। युद्ध के खतरे को भुनाने का एक तीसरा दांव भी है। वह यह कि यदि हमें भारत से लड़ना पड़ा तो अफगान-सीमांत पर डटी हमारी फौजों को भारतीय सीमांत पर तैनात करना होगा याने पिछले आठ साल से वहाँ अमेरिका की जो सेवा हो रही थी, वह बंद हो जाएगी। इसका कारण भारत की धमकी ही है। इसलिए, हे कृपानिधान, बुश महोदय, भारत को धमकाइए। हमारे खातिर नहीं, अमेरिका की खातिर धमकाइए !
पाकिस्तान की यह चाल सफल हुए बिना नहीं रहेगी। पाकिस्तानी नेताओं को यह पता है कि हिंदुस्तानी नेता कितने पानी में हैं। अमेरिका को नाराज करने की हिम्मत भारत के नेताओं में नहीं है। अमेरिका किसी भी क़ीमत पर भारत-पाक युद्ध नहीं चाहता है। भारत जब-जब भारी पड़ा, अमेरिका ने पाकिस्तान को टेका लगाया है। अब भी अमेरिका चाहेगा कि सिर्फ गीदड़भभकियों से काम चल जाए। अब मुंबई-हमले को एक माह हो रहा है, कौनसी धमकी काम आ रही है ? इस बीच अमेरिकी सेनापति मुलेन दो बार पाकिस्तान हो आए हैं। उनकी कौन सुन रहा है ? ओबामा, बुश, राइस - सबकी गुहार चिकने घड़े पर से फिसलती जा रही है। पाकिस्तान की सरकार ने सुरक्षा परिषद् को भी चकमा दे दिया है। आतंकवादी अड्डों को खत्म करने और चारों कुख्यात आतंकवादियों को पकड़ने की बजाय वह रोज आँख मिचौनी खेल रही है। जरदारी और गिलानी सारी दुनिया को बेवकूफ बनाने में लगे हुए हैं। दोनों की छवि मसखरों की-सी हो गई है। पाकिस्तानी जनता भी उन पर हँस रही है। वे दोनों भारत से अब भी प्रमाण माँग रहे हैं। उनके अपने अखबारों और चैनलों ने जो प्रमाण जग-जाहिर किए हैं, उन्हें भी वे झुठला रहे हैं। मियाँ नवाज शरीफ तक पल्टी खा गए हैं।
ऐसी स्थिति में भारत क्या करे ? क्या वह पाकिस्तान पर सीधा हमला बोल दे ? यदि भारत सरकार सिर्फ गीदड़भभकियाँ ही देती रही तो हमारे मंत्रियों और नेताओं का घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा। कुछ ही हतों में ऐसे हालात बन जाएँगे कि खाली-पीली बोम मारनेवाले नेताओं को जनता पकड़-पकड़कर मारेगी। नेताओं को यह पता है। इसीलिए वे गरम-नरम, दोनों धाराएँ साथ-साथ चलाते रहते हैं। वे स्वयं काफी दिग्भ्रमित मालूम पड़ते हैं। प्रधानमंत्री एक बात कहते हैं तो विदेश मंत्री दूसरी बात और रक्षा मंत्री तीसरी ! ये सब नेता यह क्यों नहीं कहते कि हमें पाकिस्तान से युद्ध नहीं करना है। हमें सिर्फ आतंकवाद से लड़ना है। पाकिस्तान हमारा साथ दे। भारत और पाकिस्तान, हम दोनों मिलकर आतंकवाद का सफाया करेंगे। वास्तव में प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे एक विशेष दूत पाकिस्तान भेजें, जो वहाँ के सभी प्रमुख नेताओं से मिले और उनके गले यह तर्क उतारे। आज टीवी चैनल ऐसे माध्यम हैं, जिनसे लाखों पाकिस्तानी घरों में सीधे पहुँचा जा सकता है। यदि भारत सरकार सचमुच आतंकवादी अड्डों पर शल्य-क्रिया करना चाहती है तो उसे विश्व जनमत के साथ-साथ पाकिस्तानी जनता और नेताओं को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। यदि पाकिस्तान की सरकार युद्ध का हौवा खड़ा करने में सफल हो गई तो आतंकवादियों के विरूद्ध की जानेवाली शल्य-क्रिया को लकवा लग सकता है और बाद में भारत को कूटनीतिक मात खाने के लिए भी तैयार रहना होगा।
फिलहाल आतंकवादी अड्डों पर शल्य-क्रिया करने के पहले भारत को पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद करना होगा। उससे सारे संबंध तोड़ने होंगे। उसे विश्व-समाज के सामने पाकिस्तानी सरकार और आतंकवादियों की मिलीभगत का भंडाफोड़ करना होगा। पाकिस्तान को आतंकवादी राज्य घोषित करवाना होगा। भारत को पाकिस्तान के विरूद्ध सुरक्षा परिषद से वैसे ही प्रतिबंधों की माँग करनी चाहिए, जैसे कि तालिबानी अफगानिस्तान, सद्दामी एराक और ईरान पर लगाए गए थे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अमेरिका से मिलनेवाले अरबों डॉलरों की आवक जैसे ही बंद हुई, पाकिस्तान की फौज और सरकार, दोनों के होश फाख्ता हो जाएँगे। पाकिस्तान की बेकसूर जनता को कुछ तक्लीफ़ तो भुगतनी होगी लेकिन उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। निकम्मे नेताओं और निरंकुश फौज को अपनी छाती पर बिठाने का कुछ खामियाजा तो उसे भुगतना ही होगा।
पिछले एक माह का सबक यह है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। भारत की क्या, अमेरिकियों की बातों का भी कोई असर नहीं हो रहा है। यह भी ठीक से पता नहीं कि अमेरिकी नेता जो माइक पर बोलते हैं, वही बात क्या वे पाकिस्तानी नेताओं के कान में भी बोलते हैं ? अगर बोलते हैं तो उसका पालन न होने पर वे क्या कर रहे हैं ? अब उन्हें कुछ करने के लिए मजबूर किया जाए। पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद करने के लिए अगर वे तैयार न हों तो भारत अपना वक्त खराब क्यों करे ? भारत शल्य-क्रिया की तैयारी करे, कम से कम तथाकथित आजाद कश्मीर में तो करे ही, जिसे पाकिस्तान स्वतंत्र राष्ट्र' कहता है। वह न राष्ट्र है, न राज्य है। वह संप्रभु क्षेत्र भी नहीं है। वह अराजक क्षेत्र है। वह आतंकवाद का विराट् अड्डा है।
लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष है।
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
लेकिन फिर वही ढुलमुल नीति चालू .. मंगलमय हो नववर्ष कविता जी आप को और वैदिक जी को इस प्रखर अभिव्यक्ति के लिए !
जवाब देंहटाएंशल्य क्रिया के लिये डाक्टर किधर मिलेगा जी!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर तर्क संगत आलेख है. जो सुझाव भी दिए हैं वे एकदम प्रॅक्टिकल हैं. आभार. नव वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.
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