राष्ट्रीय विकास के लिए समर्पित
अभिनव सामाजिक-राजनीतिक संगठन
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देश और समाज के निर्माण का काम
हमारे अपने, अपने परिवार और अपने क्षेत्र के
निर्माण से शुरू होता है
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आइए, इस अँधेरे समय में हम
अपनी-अपनी भूमिका को याद करें
सत्यमेवजयतेसत्यमेवजयतेसत्यमेवजयतेसत्यमेवजयतेसत्यमेवजयते
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भारत सेवक दल
प्रारंभिक रूपरेखा
प्रारंभिक रूपरेखा
1. संगठन : भारत सेवक दल एक लोकतांत्रिक संगठन है। इसका सदस्य कोई भी ऐसा व्यक्ति बन सकता है जो इस संगठन के लक्ष्यों और नियमों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता लिख कर प्रगट करे।
2. उद्देश्य : दल का लक्ष्य एक ऐसे समाज का विकास करना है जो सत्यनिष्ठता, प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, सभी स्तरों पर लोकतंत्र तथा समानता, विकेंद्रीकरण और स्वदेशी पर आधारित हो।
3. मुद्दे : शुरुआत के तौर पर दल इन मुद्दों पर कार्यक्रम बनाएगा तथा काम करेगा -
क. मिल के कपड़ों का उपयोग कम से कम करना तथा हाथ से एवं हैंडलूम तथा पॉवरलूम से बने कपड़ों को प्रोत्साहन। मिल के उत्पादों के बजाय कुटीर तथा लघु उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग। यही नजरिया मिल के अन्य सभी उत्पादों पर लागू होगा।
ख. सार्वजनिक जीवन, जिसमें संसद, विधान सभा, प्रशासन, न्यायपालिका, औद्योगिक तथा वाणिज्यिक गतिविधियाँ, सामाजिक कार्य आदि शामिल हैं, में अंग्रेजी का उपयोग इस उद्देश्य से क्रमश: सीमित करते जाना कि अंतत: वह सिर्फ अनिवार्य कामों के लिए उपयोग में लाई जाए, जैसे विदेश व्यापार, वैज्ञानिक शोध, अंग्रेजी भाषी देशों से सहकार, अनुवाद आदि।
2. उद्देश्य : दल का लक्ष्य एक ऐसे समाज का विकास करना है जो सत्यनिष्ठता, प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, सभी स्तरों पर लोकतंत्र तथा समानता, विकेंद्रीकरण और स्वदेशी पर आधारित हो।
3. मुद्दे : शुरुआत के तौर पर दल इन मुद्दों पर कार्यक्रम बनाएगा तथा काम करेगा -
क. मिल के कपड़ों का उपयोग कम से कम करना तथा हाथ से एवं हैंडलूम तथा पॉवरलूम से बने कपड़ों को प्रोत्साहन। मिल के उत्पादों के बजाय कुटीर तथा लघु उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग। यही नजरिया मिल के अन्य सभी उत्पादों पर लागू होगा।
ख. सार्वजनिक जीवन, जिसमें संसद, विधान सभा, प्रशासन, न्यायपालिका, औद्योगिक तथा वाणिज्यिक गतिविधियाँ, सामाजिक कार्य आदि शामिल हैं, में अंग्रेजी का उपयोग इस उद्देश्य से क्रमश: सीमित करते जाना कि अंतत: वह सिर्फ अनिवार्य कामों के लिए उपयोग में लाई जाए, जैसे विदेश व्यापार, वैज्ञानिक शोध, अंग्रेजी भाषी देशों से सहकार, अनुवाद आदि।
ग. जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष।
घ. परिवार के ढाँचे में लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहन तथा परिवार की संपत्ति तथा आय पर पति-पत्नी तथा अन्य सभी सदस्यों का समान अधिकार एवं नियंत्रण।
च. आदर्शत: किसी को किसी का नौकर नहीं होना चाहिए। जिस काम में एक से अधिक व्यक्तियों की जरूरत हो, वह सहकारिता के आधार पर किया जाना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं हो पाता, तब तक सभी सरकारी, गैरसरकारी, सहकारिता-आधारित, निजी एवं अन्य किसी भी प्रकार की उत्पादनपरक, वाणिज्यिक एवं सामाजिक इकाई के प्रबंधन में कर्मचारियों की 50 प्रतिशत अनिवार्य भागीदारी हो।
छ. सामाजिक अधिकार एवं कर्तव्य के रूप में सभी उत्पादकों द्वारा निर्मित एवं व्यापारियों द्वारा वितरित प्रत्येक उत्पाद की वास्तविक लागत पता लगाना तथा उसे उचित कीमत पर बेचने का आग्रह।
ज. न्यूनतम मजदूरी तथा अन्य निर्धारित सेवा शर्तों का पालन कराना। जहाँ कर्मचारियों से नियमित रूप से रोज आठ घंटे से अधिक काम लिया जाता है, वहाँ इस निष्ठुरता को समाप्त करने का प्रयास करना।
झ. ऐसे विज्ञापनों को बंद कराना जिनमें किसी उत्पाद या सेवा के बारे में सूचनाओं तथा उनसे संबंधित तथ्यात्मक चित्रों के अलावा किसी अन्य सामग्री का उपयोग किया गया हो। बिक्री बढ़ाने अथवा उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए मॉडलों का प्रयोग स्वीकार्य नहीं होगा।
ट. महंगे होटलों तथा विलासिता के अन्य सभी केंद्रों एवं महँगी कारों, मनोरंजन के खर्चीले सामान, अश्लील फैशन शो आदि को समाप्त करने का संघर्ष। खर्चीली शादियों, खर्चीले आयोजनों आदि को समाप्त करने का संघर्ष। इस मकसद से किए गए आयात को रोकने का प्रयास करना।
ठ. सरकार, समाज तथा व्यक्तियों द्वारा परिचालित सभी संस्थाओं एवं सेवाओं, जैसे स्कूल, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, अदालत, जेल, परिवहन, नगरपालिका, पंचायत आदि, में नियमानुसार तथा उचित ढंग से कामकाज सुनिश्चित करना। जहां ये नियम जन-विरोधी हों, उन्हें बदलने के लिए संघर्ष। जन सेवा के किसी भी कार्य को मुनाफाखोरी से अलग रखना।
