इस आग को जलाए व जिलाए रखना चाहती हूँ
- कविता वाचक्नवी
- कविता वाचक्नवी
कल मैंने एक लेख पढ़ा और उसे अपने समूह के सभी साथियों के साथ बाँटने की इच्छा से हिन्दी भारत समूह पर भेजा । उक्त लिंक पर लगे लेख को भेजने के बाद उस पर कुछ प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं जिनमें से एक प्रतिक्रिया पर समूह की संचालक होने के नाते उत्तरदायित्व के कारण मुझे प्रत्युत्तर देना था। उस बहाने जो लिखा उन्हीं अपने विचारों को लिख रही हूँ . यह मेलाचार अधिकांश अर्थों में सामयिक घटनाक्रम पर केंद्रित है सो उसे समूह के इस अपने ब्लॉग पर भी गैर सदस्यों के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ। अपने इस पत्र के अंत में मूल पत्रों को भी नीचे प्रस्तुत किया है ताकि सभी को पूरा सन्दर्भ पता चल सके।
यहाँ नीचे प्रस्तुत है उस अपने पत्र का अविकल पाठ -
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अनूप जी, राजीव जी व मित्रो !
आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद। अनूप जी की समूह के प्रति सद्भावना के लिए चिन्तित होना स्वाभाविक है, वे समूह के आरम्भ से ही हमारे साथ जुड़े हुए हैं व समूह के प्रति सदाशयता रखते हैं - ऐसा मेरा मानना है।
१) - जिस लेख का उल्लेख का किया जा रहा है, वह लेख जिसका व जहाँ से है, वह उस के आरम्भ में ही लिंकित होने से स्पष्ट हो जाना चाहिए था।
२)- वैसे तो लेख जिसका होता है, उस पर कुछ कहने का अधिकार उसी का होता है, किन्तु क्योंकि समूह पर मेरे द्वारा भेजा गया है तो अनूप जी की आपत्ति का औचित्य ठीक ही है। वैसे अनूप जी ! आपका सन्दर्भित सन्देश मैंने यथावत् लेखक को भेज दिया था व आशा है कि आपको सीधे आपके पते पर कुछ उत्तर आया होगा, अन्यथा जो भी कोई सदस्य उस विषय में विशेष सम्वाद के इच्छुक हों, वे लेख की आरम्भिक शीर्षात्मक पंक्ति को क्लिक कर के लेख तक पहुँच सकते हैं।
उक्त लेख के लेखक का समूह पर स्वयं कोई उत्तर भेजना संभव नहीं है क्योंकि वे इस समूह के सदस्य नहीं हैं और सदस्यता के बिना कोई भी समूह में लिख या पढ़ नहीं सकता है - यह तो आप सभी जानते ही हैं।
३)- अब रही उक्त लेख की सामग्री द्वारा निष्कर्ष देने की बात। उक्त सन्दर्भ में २-३ बातें ध्यान देनी होंगी।
क) - लेख में किसी प्रकार का कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया है, केवल तथ्य, घटनाक्रम, आंकड़ या सन्दर्भ दिए गए हैं
ख) - उक्त लेख में केवल गान्धी परिवार को शत्रु या आरोपित नहीं किया गया है, यदि ऐसा होता तो श्रीमती गान्धी, संजय व राजीव की मृत्यु को प्रश्नांकित न किया गया होता। उनकी मृत्यु के प्रति भी समान भाव से संशय की स्थिति दिखाने का आशय ही यही है कि लेख में केवल घटनाक्रम को ‘इस’ दृष्टिकोण से भी देखने वाले हैं - की दृष्टि से क्रमवार प्रस्तुत किया गया है।
और क्यों न भला इस तरह से या इस प्रकार से लोग सोचें? कूटनीतिक दृष्टि से पूरी तरह असफल व नकारा देश के इतिहास को लोग खंगालना चाहते हैं.. उसके अर्थ खोजना चाहते हैं तो उन्हें खोजने की ओर क्यों न आगे प्रेरित किया जाए? यदि ऐसा कोई अर्थ उस सारे घटनाक्रम में नहीं है तो उस से विचलित होने का कोई कारण ही नहीं है।
देश में लगी हुई आग के बाद जब हर कोई उद्विग्न व स्वाधीन भारत के इतिहास में पहली बार जनता की ओर से उठे विद्रोह की घड़ी का साक्षी है, तो क्यों नहीं जनता इस देश के दुर्भाग्यों की पड़ताल कर सकती? ऐसे में हम बुद्धिजीवियों का काम है कि इस आग को जलाए रखने में अपना सहयोग करें, ताकि सच्चे लोक - तन्त्र का प्रमाण संसार को दिया जा सकें। अगर अमेरिका में ओबामा की जीत लोक तंत्र है तो भारत में जनता का यह पहला विद्रोह लोक तंत्र क्यों नहीं है?
