मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में
- डॉ. देवराज
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नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता
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मणिपुर के साहित्यकार न केवल देश की मूक जनता को आज़ादी के लिए ललकार रहे थे बल्कि उन्हें अपने आध्यात्मिक इतिहास की भी याद दिला रहे थे। इस संदर्भ में डॉ. देवराज ने मणिपुरी कविता को खंगाला है और ऐसी कविताएँ प्रस्तुत की हैं जो मिथकों को उजागर करती हैं :
"आध्यात्मिक, दार्शनिक और रहस्यवादी भावना की व्यापक अभिव्यक्ति नवजागरणकालीन कविता की महत्वपूर्ण विशेषता है। ऐतिहासिक कारणों से मणिपुरी साहित्य का मध्यकाल बंगाल के मार्ग से आई वैष्णवी चेतना से अतिशय प्रभावित रहा है।
इस मिथ्या माया के मरीचिका-जाल में ही सारा संसार डूब रहा है, क्योंकि माया ने उसे इस क्षण मात्र में मोहित करके विवेकहीन बना दिया है :
मोहित कर लिया क्षण मात्र में
मिथ्या पवन बाँसुरी ने
डूब रहा है दुख में
संसार मृग मूर्खता से
[अशाङ्बम मीनकेतन सिंह]
"इस प्रतिकूल वातावरण में केवल ईश्वर ही वह सत्ता है, जो व्यक्ति का कल्याण कर सकती है, अत: उसी का गुणगान करना अनिवार्य है :
कहाँ है सच्चा मित्र
शक्ति-भर खोजा
शक्ति-भर सोचा
कोई नहीं ईश्वर के सिवा
बिना भेद किए काल का
विभक्त किए बिना मन को
करो स्मरण स्वामी का।
[चिङाखम मयुरध्वज]
"तत्कालीन कवियों ने इस प्रकार की अनेक रचनाओं के माध्यम से ईश्वर, प्रकृति, आत्मा आदि के स्वरूप और गुणों का वर्णन किया है। अध्यात्म और रहस्यवाद संबन्धी नवजागरणकालीन साहित्य की प्रकृति बहुत कुछ हिन्दी और बंगला कवियों से मेल खाती है। कबीर, मीरा, जयशंकर प्रसाद और रवीन्द्र के यहाँ इसके समतुल्य भाव खोजना कठिन नहीं है। कुछ कवियों ने तो ऐसी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जिन्हें पढ़ते समय गीता के श्लोक स्मृति में उभरने लगते हैं :
नाशवान है शरीर, अमर है आत्मा
आसान है नए वस्त्र धारण करना, पुराने छोड़
कर्म ही है करणीय, नहीं खोजो फल को
तुम सिर्फ़ हो कर्मी मैं हुं करने वाला
[राजकुमार शीतलजीत सिंह]
"दर्शन को प्रकृति के सहारे सहज रूप में प्रस्तुत करने वाली ऐसी अभिव्यक्तियाँ पाठक का ध्यान बरबस आकृष्ट करनी हैं :
प्रिय पुष्प हे कमल
हम भी तुम्हारी तरह हैं
इस भवसागर में
लिखते हैं बिखरने के लिए
[ख्वाइराकुपम चाओबा सिंह]
"नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता में अपूर्व सौंदर्य दृष्टि दिखाई देती है। यह आश्चर्यचकित कर देनेवाला तथ्य है कि इन कवियों ने सौंदर्य तत्व का भावात्मक संवेगों के सहारे काव्य और कल्पना का विषय बनाया है। यह इन कवियों की निजी विशेषता ही कही जाएगी कि उनके पास सौंदर्य एक सांस्कृतिक दृष्टि के रूप में है, जिसके कारण वे अपनी रोमानी आदर्श प्रधान प्रवृत्ति के होते हुए भी सामान्य जीवन की सहजता और यथार्थ से विलगाव नहीं रखते। उनके लिए निर्धन श्रमजीवी नारी का जीवन कुछ इस प्रकार का है :
अनेक बहनें
बारिश-धाम से बे-परवाह
नहीं उतारतीं चावल की टोकरी सिर से
कमर में बाँध फेंटा
तज कर लोक लाज
सोचो भाग-दौड़ कर रही हैं किस के लिए।
[हिजम अङाङ्हल]
"इन समस्त विशेषताओं के साथ नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता में मानवतावाद का स्वर अत्यन्त उज्ज्वल है। कवियों ने व्यक्ति के हृदय के प्रेम को मानवता की कसौटी पर कसकर अद्भुत साहस का परिचय दिया है :
स्वर्ण-हार प्रेम का
उतार कर गले से प्रिय के
पहना सके जो शत्रु को
कहलाता है व्यक्ति वही सच्चा-प्रेमी
यह एक प्रकार से नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता के उदात्त सांस्कृतिक चरित्र का प्रमाण है।"
.....क्रमश:
(नेटप्रस्तुति:चंद्रमौलेश्वर प्रसाद)
यहां आलेख मैं कल देख गया था, लेकिन पढने का मौका आज सुबह मिला.
जवाब देंहटाएंमणिपुरी कवियों ने जनजागरण में जो हिस्सा बटाया उसके बारे में जान कर बडी खुशी हुई.
यहां प्रस्तुति के लिये इस आलेख को चुनने के लिये आभार!
सस्नेह -- शास्त्री