ड. मीडिया द्वारा झूठ, आधारहीन सनसनी, अश्लीलता, अशालीनता आदि फैलाने पर सामाजिक अंकुश। मीडिया तथा अन्य संस्थाओं द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित करने के प्रयासों का प्रतिकार करना। मीडिया को उसके स्वामियों या सरकार द्वारा गलत ढंग से नियंत्रित या प्रभावित करने के प्रयासों को विफल करना।
ढ. अंधविश्वासों, हानिकर परंपराओं, नुकसानदेह रिवाजों आदि के खिलाफ संघर्ष। धार्मिक स्थानों को स्वच्छ बनाने, धार्मिक मूल्यों की रक्षा करने तथा धर्मस्थानों पर किसी भी प्रकार के एकाधिकार को समाप्त करने का संघर्ष। नदियों, नालों, रेल स्टेशन और बस अड्डा जैसे सामूहिक स्थानों, शौचालयों को साफ रखने का प्रयास।
त. सिगरेट, बीड़ी, गुटका तथा नशे के अन्य सभी प्रकारों का बहिष्कार। उनके उत्पादन केंद्रों को बंद कराने का संघर्ष।
थ. सफाई, स्वस्थ परिवेश, परिवार नियोजन, वृद्धों की समुचित देखभाल आदि के पक्ष में तथा बच्चों के साथ दुव्र्यवहार, पारिवारिक हिंसा, जातिगत समूहों द्वारा अन्यायपूर्ण फैसलों आदि के विरुद्ध संघर्ष।
द. जनसाधारण को राजनीतिक शिक्षण देना, विवेकसंगत तथा वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना और समाज में अध्ययन-चिंतन, विचार-विमर्श तथा साहित्य, संगीत, नाटक, चित्रकला आदि का वातावरण बनाना। सार्वजनिक पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की स्थापना।
इनके अलावा, दल के सदस्य ऐसी सभी चीजों के विरुद्ध काम करने के लिए स्वतंत्र होंगे जिनसे समाज का नुकसान होता है या उसका विकास कुंठित होता है। इसी तरह, वे ऐसे सभी सकारात्मक काम करने के लिए
स्वतंत्र होंगे जो समाज के विकास में सहयोग करते हों।
स्वतंत्र होंगे जो समाज के विकास में सहयोग करते हों।
4.राजनीतिक कार्य : दल राजनीति-निरपेक्ष नहीं होगा। उसके सदस्यों के लिए राजनीतिक कार्य उनके सामाजिक कार्य का ही विस्तार होगा। दल किसी विशेष मुद्दे पर या चुनाव के समय किसी विशेष दल या उम्मीदवार का समर्थन कर सकता है तथा उसके लिए काम कर सकता है। वह चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़ा कर सकता है, पर उम्मीदवारी उसे ही दी जाएगी जिसकी सदस्यता कम से कम एक वर्ष पुरानी हो। उम्मीदवारी का निर्णय उचित स्तर पर किया जाएगा। किसी विशेष मुद्दे पर दल के विभिन्न स्तरों के संयोजक दल के दृष्टिकोण को सार्वजनिक कर सकते हैं। सत्ता में जाने के लिए दल अनैतिक एवं अलोकतांत्रिक उपायों का सहारा नहीं लेगा। दल के जो सदस्य संसद, विधान सभा, जिला परिषद आदि के लिए निर्वाचित होंगे, उनके आचरण पर, अत्यंत निजी मामलों को छोड़ कर, दल का अनुशासन लागू होगा। ऐसा कोई भी सदस्य संसद, विधान सभा आदि में अपने विवेक के आधार पर मतदान कर सकता है। यदि यह मतदान देश अथवा समाज के हित में नहीं है, तो दल ऐसे सदस्यों पर उचित कार्रवाई कर सकता है, जिसमें दल से उनका निष्कासन शामिल है। निष्कासन का निर्णय उचित स्तर पर, जैसे संसद सदस्य के लिए राष्ट्रीय समिति और विधायक के लिए राज्य समिति, तथा दो-तिहाई बहुमत के आधार पर किया जाएगा। निकाले गए सदस्यों को कम से कम दो वर्षों तक दल में वापस नहीं लिया जाएगा।
5. सांगठनिक ढाँचा : संघ की इकाई मुहल्ला या गाँव स्तर पर गठित की जाएगी। प्रत्येक शहर या जिले में उस स्तर पर द्वितीयक इकाई का गठन होगा। इनके प्रतिनिधियों का चयन प्राथमिक इकाइयों में मतदान द्वारा होगा। यही नियम राज्य तथा राष्ट्र स्तर पर लागू होगा। शुरुआती तौर पर तीन वर्षों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति बनाई जाएगी, जिसके सदस्यों का निश्चय संस्थापक सदस्यों द्वारा किया जाएगा। प्रत्येक राज्य में ऐसी ही
समिति बनाने का प्रयास किया जाएगा। संगठन के सभी स्तरों पर संयोजक के अलावा कोई और पद नहीं होगा। संयोजक का चुनाव दो वर्षों के लिए होगा। कोई भी व्यक्ति लगातार दो बार संयोजक नहीं चुना जा सकता। गाँव तथा मुहल्ला के स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक किसी भी सांगठनिक इकाई में ग्यारह से अधिक सदस्य नहीं होंगे। ऊपर के स्तर की इकाइयाँ निचले स्तर की इकाइयों के विरुद्ध किसी प्रकार के अनुशासन भंग की कार्यवाही नहीं करेंगी। जब कोई इकाई दल के उद्देश्यों के विरुद्ध काम करने लगे, तो उस स्तर की सभी इकाइयों के दो-तिहाई बहुमत से उसे भंग किया जा सकता है। जहाँ भी सर्वसम्मति न बन पाए, फैसला दो-तिहाई बहुमत से लिया जाएगा।
समिति बनाने का प्रयास किया जाएगा। संगठन के सभी स्तरों पर संयोजक के अलावा कोई और पद नहीं होगा। संयोजक का चुनाव दो वर्षों के लिए होगा। कोई भी व्यक्ति लगातार दो बार संयोजक नहीं चुना जा सकता। गाँव तथा मुहल्ला के स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक किसी भी सांगठनिक इकाई में ग्यारह से अधिक सदस्य नहीं होंगे। ऊपर के स्तर की इकाइयाँ निचले स्तर की इकाइयों के विरुद्ध किसी प्रकार के अनुशासन भंग की कार्यवाही नहीं करेंगी। जब कोई इकाई दल के उद्देश्यों के विरुद्ध काम करने लगे, तो उस स्तर की सभी इकाइयों के दो-तिहाई बहुमत से उसे भंग किया जा सकता है। जहाँ भी सर्वसम्मति न बन पाए, फैसला दो-तिहाई बहुमत से लिया जाएगा।
संगठन निर्माण की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक संयोजक होगा, जिसका चुनाव संस्थापक सदस्य करेंगे।