ग)- कल ही मुझे हम से तीन दशक वरिष्ठ एक साहित्य व वैचारिकी के प्रमुख हस्ताक्षर रहे सज्जन का एक पत्र (प्रतिलिपि) मिला है - उसे भी यहाँ उद्धृत कर रही हूँ, देखिएगा कि कैसे लोग इस जन तंत्र से आशा लगाए बैठे हैं।
" इधर मैं हिन्दी साहित्य की दुनिया की हलचलों से कुछ मुक्त ही रहा हूं. इसका कारण मेरे भीतर यह मज़बूत होती गयी धारणा है यह दुनिया अब वह नहीं रही है जिसमे हमने तीन दशक पहले एक शुरुआत की थी.मुझे यह माहौल अब बहुत स्फ़ूर्ति नहीं देता.यह यकीनन मेरी अपनी सीमा ही है.कभी कभी चमकती रोशनियों से दूर गुमनामी के अंधेरों में चले जाना ज़्यादा राहत देता है.मैं यूं भी बहुत प्रतिभाशाली नहीं हूं.बहरहाल.
२६/११ की आतन्कवादी घटनाओं का महत्व इस बात में है कि इसके परिणाम स्वरूप स्वतन्त्र भारत के ६० वर्ष के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि एक विराट नागरिक असंतोष समूचे राजनीतिक ढांचे के प्रति है और प्रतिरोध की यह स्थिति किसी इस पार्टी या उस पार्टी के समर्थन या विरोध से ऊपर उठ कर आकार ले रही है।विकल्प की यह चाहत कितनी दूर तक जाती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा. बौद्धिक और कलाकार वर्ग यदि इन बदलती हुई स्थितियों को समझ पाता है तो तो उसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं.उसे जनता के इस असंतोष को जिलाये रखने का काम करना होगा.फिलहाल तो हमारा बौद्धिक और कलाकार .अपने अपने टुच्चे स्वार्थो की सीमाओं के भीतर ही कैद दिखयी देता हैऔर उसकी भूमिका बहुत सीमित है.
उदय प्रकश का आपने ज़िक्र किया है वे एक अच्छे कथाकार हैं. उनकी कुछ कहानियां मुझे पसन्द है पर मुझे यह भी लगता है कि इस समय कोई भी कथाकर निर्मल वर्मा या रेणु जितना समर्थ नहीं है.वे तो कुछ दूसरी ही मिट्टी के बने लोग थे.
शेष ठीक है. अपने समाचार देंगे.
