पर्वतों के मध्य बनी एक गुफा में दो से तीन फीट तक पानी कलकल की ध्वनी के साथ प्रवाहमान था। गुफा की चट्टानें हल्के पीले रंग की एकदम चिकनी थीं। चट्टानों से बनी दीवार सम नहीं होकर कटी हुई थीं, जैसे कारीगर ने काट-काटकर गुफा बनायी हो। गुफा की चैड़ाई कहीं पाँच फीट तो कहीं दो या तीन फीट तक थी। गुफा के मुहाने पर एक कुण्ड जैसा बन गया था जिसमें दो-तीन फीट पानी भरा था। पानी का बहाव लगातार था और कुण्ड से पानी छलक कर पहाड़ों से होता हुआ बाहर जा रहा था।
गाइड कम ऑटो वाले ने मुझे कहा कि पानी में उतर जाइए, और आगे बढ़िए। यह छोटा सा कुण्ड आगे जाकर सुरंगनुमा है। अन्दर गुप्त गोदावरी प्रवाहित है।
आगे कितनी लम्बी सुरंग है? और पानी कितना है? साड़ी गीली हो जाएँगी। नहीं, मैं आगे नहीं जा पाऊँगी। सभी धार्मिक स्थानों पर ढेरों आख्यान सुनते हैं। गीले कपड़ों को लेकर ऑटो में बैठना सम्भव नहीं होगा।
अरे कोई यहाँ तक आने के बाद भी गुफा में नहीं जाएगा, ऐसा कैसे हो सकता है? साथी महिला-मित्र ने हाथ पकड़ा और पानी में कुदा दिया। कहा कि साड़ी को ऊपर बाँध लो।
पैरों के नीचे खुरदरी जमीन थी, लगातार पानी के बहाव के बावजूद वहाँ फिसलन नहीं थी। अन्दर सूर्य की किरण भी नहीं पहुँच पाती थी, फिर भी ‘काई’ का नामोनिशान तक नहीं था। हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़े। प्रकाश व्यवस्था वहाँ पर थी अतः गुफा का सौंदर्य दमक रहा था। हम चिकनी दीवारों को सहलाते हुए, पैरों को साधते हुए आगे बढ़ रहे थे। पानी तकरीबन हर जगह दो फीट तक तो था ही, बस कहीं-कहीं तीन फीट भी हो जाता था और हमारे घुटने तक आ जाता था। जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए, मार्ग कई जगहों से सकड़ा होता गया। लोगों की तादाद भी बढ़ती जा रही थी, कई जगह मार्ग इतना संकरा था कि एक बार में एक व्यक्ति ही आ-जा सकता था। लेकिन गोदावरी मैया की जय और सीता माता की जय के साथ सभी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे।
पर्वतों से घिरी इस गुफा में कई मोड़ों और संकरे रास्तों से गुजरकर हम ऐसे स्थान पर थे जहाँ गुफा समाप्त हो रही थी। वहाँ एक पण्डितजी बैठे हुए मिले और एक छोटा सा मंदिर बनाकर वे लोगों की मनोकामना पूर्ण करा रहे थे। वापसी भी उसी रास्ते से थी। लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। पानी का आनन्द लेने का समय ही नहीं था। अन्दर गुफा संकरी हो गयी थी और अधिक लोग वहाँ ठहर नहीं सकते थे। बस हमने तो पानी को अपने सर पर छिड़का, पण्डितजी से आशीर्वाद लिया और वापस मुड़ गए। पण्डितजी सभी को इस गुफा का इतिहास बताने में कोताही नहीं बरत रहे थे।
जब रामचन्द्रजी अपने भ्राता लक्ष्मणजी के साथ चित्रकूट में आए थे तब उन्होंने सीता मैया के स्नान के लिए यहाँ गोदवरी मैया को प्रकट किया था। इसे गुप्त गोदावरी कहा जाता है। यह सीता मैया का स्नान कुण्ड था। पाताल तोड़ गोदावरी तभी से लगातार प्रवाहमान है। पण्डितजी अपनी बात बहुत ही श्रद्धा के साथ यात्रियों को बता रहे थे।
पहाड़ों के मध्य बनी यह गुफा प्राकृतिक स्नान कुण्ड है। गुफा के बाहर बोर्ड लगा है कि राम-लक्ष्मण द्वारा निर्मित सीता-कुण्ड। वनवासी राम ने अपनी पत्नी के स्नान के लिए इतना सुंदर और सुरक्षित स्थान का निर्माण किया, जिसकी तुलना किसी भी निर्माण से नहीं की जा सकती। तैरने का मन हो तो आप तैर सकते हैं, पानी के उद्गम से स्नान का मन हो तो आप स्नान कर सकते हैं, आप क्रीड़ा कर सकते हैं, आमोद-प्रमोद कर सकते हैं। चट्टानें किस पत्थर की बनी हैं? लगता है जैसे पीलाभ ग्रेनाइट यहाँ लगा हो। जमीन एकदम समतल नहीं है, कहीं-कहीं चट्टानों के कारण उबड़-खाबड़ भी है अतः पैरों को जमाकर चलना पड़ता है। फिर साड़ी पहनी हो तो एक हाथ तो साड़ी सम्भालने में ही लग जाते हैं। दूसरे हाथ में केमरा था, लेकिन अन्दर फोटो लेने का जुगाड़ ही नहीं बन पाया।