6. आय-व्यय : दल की आमदनी सार्वजनिक चंदा, व्यक्तिगत दान, अन्य संस्थाओं द्वारा सहयोग आदि से प्राप्त की जाएगी। जिस स्तर पर धन इकट्ठा होगा, वह उसी स्तर पर खर्च किया जाएगा। प्रत्येक इकाई अपनी आय का दसवाँ भाग राष्ट्रीय इकाई को सहयोगस्वरूप प्रदान करेंगी। सभी प्राप्तियों के लिए नंबरवार छपी रसीद जारी की जाएँगी। इन रसीदों पर संयोजक तथा एक अन्य सदस्य, जिसे वित्त सदस्य कहा जा सकता है और जिसका चुनाव सर्वसम्मति से होगा, के हस्ताक्षर होंगे। रसीदों पर दस्तखत करने के लिए एक साल के बाद नया वित्त सदस्य चुना जाएगा। वित्त सदस्य ही रुपए-पैसे का हिसाब रखेगा। दल की आय का इस्तेमाल संघ के घोषित उद्देश्यों एवं आनुषंगिक खर्चों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं होगा। किसी भी संयोजक या सदस्य को वेतन नहीं दिया जाएगा। जो सदस्य पूर्णकालिक काम करेंगे, उन्हें निर्वाह सहयोग दिया जा सकता है। इसकी राशि प्रासंगिक इकाई के स्तर पर तय की जाएगी।
7. सदस्यों के कर्तव्य : दल के प्रत्येक सदस्य से निम्नलिखित नियमों के पालन की अपेक्षा की जाती है -
क. वह अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं बरतेगा।
ख. वह यथासंभव अहिंसा का पालन करेगा। सत्याग्रह, धरना, हड़ताल, सामूहिक उपवास आदि औजारों का इस्तेमाल वह इस प्रकार करेगा जिससे अहंकार, घृणा, कटुता, टकराव आदि का जन्म न हो तथा प्रेम एवं सहयोगिता का वातावरण बने।
ग. वह सादगी की संस्कृति के विकास में सहायक होगा।
घ. वह यथासंभव कुटीर तथा लघु स्तर पर बनी तथा स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करेगा।
च. वह यथासंभव सब प्रकार के अन्याय के विरुद्ध तथा न्याय के पक्ष में संघर्ष करेगा।
छ. वह कोई ऐसा काम नहीं करेगा जिससे दल के उद्दश्यों को क्षति पहुँचती हो।
8. प्रचार कार्य : संघ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सभी प्रकार के प्रकाशन, प्रसारण, फिल्म निर्माण, वितरण एवं प्रदर्शन, विभिन्न प्रकार के आयोजन आदि कर सकता है।
9. सहयोग : दल उचित तथा आवश्यक होने पर अन्य समूहों के साथ मिल कर काम कर सकता है।
10. विघटन : विघटन का निर्णय कुल सदस्यों के तीन-चौथाई बहुमत के द्वारा लिया जाएगा। दल को विघटित करने की स्थिति में उसके पास बचा हुआ पैसा चंदा अथवा दान देनेवालों को उनकी राशि के अनुपात में लौटा दिया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी संयोजक तथा वित्त सदस्य की होगी।
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पृष्ठभूमि - 1
राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का एक कार्यक्रम
देश इस समय एक भयावह संकट से गुजर रहा है। बड़े उद्योगपतियों, अफसरों और राजनेताओं को छोड़ कर कोई भी वर्ग भविष्य के प्रति आ·ास्त नही है। किसान, मजदूर, मध्य वर्ग, छात्र, महिलाएँ, लेखक, बुद्धिजीवी सभी उद्विग्न हैं। राजनीतिक दल न केवल अप्रासंगिक, बल्कि समाज के लिए अहितकर हो चुके हैं। नेताओं को विदूषक बने अरसा हो गया। हर आंदोलन किसी एक मुद्दे से बँधा हुआ है। समग्र नागरिक जीवन की बेहतरी के लिए संगठित प्रयास नहीं हो रहे हैं। कमजोर आदमी की कोई सुनवाई नहीं है। कुछ लोगों की संपन्नता खतरनाक ढंग से बढ़ रही है। ऐसी निराशाजनक स्थिति में एक ऐसे राष्ट्रीय कार्यक्रम पर अमल करना आवश्यक प्रतीत होता है जो तत्काल राहत दें, अन्यायों को मिटाए, क्रांतिकारी वातावरण बनाए, राजनीतिक सत्ता का सदुपयोग करे और अंत में समाजवाद की स्थापना करे। यह भारतीय संविधान (उद्देशिका, मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य) की माँग भी है। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की एक बहुत संक्षिप्त रूपरेखा यहाँ प्रस्तावित की जाती है। यह कार्यक्रम गाँव, मुहल्ला, कस्बा, शहर और जिला स्तर पर समाजसेवी संगठनों और समूहों द्वारा चलाया जा सकता है।
1. स्वास्थ्य और सफाई : सरकारी अस्पतालों में नियम और नैतिकता के अनुसार काम हो। रोगियों को आवश्यक सुविधाएँ मिलें और पैसे या रसूख के बल पर कोई काम न हो। डॉक्टर पूरा समय दें। दवाओं की चोरी रोकी जाए। सभी मशीनें काम कर रही हों। जो बिगड़ जाएँ, उनकी मरम्मत तुरंत हो। बिस्तर, वार्ड आदिसाफ-सुथरे हों। एयरकंडीशनर डॉक्टरों और प्रशासकों के लिए नहीं, रोगियों के लिए हों। निजी अस्पतालों में रोगियों से ली जानेवाली फीस लोगों की वहन क्षमता के भीतर हो। प्राइवेट डॉक्टरों से अनुरोध किया जाए कि वे उचित फीस लें और रोज कम से कम एक घंटा मुफ्त रोगी देखें। सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई पर पूरा ध्यान दिया जाए। जहाँ इसके लिए सांस्थानिक प्रबंध न हो, वहाँ स्वयंसेवक यह काम करें। रोगों की रोकथाम के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएँ। जो काम सरकार न कर सके, वे नागरिकों द्वारा किए जाएँ।
२. शिक्षा : सभी स्कूलों का संचालन ठीक ढंग से हो। सभी लड़के लड़कियों को स्कूल में पढ़ने का अवसर मिले। जहाँ स्कूलों की कमी हो, वहाँ सरकार, नगरपालिका, पंचायत आदि से कह कर स्कूल खुलवाए जाएँ। सार्वजनिक चंदे से भी स्कूल खोले जाएँ। जो लड़का या लड़की पढ़ना चाहे, उसका दाखिला जरूर हो। शिक्षा संस्थानों को मुनाफे के लिए न चलाया जाए। छात्रों को प्रवेश देने की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो। किसी को डोनेशन देने के लिए बाध्य न किया जाए। फीस कम से कम रखी जाए। शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों को उचित वेतन मिले।