अभिवादन सहित "
घ) रही बुद्धिजीवी और विशिष्ट या सार्थक लेखन की बात, तो एक उदाहरण पर्याप्त होगा। नागार्जुन अपने काव्यावदान के लिए सुविख्यात हैं कि कैसे क्लासिक परम्परा के कवि-रचनाकर वे थे। उनका कवि से भी बहुत कुछ अधिक होने का परिचय आशा है समूह के साथियों को व सभी प्रबुद्ध जनों को पता ही होगा कि वे कैसे संस्कृत व मैथिली परम्परा के विज्ञ विद्वान् थे। जो लोग न जानते हों वे जान लें कि आपत्काल में इन्हीं बाबा नागार्जुन ने कैसे सड़कों पर उतर कर एक दम आम आदमी व सफ़ेद कॊलर वालों के विचार से तो अति निम्न स्तर तक जाकर साईकिल रिक्शा पर घंटों -दिनों खड़े हो कर व स्वयं हाथ में बिना बिजली के चलने वाला भोंपू तक लेकर उछल-उछल कर कैसी कैसी वाणी और क्या क्या शब्द प्रयोग किए थे। सफ़ेद कॊलर वाले उन्हें सुन लें तो किसी को विश्वास न हो कि क्या बाबा नागर्जुन ऐसी गालियों वाले भाषा का प्रयोग भी कर सकते हैं! सीधे सीधे सार्वजनिक रूप से चुड़ैल जैसे असंख्य शब्दों ( बल्कि गालियों) का प्रयोग तक उन्होंने अपने विरोध को प्रकट करने व जन चेतना को जिलाए व जलाए रखने के लिए किया। इसीलिए वे जन कवि के सिंहासन पर शोभित हैं और जरा कोई उनकी विद्वत्ता का आकलन तो करे - कैसी पटखनी देते हैं वे बड़ों बड़ों को।
च) अब रही बात सोनिया गान्धी एंड असोसिएट्स की। उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित रेकॊर्ड में वे स्वयं अपने यही नाम लिखवा चुके हैं तो लोग क्यों न प्रश्नांकित करें, यह दुहरापन क्यों न लोग सब के सामने लाएँ? क्या इसलिए कि हम अत्यन्त बुद्धिजीवी हैं और हमें अपने को सफ़ेदपोश की सीमा में रखना ही शोभता है? या हमें अपनी चौहद्दियों मे बन्द रहने के लिए अभिशप्त रहना चाहिए?
संसार के निष्पक्ष मीडिया का लिखा उठा कर हम यदि बाँचें तो पता चलता है कि लोग तो इस से भी अधिक गम्भीर आरोप लगा रहे हैं।भारत की जनता का, लोगों का सब कु़छ तबाह हो रहा है, हो गया है, घर -परिवार उजड़ गए हैं, शहीदों को सरेआम गालियाँ दी जा रही है, क्या क्या व्यभिचार भारत माँ के साथ नहीं हो चुका और नहीं हो रहा, ऐसे में हम तिलमिलाते भी हैं तो राजशाही की चमक के फ़ीका पड़ने की बात पर, कलई उतार कर असल -नकल की पहचान करने वाली कोशिशों पर?
मैं सच में रोष से भरी हूँ अपनी माँ की छाती चीरी जाती देख कर व उस पर उसी के धराधाम पर, उसी के साथ, उसी की सन्तानों द्वारा होते व्यभिचार को देख कर। अपने तईं मैं इस आग को बिल्कुल बुझने देने के पक्ष में नहीं हूँ। वैसे ही भारतीय लोग सर्वदा स्मृति भ्रंश के बीमार रहे हैं, वे यों ही सदा से दो-चार दिन में अपने रास रंग या जीवन की आपाधापी की अति सामान्य चर्या में खो- डूब जाते हैं। उन्हें बार बार कोंचते रहने की आवश्यकता है तब भी सम्भवत: किसी बड़े परिवर्तन की आशा हम नहीं कर सकते हैं।
एक विदेशी पत्रकार जो गत २५ वर्षों से एशियाई क्षेत्रीय मामलों का सर्व प्रामाणिक फ़्रेंच पत्रकार है- यदि केवल उसी की रेपोर्टिंग्स ही को हम देखें तो कान खड़े हो जाने चाहिएँ।
मैं इनके पचासों रोंगटे खड़े कर देने वाले लेख ( अंग्रेजी में) उपलब्ध करवा सकती हूँ किन्तु एक तो वे अंग्रेजी में है, दूसरे में मेरे लिए इतना अनुवाद कर के उपलब्ध करवाना संभव नहीं है। जो रुचि रखते हों वे स्वयं थोड़ा यत्न करें तो आँकड़ों व सामग्री का भंडार मिल जाएगा।
एक बानगी देखिए -
Sonia's presence in Delhi is costing India dearly
By François Gautier
02 Dec 2008 02:37:00 AM IST New Indian Express
In 1898, the French writer Emile Zola wrote an open letter to the then French president in the newspaper L'Aurore, titled j'accuse ('I accuse'), where he accused the French government of anti- Semitism towards Captain Alfred Dreyfus,a Jewish officer unfairly condemned for treason.
Now it is time for the people of India to say openly that which many, including within the Congress, think secretly and may utter in the privacy of their chambers.
