अब न बालों और गालों की कथा लिखिए
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- कविता वाचक्नवी
आज की प्रविष्टि के साथ मैं यहाँ जोड़ना चाहती हूँ कि हिन्दी-भारत पर २६ नवम्बर की घटना के समय जो भी साहित्यिक सामग्री प्रस्तुत की जा रही थी, उसे अभी फिलहाल कुछ समय के लिए स्थगित रखा गया हुआ है| राष्ट्र की सामयिक आपदा को देखते हुए व उसके प्रति अपने उत्तरदायित्व के निर्वाह की भावना से कम से कम कोई तो एक मंच हमें ऐसा सुरक्षित रखना चाहिए जहाँ वरीयताओं में सब से पूर्व वैश्विक परिदृश्य में व्यक्ति की अपनी अस्मिता और उस अस्मिता के आधार के सर्वोच्च प्रश्नों को प्राथमिकता जाए। ऐसे ही तथ्यों को केन्द्र में रख कर यहाँ प्रभु जोशी जी की कथा (एक चुप्पी क्रॉस पर चढ़ी) के उत्तर भाग (पहली कहानी के लिखे जाने की कहानी) का वृत्त स्थगित रखा गया है, इसी प्रकार प्रो. देवराज की पुस्तक `मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में' की प्रस्तुति को भी इसी कारण स्थगित किया गया है ।
देश के लिए आ पड़ी इस विषम घड़ी में जनमानसिकता के बहाव को दिशा देने की दृष्टि से समाज व देश के प्रति अपने उत्तर दायित्व के निर्वहन करने की भावना इसके मूल में है।यह संभव नहीं कि जब देश की सुरक्षा में प्राण देने वालों के घर में निवाला गले से नीचे उतारना तक आत्मरति लगने जैसी परिस्थिति है, सर्वस्व उजड़ गया है जिनके आँगन का ( मेरे आँगन की खुशियाँ सुरक्षित रखने के लिए ) , तब अपने मनोरंजन व कलाओं के आनंद उठाने में लीन रहा जाए। ऐसे समय हम सब की प्राथमिकता अपनी राष्ट्रीय वरीयताओं को मुख्यधारा में बनाए रखने की है। अस्तु।
इसी क्रम में तेवरी काव्यान्दोलन के प्रणेता डॉ. ऋषभ देव शर्मा की पुस्तक से इस भावना को व्यक्त करने वाली एक तेवरी प्रस्तुत है व साथ ही डॉ. वेदप्रताप वैदिक के यत्नों से आहूत गंभीर सामयिक प्रश्नों पर विमर्श करने के लिए आयोजित की जा रही परिचर्चा में भागीदारी का आमंत्रण भी। जो भी इस वैचारिक परिचर्चा से सीधे जुड़ना चाहें उनके लिए पूरी जानकारी संलग्न आमंत्रण पत्र में है |
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देश : एक तेवरी
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- ऋषभदेव शर्मा
अब न बालों और गालों की कथा लिखिए
देश लिखिए, देश का असली पता लिखिए
एक जंगल, भय अनेकों, बघनखे, खंजर
नाग कीले जायँ ऐसी सभ्यता लिखिए
शोरगुल में धर्म के, भगवान के, यारो!
आदमी होता कहाँ-कब लापता ? लिखिए
बालकों के दूध में किसने मिलाया विष ?
कौन अपराधी यहाँ ? किसकी ख़ता ? लिखिए
वे लड़ाते हैं युगों से शब्दकोषों को
जो मिलादे हर हृदय वह सरलता लिखिए
एक आँगन, सौ दरारें, भीत दीवारें
साजिशों के सामने अब बंधुता लिखिए
लोग नक्शे के निरंतर कर रहे टुकड़े
इसलिए यदि लिख सकें तो एकता लिखिए
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आमंत्रण
- डॉ.वेदप्रताप वैदिक
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'शोर गुल में धर्म के……'
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
सुंदर विचार पर विषाद में कब तक रहिएगा - कोई समय सीमा
जवाब देंहटाएं@ P.N.Subramanian
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय संकट में दैशिक दायित्व को आप विषाद कहते हैं? हद्द है! यह तो ओज जगाने की अलख का समय है जनाब। न शोक का,न विषाद का।
रास रंग और कला के आनन्द का अर्थ जानने के लिए जरा उनके दरवाजे तक जाइए जिनके अपनों की चिता की आग भी ठण्डी नहीं हुई, हमारी हिफ़ाजत करते हुए। तब भी हमारी रगों का खून गर्म नहीं होता तो जरूर यह खून नहीं ही होगा।