3. कानून और व्यवस्था : थानों और पुलिस के कामकाज पर निगरानी रखी जाए। किसी के साथ अन्याय न होने दिया जाए। अपराधियों को पैसे ले कर या रसूख की वजह से छोड़ा न जाए। सभी शिकायतें दर्ज हों और उन पर कार्रवाई हो। हिरासत में पूछताछ के नाम पर जुल्म न हो। जेलों में कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए। उनकी सभी उचित आवश्यकताओं की पूर्ति हो। अदालतों के कामकाज में व्यवस्था आए। रिश्वत बंद हो।
4. परिवहन : सार्वजनिक परिवहन के सभी साधन नियमानुसार चलें। बसों में यात्रियों की निर्धारित संख्या से अधिक यात्री न चढ़ाए जाएँ। बस चालकों का व्यवहार अच्छा हो। ऑटोरिक्शा, टैक्सियाँ, साइकिल रिक्शे आदि नियमानुसार चलें तथा उचित किराया लें। बस स्टैंड, रेल स्टेशन साफ-सुथरे और नागरिक सुविधाओं से युक्त हों।
5. नगरिक सुविधाएँ : नागरिक सुविधाओं की व्यवस्था करना प्रशासन, नगरपालिका, पंचायत आदि का काम है। ये बिना किसी देर के और ठीक से हों, इसके लिए नागरिक सहयोग और निगरानी जरूरी है। बिजली, पानी, टेलीफोन, गैस आदि के कनेक्शन देना, इनकी आपूर्ति बनाए रखना, सड़क, सफाई, शिक्षा, चिकित्सा, प्रसूति, टीका, राशन कार्ड, पहचान पत्र आदि विभिन्न क्षेत्रों में नगारिक सुविधाओं की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्तर पर सतत सक्रियता और निगरानी की जरूरत है। जिन चीजों की व्यवस्था सरकार, नगरपालिका आदि नहीं कर पा रहे हैं जैसे पुस्तकालय और व्यायामशाला खोलना, वेश्यालय बंद कराना, गुंडागर्दी पर रोक लगाना आदि, उनके लिए नागरिकों के सहयोग से काम लिया जाए।
6. उचित वेतन, सम्मान तथा सुविधाओं की लड़ाई : मजदूरों को उचित वेतन मिले, उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार हो, उनके काम के घंटे और स्थितियाँ अमानवीय न हों, उन्हें मेडिकल सहायता, छुट्टी आदि सुविधाएँ मिलें। गाँवों में खेतिहर मजदूरों के हितों की रक्षा करनी होगी।
7. उचित कीमत : अनेक इलाकों में एक ही चीज कई कीमतों पर मिलती है। सभी दुकानदार "अधिकतम खुदरा मूल्य' के आधार पर सामान बेचते हैं, उचित मूल्य पर नहीं। ग्राहक यह तय नहीं कर पाता कि कितना प्रतिशत मुनाफा कमाया जा रहा है। नागरिक टोलियों को यह अधिकार है कि वे प्रत्येक दुकान में जाएँ और बिल देख कर यह पता करें कि कौन-सी वस्तु कितनी कीमत दे कर खरीदी गई है। उस कीमत में मुनाफे का विवेकसंगत प्रतिाशत जोड़ कर प्रत्येक वस्तु का विक्रय मूल्य तय करने का आग्रह किया जाए। दवाओं की कीमतों के मामले में इस प्रकार के सामाजिक अंकेक्षण की सख्त जरूरत है। खुदरा व्यापार में कुछ निश्चित प्रतिमान लागू कराने के बाद उत्पादकों से भी ऐसे ही प्रतिमानों का पालन करने के लिए आग्रह किया जाएगा। कोई भी चीज लागत मूल्य के डेढ़ गुने से ज्यादा पर नहीं बिकनी चाहिए। विज्ञापन लुभाने के लिए नहीं, सिर्फ तथ्य बताने के लिए हों।
8. दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के हित : इन तीन तथा ऐसे ही अन्य वर्गों के हितों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इनके साथ किसी भी प्रकार के दुव्र्यवहार और भेदभाव को रोकने की पूरी कोशिश की जाएगी।
9. विविध : भारत में अंग्रेजी शोषण, विषमता तथा अन्याय की भाषा है। अत: अंग्रेजी के सार्वजनिक प्रयोग के विरुद्ध अभियान चलाना आवश्यक है। बीड़ी, सिगरेट, गुटका आदि के कारखानों को बंद कराना होगा। जो धंधे महिलाओं के देह प्रदर्शन पर टिके हुए हैं, वे रोके जाएँगे। महँगे होटलों, महँगी कारों, जुआ, शराबघरों या कैबरे, आदि को खत्म करने का प्रयास किया जाएगा। देश में पैदा होनेवाली चीजें, जैसे अनाज, दवा, कपड़ा, पंखा, काजू, साइकिल आदि जब भारतीयों की जरूरतों से ज्यादा होंगी, तभी उनका निर्यात होना चाहिए। इसी तरह, उन आयातों पर रोक लगाई जाएगी जिनकी आम भारतीयों को जरूरत नहीं है या जो उनके हितों के विरुद्ध हैं। राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्री, मंत्री, सांसद, विधयक, अधिकारी आदि जनों से छोटे घरों में और सादगी के साथ रहने का अनुरोध किया जाएगा। उनसे कहा जाएगा कि एयरकंडीशनरों का इस्तेमाल खुद करने के बजाय वे उनका उपयोग अस्पतालों, स्कूलों, वृद्धाश्रमों, पुस्तकालयों आदि में होने दें। रेलगाड़ियों, सिनेमा हॉलों, नाटकघरों आदि में कई श्रेणियाँ न हों। सभी के लिए एक ही कीमत का टिकट हो।
10.