It is not about Manmohan Singh, it is not even about Shivraj Patil, the fall guy; it is about that one person, the Eminence Grise of India. She who pulls all the strings, She whose shadow looms menacingly over so many, She who holds no portfolio, is just a simple elected MP, like 540 others, but rules like an empress.
Sometimes, one's very physical presence at the top is enough to move things, to influence the course of events. One word from Her, a glance, a frown, are enough to put the whole heavy, inert, unwilling machinery of India's bureaucracy and political system in full motion. Sometimes She need not say anything: in the true tradition of Bhakti, Her ministers, Her secretaries, interpret Her silences and rush to cater to Her western and Christian identity.
Nevertheless, she has said and acted enough so that one day she may stand accused on the pages of History for what she must have done to India.
I'accuse Sonia Gandhi as being responsible for the tragedy of Mumbai, having emasculated India's intelligence agencies by stopping them from investigating terror attacks in the last four years, including the Mumbai train blasts. शे has also neutralised the ATS by ordering them at all costs to ferret out 'Hindu terrorism', which if it exists, has wrought minuscule damage compared to what Islamic terror has done since 2004. Did the US send a warning to India that there may be an attack on Mumbai and that the Taj would be one of the targets? Were these ignored because the ATS was too busy chasing Hindu 'terrorists' on Sonia's orders? I accuse Sonia and her government of having made the NSG the laughing stock of the world. How many times did the NSG (who took ten hours to reach Mumbai) claim that it had "sanitised the Taj and that the operation was over" and how many times did a bomb go off immediately after? For the last 20
years, the NSG has guarded VIPs and has become soft. See the comments of Israeli terror specialists, who said the NSG should have first sanitised the immediate surroundings of the places of conflict, kept the bystanders and press (who gave terrorists watching TV in the Taj rooms a perfect report of the security forces' whereabouts) out of the place, gathered enough information about the position of the terrorists and hostages before taking action, instead of immediately engaging the terrorists, and ensuring the deaths of so many hostages.
years, the NSG has guarded VIPs and has become soft. See the comments of Israeli terror specialists, who said the NSG should have first sanitised the immediate surroundings of the places of conflict, kept the bystanders and press (who gave terrorists watching TV in the Taj rooms a perfect report of the security forces' whereabouts) out of the place, gathered enough information about the position of the terrorists and hostages before taking action, instead of immediately engaging the terrorists, and ensuring the deaths of so many hostages.
I accuse Sonia of having let her Christian and Western background, in four years, divide India on religious and caste lines in a cynical and methodical manner.
I accuse Sonia of weakening India's spirit of sacrifice and courage, so that 20 terrorists (or less) held at ransom the financial capital of India for more than three days.
I accuse Sonia Gandhi of always pointing the finger at Pakistan, when terrorism in India is now mostly homegrown, even if it takes help, training, refuge and arms from Pakistan; of not warning Indians of the grave dangers of Islamic terror for cynical election purposes.
I accuse Sonia of being an enemy of the Hindus, who always gave refuge to persecuted minorities, and who are the only people in the world to accept that God may manifest under different names, in different epochs, using diphpherent scriptures.
I accuse Sonia Gandhi of taking advantage of India's respect for women, its undue fascination with the Gandhi name, and its stupid mania for White Skin.
I'accuse Sonia of exploiting the Indian Press' obsession with her. She hardly ever gave interview in 20 years, except scripted ones to NDTV, yet the Press always protects her, never blames her and keeps silent over her covert role.
I'accuse Sonia and her government of trying to make heroes of subservient and inefficient men to hide the humiliation of Mumbai 26/11. Before going to his death, Hemant Karkare, the ATS chief, was shown on television clumsily handling his helmet, as someone who uses it very rarely. Why did he die of bullet wounds in the chest when he was wearing a bullet-proof vest? Either Indian vests are inferior quality or he was not wearing one.
How did the terrorists who killed him and his fellow officer escape in the same vehicle used by the ATS chief ? Why did he and his officers go into Cama Hospital without ascertaining where the terrorists were? We honour his death, but these facts say a lot about the ATS' battle-readiness.