जल्द से जल्द इस तरह का वातावरण बनाने में सफलता हासिल करना जरूरी है कि राजनीति की धारा को प्रभावित करने में सक्षम हुआ जा सके। हम राज्य सत्ता से घृणा नहीं करते। उसके लोकतांत्रिक अनुशासन को अनिवार्य मानते हैं। हम मानते हैं कि बहुत-से बुनियादी परिवर्तन तभी हो सकते हैं जब सत्ता का सही इस्तेमाल हो। इस अभियान का उद्देश्य नए और अच्छे राजनीतिक नेता तथा कार्यकर्ता पैदा करना भी है। जो लोग सत्ता में शिरकत करेंगे, उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे मौजूदा संविधान को, यदि उसके कुछ प्रावधान जन-विरोधी पाए जाते हैं तो उन्हें हटाने के प्रयत्न के साथ, सख्ती से लागू करने का प्रयत्न करें। बुरे कानूनों को खत्म करें। अच्छे और जरूरी कानून बनाएँ। सत्ताधारियों पर दबाव डाला जाएगा कि कानून बना कर आर्थिक विषमता घटाएँ तथा संपत्ति का केंद्रीकरण खत्म करें। निजी पूँजी और धन की सीमा निर्धारित करें। किसानों सहित सभी को उसकी उपज और उत्पादन का उचित मूल्य दिलाने का प्रयत्न करें। सभी के लिए सम्मानजनक जीविका का प्रबंध किया जाए। आयविहीन तथा बेरोजगार लोगों को जीवन निर्वाह भत्ता मिलना चाहिए। गृहहीनों को तुरंत रहने का स्थान दिया जाए। इसके लिए शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों, थानों, सरकारी व निजी बंगलों, दफ्तरों आदि के खाली स्थान का उपयोग किया जा सकता है। सभी नीतियों में जनवादी परिवर्तन लाएँ।
11. संगठन : जाहिर है, यह सारा कार्यक्रम एक सांगठनिक ढाँचे के तहत ही चलाया जा सकता है। खुदाई फौजदार व्यक्तिगत स्तर पर भी कुछ काम कर सकते हैं, पर संगठन की उपयोगिता स्वयंसिद्ध है। शुरुआत गाँव तथा मुहल्ला स्तर पर संगठन बना कर करनी चाहिए। फिर धीरे-धीरे ऊपर उठना चाहिए। जिस जिले में कम से कम एक-चौथाई कार्य क्षेत्र में स्थानीय संगठन बन जाएँ, वहाँ जिला स्तर पर संगठन बनाया जा सकता है। राज्य स्तर पर संगठन बनाने के लिए कम से कम एक-तिहाई जिलों में जिला स्तर का संगठन होना जरूरी है। इसका एक प्रारूप भारत सेवक दल के रूप में प्रस्तावित है। सदस्यों की पहचान के लिए बार्इं भुजा में हरे रंग की पट्टी या इसी तरह का कोई और उपाय अपनाना उपयोगी हो सकता है। इससे पहचान बनाने और संगठित हो कर काम करने में सहायता मिलेगी।
।2. कार्य प्रणाली : यह इस कार्यक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष है। जो भी कार्यक्रम या अभियान चलाया जाए, उसका अहिंसक, लोकतांत्रिक, शांतिमय तथा सद्भावपूर्ण होना आवश्यक है। प्रत्येक कार्यकर्ता को गंभीर से गंभीर दबाव में भी हिंसा न करने की प्रतिज्ञा करनी होगी। यथासंभव, पुलिस तथा अन्य संबद्ध अधिकारियों को सूचित किए बगैर सामाजिक अंकेक्षण और सामूहिक संघर्ष का कोई कार्यक्रम हाथ में नहीं लिया जाएगा। अपील, अनुरोध, धरना, जुलूस, जन सभा, असहयोग आदि उपायों का सहारा लिया जाएगा। आवश्यकतानुसार अभियान के नए और मौलिक तरीके खोजे जा सकते हैं। किसी को अपमानित या परेशान नहीं किया जाएगा। जिनके विरुद्ध आंदोलन होगा, उनके साथ भी प्रेम और सम्मानपूर्ण व्यवहार होगा। कोशिश यह होगी कि उन्हें भी अपने आंदोलन में शामिल किया जाए। संगठन के भीतर आय और व्यय के सरल और स्पष्ट नियम बनाए जाएँगे। चंदे और आर्थिक सहयोग से प्राप्त प्रत्येक पैसे का हिसाब रखा जाएगा, जिसे कोई भी देख सकेगा।
स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता समूह काम करेंगे। वे सप्ताह में कुछ दिन सुबह और कुछ दिन शाम को एक निश्चित, पूर्वघोषित स्थान पर (जहाँ सुविधा हो, इसके लिए कार्यालय बनाया जा सकता है) कम से कम एक घंटे के लिए एकत्र होंगे, ताकि जिसे भी कोई कष्ट हो, वह वहाँ आ सके। कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारी गीतों, गजलों, भजनों, अच्छी किताबों के पाठ से होगी। उसके बाद लोगों की शिकायतों को नोट किया जाएगा तथा अगले दिन क्या करना है, कहाँ जाना है, इसकी योजना बनाई जाएगी। जिनके पास समाज को देने के लिए ज्यादा समय है जैसे रिटायर लोग, नौजवान, छात्र, महिलाएँ, उन्हें इस कार्यक्रम के साथ विशेष रूप से जोड़ा जाएगा।
काम करने के कुछ नमूने
(१). पाँच कार्यकर्ता निकटस्थ सरकारी अस्पताल में जाते हैं। अस्पताल के उच्चतम अधिकारी से अनुमति (अनुमति न मिलने पर इसके लिए संघर्ष करना होगा) ले कर वार्डों, ओपीडी, एक्सरे आदि विभागों का मुआयना करते हैं और लौट कर अधिकारी से अनुरोध करते हैं कि इन कमियों को दूर किया जाए। कमियाँ दूर होती हैं या नहीं, इस पर निगरानी रखी जाती है। उचित अवधि में दूर न होने पर पुलिस को सूचित कर धरना, सत्याग्रह आदि का कार्यक्रम शुरू किया जाता है।
(२). कुछ कार्यकर्ता पास के सरकारी स्कूल में जाते हैं। प्रधानाध्यापक से अनुमति ले कर स्कूल की स्थिति के बारे में तथ्य जमा करते हैं और प्रधानाध्यापक से कह कर कमियों को दूर कराते हैं। प्रधानाध्यापक स्कूल के लोगों से बातचीत करने की अनुमति नहीं देता, तो लगातार तीन दिनों तक उससे अनुरोध करने के बाद स्कूल के बाहर सत्याग्रह शुरू कर दिया जाता है।
(3) कार्यकर्ता राशन कार्ड बनानेवाले दफ्तर में जाते हैं और वहाँ के उच्चाधिकारी को अपने आने का प्रयोजन बताते हैं। राशन कार्ड के लिए आवेदन करनेवाले सभी व्यक्तियों को उचित अवधि में कार्ड मिल जाया करे, यह व्यवस्था बनाई जाती है। जिनका आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है, उन्हें समझाया जाता है कि कौन-कौन-से दस्तावेज जमा करने हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में किराए के घर में रहनेवाले किसी व्यक्ति के पास निवास स्थान का प्रमाणपत्र नहीं है, तो कार्यकर्ता मकान मालिक से आग्रह कर उसे किराए की रसीद या कोई और प्रमाण दिलवाएँगे।
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पृष्ठभूमि - 2
अंग्रेजी, भारत छोड़ो
बहुत समय तक यह कहा जाता रहा कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। आज का सच यह है कि भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी है। संविधान की मोटी किताब में लिखा हुआ है कि हिंदी केंद्रीय सरकार के कामकाज की और स्थानीय क्षेत्रीय भाषाएँ राज्य सरकारों के कामकाज की भाषा होंगी। केंद्रीय सरकार का सारा कामकाज अभी भी अंग्रेजी में होता है और उसका अनुवाद दुमछल्ले के रूप में जोड़ दिया जाता है, क्योंकि संविधान का पालन करने तथा हिंदीभाषियों की भावनाओं को संतुष्ट करने के लिए राजभाषा अधिनियम नाम का एक दोगला कानून बना दिया गया है। कुछ राज्य सरकारें अपनीअप्ानी राजभाषा में काम करती हैं। लेकिन ये काम साधारण स्तर के होते हैं। बड़े और महत्वपूर्ण काम अकसर अंग्रेजी में ही होते हैं। केंद्रीय सरकार से पत्र व्यवहार अंग्रेजी में ही करना होता है। उद्योग-व्यापार में अंग्रेजी का इस्तेमाल लगभग अनिवार्य हो चुका है। शिक्षा में अंग्रेजी का स्थायी दबदबा स्थापित हो चुका है। इस तरह देश भर में चारों ओर अंग्रेजी का पागलपन बढ़ रहा है। गरीब से गरीब आदमी भी यही चाहता है कि उसके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ें। कहा जा सकता है कि विकास की लड़ाई में हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाएँ पराजित हो चुकी हैं और अंग्रेजी का वर्चस्व कायम हो चुका है।
मजेदार बात यह है कि इस भविष्य को सबसे पहले उस लेखक ने ही पहचाना था जिसे भारत में लगातार गालियाँ पड़ती रहीं। उसका नाम नीरद सी. चौधुरी है। नीरद बाबू ने अंग्रेजी राज के दौरान ही लिखा था कि भारत में अंग्रेजी की स्थापना में सबसे बड़ी बाधा खुद अंग्रेज हैं। देशभक्त लोग अंग्रेजी से घृणा करते हैं, क्योंकि अंग्रेजी ब्रिाटिश शासकों की भाषा है। भारत लौटने के कुछ समय बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग पहले कम और बाद में लगभग बंद कर दिया था। उस दौर में यह आम राय थी कि भारत की राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता हिंदी में ही है। यह बात कहने को वे भी बाध्य थे जिन्हें हिंदी नहीं आती थी या जो हिंदी को एक तुच्छ भाषा मानते थे। वस्तुत: यह हिंदी प्रेम नहीं था, अंग्रेजी का विरोध भी नहीं था। ये सभी लोग खासे अंग्रेजी पढ़े-लिखे और अंग्रेजी प्रेमी थे। उनका विरोध अंग्रेजी शासन से था। वे सोचते थे कि भारत आजाद होगा, तो जैसे अन्य देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है, वैसे ही भारत की भी अपनी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। यह भाषा अंग्रेजी तो हो ही नहीं सकती, भारत की ही कोई भाषा होगी। अपनी लोक व्यापकता के कारण हिंदी ही इस शर्त पर खरी उतरती थी। इस तरह हिंदी को सर्वसम्मति से भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला। नीरद चौधुरी ने लिखा है कि जब अंग्रेज भारत से चले जाएँगे, तब अंग्रेजों के भाग्य खुलेंगे और वह भारत की आम भाषा बनने की ओर मुखातिब होगी। शायद नीरद बाबू अपनी बारीक आँखों से देख रहे थे कि भारत के लोग अंग्रेजी शासन से घृणा जरूर करते हैं, पर अंग्रेजों को और अंग्रेजी सभ्यता को आदर की दृष्टि से देखते हैं और उनके जैसा बनना भी चाहते हैं। इसीलिए उन्हें यकीन था कि जब अंग्रेज भारत से चले जाएँगे, तब भारतीय अंग्रेजों की तरह रहने का प्रयास करेंगे।
स्वतंत्रता संघर्ष के असर से कुछ समय तक अंग्रेजीकरण की प्रक्रिया थमी रही, लेकिन जब यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय राज्य न तो गांधीवादी होगा और न ही समाजवादी - वह मूलत: भोगवादी होगा, तब अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित होने लगा। जाति और दौलत के बाद अंग्रेजी सफलता की तीसरी सीढ़ी बन गई। यह प्रक्रिया आज तक जारी है। उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियाँ अपनाने के बाद तो यह भी साफ हो गया कि हमारा उद्देश्य एक ऐसा देश बनना है जिसमें कुछ करोड़ लोग चैन से रहेंगे, बाकी को उनकी किस्मत पर छोड़ दिया जाएगा और दोनों वर्गों के बीच मौजूद विषमता को बढ़ने दिया जाएगा। इस नए शासक वर्ग की एकमात्र भाषा है - अंग्रेजी। यही इस अखिल भारतीय शासक कहिए या शोषक वर्ग की संपर्क भाषा भी है। इस वर्ग के बच्चों की मातृभाषा अंग्रेजी है। ये कोई भी भारतीय भाषा ठीक से न बोल सकते हैं न लिख सकते हैं।