Will someone in the Congress, someone who feels more Indian than faithful to Sonia, stand up and speak the truth? Who said, "Go after Hindu terrorists"? Who insisted on putting pressure on BJP governments in Karnataka or Orissa for so-called persecution of Christians, when Christians have always practised their faith in total freedom here, while their missionaries are converting hundreds of thousands of innocent tribals and Dalits with the billions of dollars given by gullible westerners? Who said, "Go soft on Islamic terrorism"? Who wants to do away with India's nuclear deterrence in the face of Pakistani and Chinese nuclear threats, by pushing at all costs the one sided Indo-US nuclear deal, which makes no secret of its intention to denuclearise India militarily? I am sure Sonia Gandhi has good qualities: she probably was a good wife to Rajiv, a
good daughter in law to Indira and by all accounts, she is a good mother to her children. One also hears first-hand reports about her concern for smaller people, her dignity in the suffering that befell her when her husband was blown to pieces, and her courtesy with visitors.
good daughter in law to Indira and by all accounts, she is a good mother to her children. One also hears first-hand reports about her concern for smaller people, her dignity in the suffering that befell her when her husband was blown to pieces, and her courtesy with visitors.
Nevertheless, she is a danger to India.
Her very presence, both physical and occult, open the doors to forces inimical to India. Even Indian Christians should understand that she is not a gift to them: her presence at the top has emboldened fanatics like John Dayal or Valson Thampu, who practise an orthodox Christianity prevalent in the West in the early 20th century, but no longer, to radicalise their flock. Indian Christians should recognise that they have a much better deal here than Christians or Hindus have in Pakistan, Bangladesh, Indonesia or Saudi Arabia.
Under Sonia's rule, Indian Muslims, too, have been used as electoral pawns. They have been encouraged to shun the Sufi streak, a blend of the best of Islam and Vedanta, for a hard-line Sunni brand imported from Saudi Arabia, Pakistan and Afghanistan.
For the good of India, her civilisation, her immense spirituality and culture, Sonia Gandhi has to go and a government that thinks Indian, breathes nationalism and will protect its citizens must be voted to power.
— fgautier@auroville. org.in
http://www.expressb uzz.com/edition/ print.aspx? artid=LNnjswClsu c=
सादर
कविता वाचक्नवी
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ये हैं वे दो (निम्नलिखित) पत्र जिनके उत्तर में मुझे उपर्युक्त लेख लिखना पड़ा
- क.वा.
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--- On Fri, 12/5/08, Rajeev Aggarwal
From: Rajeev Aggarwal
Subject: [हिन्दी-भारत] ab incon. ka sachaayi kuchh aur... again
To: HINDI-BHARAT@ yahoogroups. com
Date: Friday, December 5, 2008, 8:07 PM
धन्यवाद अनूप जी.
मेरा उद्देश्य बात को खींचना नहीं है. लेकिन में ये कहे बिना नहीं रह सकता कि कविता जी के मौलिक लेख का उद्देश्य सनसनी फैलाना नहीं है. अपितुयह एक कोशिश है हमारी सोई हुई सोच को जगाने की.
आपकी बातें ग़लत नहीं हैं, किंतु इस तरह कि सोच हम भारतीयों को कर्महीन बनाती है. क्षमा चाहूँगा अगर कोई बात बुरी लगी हो तो.
आपकी संवेदनशीलता के लिए धन्यवाद.
मेरा उद्देश्य बात को खींचना नहीं है. लेकिन में ये कहे बिना नहीं रह सकता कि कविता जी के मौलिक लेख का उद्देश्य सनसनी फैलाना नहीं है. अपितुयह एक कोशिश है हमारी सोई हुई सोच को जगाने की.
आपकी बातें ग़लत नहीं हैं, किंतु इस तरह कि सोच हम भारतीयों को कर्महीन बनाती है. क्षमा चाहूँगा अगर कोई बात बुरी लगी हो तो.
आपकी संवेदनशीलता के लिए धन्यवाद.
-राजीव
-----Original Message-----
From: HINDI-BHARAT@ yahoogroups. com [mailto:HINDI- BHARAT@yahoogrou ps.com] On Behalf Of Anoop Bhargava
Sent: Friday, December 05, 2008 2:33 PM
To: HINDI-BHARAT@ yahoogroups. com
Subject: [ ] ab incon. ka sachaayi kuchh aur... again
From: HINDI-BHARAT@ yahoogroups. com [mailto:HINDI- BHARAT@yahoogrou ps.com] On Behalf Of Anoop Bhargava
Sent: Friday, December 05, 2008 2:33 PM
To: HINDI-BHARAT@ yahoogroups. com
Subject: [ ] ab incon. ka sachaayi kuchh aur... again
आदरणीय कविता जी:
मेरा विचार है कि यह पत्र आप के द्वारा नहीं लिखा गया है लेकिन क्यों कि आप के द्वारा भेजा गया है इसलिये आप को संबोधित कर रहा हूँ ।
मैं गांधी परिवार का प्रशंसक नहीं हूँ लेकिन मेरे विचार से :
- यह पत्र पूर्वाग्रहों से भरा है ।
- ऐसा लगता है कि लेखक ने अपना ’मत’ पहले बना लिया है और फ़िर उस मत को सिद्ध करने के लिये घटनाओं को एक ’विशेष चश्में’ से देखा जा रहा है ।
- आधे से अधिक घटनाओं/दुर्घटनाओं को जो अर्थ दिया गया है, उस का कोई प्रमाण नहीं है ।
- राहुल गांधी को ’रौल विन्ची’ के नाम से संबोधित करना ठीक वैसा ही प्रयास है जैसा कि ’बराक ओबामा’ को ’बराक हुसैन ओबामा’ के नाम से बुलाना । दोनो के पीछे छुपा स्वार्थ स्पष्ट है ।
- ऐसे पत्र सिर्फ़ सनसनी फ़ैला सकते हैं, लोगों को उत्तेजित कर सकते हैं , पीली पत्रकारिता को सुसज्जित कर सकते है - उस से अधिक कुछ नहीं ।
- समूह के ’file section' में एक लेख है जिस में संजय गांधी को ’मोहम्मद युनुस’ का पुत्र बताया गया है । पढ कर मन को अच्छा नहीं लगा ।
- हिन्दी भारत में रोचक और जानकारी भरे लेख पढने को मिलते हैं , इस तरह के पत्रो से बचा जा सके तो शायद समूह को अधिक सार्थकता मिले।
ये मेरे पूर्णत: निजी विचार हैं और उन्हें इमानदारी से व्यक्त करने की कोशिश की है , किसी के प्रति अनादर या आक्षेप की भावना नहीं है।
अभी बस इतना ही ....
अनूप भार्गव
इस देश का यह दुर्भाग्य है कि एक पार्टी जिसे एक अंग्रेज़ ने भारत के लोगों के उत्थान के लिए शुरु की थी, उसके वंशवाद के कारण हमें झेलना पड़ रहा है - एक और गुलामी। शायद इसीलिए गांधीजी ने कहा था कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए क्यों कि उसका उद्देश्य पूरा हो गया है। इसे राजनीतिक पार्टी की तरह जीवित नहीं रहना चाहिए। आग बापू की अव्हेलना का परिणाम है यह वंशवाद जो दावानल की तरह अन्य पार्टियों में भी फैल रहा है।
जवाब देंहटाएंझकझोरने वाले विचारों के लिए बधाई।
मैंने इंटरफेस सरल रखने के लिए ब्लॉग टेम्पलेट सादा रखा हुआ था. इस टेम्पलेट में अपनी पोस्ट के बारे में हो रही चर्चा और लिंक देख पाना कुछ कठिन है. दरअसल मैं देख ही नहीं पाया की आपने मेरी पोस्ट पर चर्चा छेड़ी है. पर एक संतुष्टि है की हिन्दी की सेवा ही जिनका कार्य है और जो नियमित चिट्ठाकार भी हैं वे भी इन मुद्दों पर अब खुल कर लिख रहे हैं. मैं बिना अपराधबोध के दूसरे विषयों की तरफ़ अब अपना ध्यान केंद्रित कर सकता हूँ. अब मेरा ब्लॉग आगे से कुछ ऐसे महत्वपूर्ण और शोधपरक विषयों की विवेचना करेगा जिनकी हिन्दी जगत में अधिक चर्चा नहीं होती. बस आप आग ठंडी न पड़ने दें.
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