इसीलिए निवेदन है कि यदि अंग्रेजी के विरुद्ध लोक संघर्ष आज नहीं छेड़ा गया, तो जितना समय बीतता जाएगा, यह काम उतना ही मुश्किल होता जाएगा। मामला सिर्फ हिंदी का नहीं है। यह संकट सभी भारतीय भाषाओं का है। अंग्रेजी की पूतना सभी भारतीय भाषाओं को खाती जा रही है - एक-एक कर नहीं, एक साथ। हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाएँ गरीब और अविकसित लोगों की भाषाएँ बन कर रह गई हैं। जहाँ विकास है, वहाँ अंग्रेजी है। जहाँ गरीबी और शक्तिहीनता है, वहाँ हिंदी है। उल्लेखनीय है कि कोई भी भाषा अकेले नहीं मरती, वह अपने बोलने या लिखनेवालों को साथ ले कर मरती है। यानी हिंदी की क्रमिक मृत्यु वास्तव में हिंदी भाषियों के अवसान का प्रतीक है। जो सफलता के राजमहल में घुसने या घुसपैठ करने में सफल हो जाते हैं, वे अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी का दामन थाम लेते हैं। आज की पीढ़ियों में ऐसे बहुत-से लोग मिल जाएँगे जो अंग्रेजी और कोई भारतीय भाषा भी जानते हैं, क्योंकि यह संक्रमण का दौर है। एकाध दशक बाद होगा यह कि सफल और संपन्न वर्ग में अंग्रेजी ही चलेगी। वह स्थिति आने के पहले ही हमें भाषा आंदोलन छेड़ देना चाहिए और डंके की चोट पर कहना चाहिए कि अंग्रेजी, भारत छोड़ो। जिसे अंग्रेजी, फ्रेंच या स्पेनिश सीखना हो, वह शौक से सीखे। पर अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम अंग्रेजी के पोस्टर फाड़ देंगे, अंग्रेजी के होर्डिंगों को गिरा देंगे और सरकारी अधिकारियों उद्योगपतियों-व्यापारियों को अंग्रेजी का इस्तेमाल नहीं करने देंगे। अंग्रेजी नहीं बोलने देंगे। मीडिया में अंग्रेजी के आतंक को खत्म करेंगे। अंग्रेजी दैनिकों का बहिष्कार करेंगे। अंग्रेजी फिल्में दिखाई जा सकती हैं। अंग्रेजी संगीत भी सुना जा सकता है। संस्कृति के क्षेत्र में सभी भाषाओं को समान महत्व दिया जाएगा। पर अंग्रेजी जहाँ-जहाँ भी प्रभुता की भाषा बनी हुई है, जहाँ-जहाँ वह वर्ग विभाजन पैदा कर रही है, वहां से उसे नेस्तानाबूद करके ही हम चैन की साँस लेंगे। इसलिए नहीं कि हम अंग्रेजी से नफरत करते हैं, बल्कि इसलिए कि हम देश को और देश के सभी लोगों को प्यार करते हैं। भाषा का सवाल भारत के भविष्य का सवाल है।
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पृष्ठभूमि - 3
भारत का संविधान
कुछ महत्वपूर्ण अंश
भारत का संविधान एक पवित्र और निर्णायक महत्व का दस्तावेज है। देश का शासन इसी के आधार पर चलाया जाना चाहिए, जो शुरू से ही नहीं हो रहा है। इसलिए यह जरूरी है कि भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को भारतीय संविधान की खास-खास बातों की जानकारी हो। इसी उद्देश्य से यहाँ संविधान के कुछ हिस्सों के प्रस्तुत किया जा रहा है।
राज्य की नीतियाँ
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुसार हम यह माँग कर सकते हैं कि भारतीय राज्य इन नीतियों का पालन करे
38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा -
(1) राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करे, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा।
(2) राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसाओ में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व -
राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से
(क) पुरुष और स्त्री सभी नगारिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो;
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बँटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो;
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बँटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो;
(ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादनसाधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेंद्रण न हो;
(घ) पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो;
(ङ) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों;
(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।
39क. समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता -राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार से काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, विशिष्टतया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से नि:शुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
41. कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार -
राज्य अपनी आर्थिक सामथ्र्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
राज्य अपनी आर्थिक सामथ्र्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
42. काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध
-राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के उपबंध करेगा।
-राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के उपबंध करेगा।
43. कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि -राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएँ तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
43क. उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना - राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से
कदम उठाएगा।
कदम उठाएगा।
44. नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता -राज्य, भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
45. बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध -राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर, सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।
46. अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि -राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा।
47. पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य -राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कत्र्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।
48. कृषि और पशुपालन का संगठन -राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा।
48क. पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा -राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
51. अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि - राज्य
(क) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
(ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
(ग) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और
(घ) अंतरराष्ट्रीय विवादों के माध्यस्थम द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का, प्रयास करेगा।
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नागरिकों के मूल अधिकार
भारतीय संविधान के भाग 3 अनुसार नगारिकों के कुछ मूल अधिकार इस प्रकार हैं
समता का अधिकार
14. विधि के समक्ष समता -राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
15. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध -
(1) राज्य, किसी नगारिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर-
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश या
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश या
(ख) पूर्णत: या भागत: राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग के संबंध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बंधन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
16. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता -
(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
17. अस्पृश्यता का अंत -"अस्पृश्यता' का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। "अस्पृश्यता' से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
स्वातंत्र्य-अधिकार
19. वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
-(1) सभी नागरिकों को
(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ) भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और
(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा।
शोषण के विरुद्ध अधिकार
23. मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध -
(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
24. कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध -चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा। धर्म की स्वातंत्रता का अधिकार
25. अंत:करण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता -
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
26. धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता -
लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को
(ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंधन करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का, अधिकार होगा।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
29. अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण -
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार -
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
नागरिकों के मूल कर्तव्य
भारतीय संविधान के भाग 4क के अनुसार प्रत्येक नागरिक के कर्तव्य इस प्रकार हैं -51क. मूल कर्तव्य - भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह
(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें।
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्मदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ट) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ट) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
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- कविता वाचक्नवी
भारत सेवा दल Servants of India Society?, क्या यह प्रथम विश्व युद्ध के समय की वही बुद्धिजीवी संस्था पुनर्जीवित करने का प्रयास है जिसके बारे में हम इतिहास की पुस्तकों में पढ़ते रहे हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा विचार है। हाथ पर हाथ धरे बैठने से हमारा नाश निश्चित है। जागो भारत , जागो !
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट विचार है ! और समय की जरुरत भी !
जवाब देंहटाएंउच्च उद्देश्य पर शायद लागू करना कठिन। ऐसी कई संस्थाएं अंततः किसी राननीतिक दल से मिल जाती रही हैं अतीत में!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकविता जी, यह एज़ेन्डा क्या कुछ अतिवादी और कहीं कहीं अव्यवहारिक तो नहीं है ?
ऎसी कई संस्थाओं से जुड़ चुका हूँ, और कटु अनुभवों की पूँजी है, मेरे पास !
अब तो ऎकला चलो रे.. का अनुसरण करते हुये यथासंभव सामाज़िक कार्य करता हूँ ।
कोई मतभेद नहीं.. कोई आडंबर नहीं.. कोई प्रचार नहीं.. फिर भी अधिक सफ़लता और संतोष है !
kavitaji,
जवाब देंहटाएंnamaskaar,
bahut umda lekh hai
is lekh ki ek prati kripya mere email par bhejen taki mai print nikal sakun
email id malviyashiv@gmail.com