श्रीराम सरयू को पार कर चित्रकूट में माता अनुसुइया और अत्रि ऋषि के आश्रम में रहते हैं। चारों तरफ वन ही वन। एक तरफ मंदाकिनी बह रही है तो दूसरी तरफ पर्वत मालाएं भी उपस्थित हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र में वनवासी ही वनवासी। महलों में पली-बड़ी सीता का मन होता झरनों के मध्य स्नान का। लेकिन सुरक्षित स्थान का अभाव। केवल मंदाकिनी का तट ही ऐसा स्थान था जहाँ सीता मैया स्नान कर सकती थीं।
एक दिन घूमते-घूमते लक्ष्मण को दिखा वह पर्वत। लक्ष्मण ने देखा कि इसमें एक गुफा भी है। बस फिर क्या था श्रीराम ने उस गुफा में तीर से ऐसा संधान किया कि गोदावरी की निर्मल धारा बह निकली। इतनी अद्भुत स्नान-गृह की कल्पना तो सीता को भी नहीं थी। पूरे ग्यारह वर्ष और छः माह के चित्रकूट के आवास में सीता मैया ने न जाने कितने पल यहाँ गुजारे होंगे? वहाँ की मखमली चट्टानी दीवारें सीता मैया के स्पर्श की साक्षी बनी हुई हैं। श्री राम और लक्ष्मण भी तो अपने आपको रोक नहीं पाते होंगे! वे भी तो इस गोदावरी के चरणों में बैठकर उसके पवित्र जल से स्वयं को पावन बने रहने का संकल्प लेते होंगे!
चित्रकूट से 20 कि.मी. दूर स्थित इस मनोरम स्थान को देखने के लिए कई प्रयास करने पड़े। नानाजी देशमुख ने चित्रकूट को नवीन स्वरूप प्रदान किया है। इससे पूर्व बस वहाँ एक जंगल था और था वहाँ वनवासी जनजातियों का बसेरा। नानाजी ने वहाँ के पाँच सौ ग्रामों को दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत समग्र ग्रामीण विकास के लिए चयन किया। मुझे भी अभी सितम्बर मास में उस परिसर में जाने का अवसर मिला।
सितम्बर मास में जहाँ मौसम सुहावना होने लगता है वहीं चित्रकूट में सूर्य भगवान की पूर्ण कृपा थी। भास्कर अपने प्रखर तेज के साथ प्रातः छः बजे ही उपस्थित हो जाते और सायम् छः साढ़े छः बजे तक बने रहते। चित्रकूट स्टेशन जहाँ उत्तर-प्रदेश में है वहीं यह परिसर मध्य-प्रदेश में है। बिजली की आँख-मिचौनी दोनों ही प्रान्तों में समान है। भला जेनेरेटर भी कब तक साथ देगा? पसीने से नहाया हुआ बदन, ऊपर से चिलचिलाता सूर्य, मन कहीं भी भ्रमण के लिए जाने को मंजूरी नहीं दे रहा था। भ्रमण के लिए बस लगी हुई थी, लेकिन गर्मी से बेहाल बनी मैं कहीं भी जाने को समर्थ नहीं थी। देखते ही देखते बस भर गयी और हमारे लिए स्थान नहीं बचा। सोचा कि चलो जान छूटी, लेकिन साथी भला कब मानने वाले थे। फिर ढूंढ प्रारम्भ हुई टेक्सी की। लेकिन चित्रकूट में टेक्सी मिलना इतना आसान नहीं, हाँ ऑटो मिल सकता है। खैर हम भी ऑटो की तलाश में ही निकले और एक ऑटो मिल भी गया। भाव-ताव करके हम भी भ्रमण के लिए निकल ही पड़े। गुप्त गोदावरी बीस कि.मी. दूर थी, रास्ते में केवल जंगल ही जंगल और उनके किनारे बसे थे कुछ झोपड़े। हम तीन महिलाएं, ऑटो से सवार होकर निकल पड़े थे चित्रकूट का चक्कर लगाने। ऐसा लग रहा था कि हम मेवाड़ के वन्यप्रदेश में आ गए हों। यदि झोपड़ियों का स्वरूप पृथक नहीं होता तो हम यही समझते रहते कि हम कोटड़ा जा रहे हैं। वहाँ झोपड़ियों और उनकी छत का आकार गोल होता है। जैसे छाता तान दिया हो। कोई पक्का मकान नहीं, बस झोपड़ियां ही झोपडियाँ।
कभी राम ने अपने कदमों से इस स्थान को पवित्र किया था और आज हम उनकी चरण-धूलि लेने निकल पड़े थे इस बीस कोसी परिक्रमा के लिए। अनुसूइया मंदिर, कामद पर्वत, मंदाकिनी नदी, सभी कुछ तो देखा लेकिन मन मोह लिया इस गुप्त गोदावरी ने। मुझे लगा कि प्रेम का उपहार शायद यह भी कम तो नहीं, जो श्रीराम ने सीता मैया को प्रदान किया था। इतनी सुंदर कंदरा में उन्होंने गोदावरी को प्रकट करा दिया और निर्मित कर डाला एक स्नान पथ। हम तो उस जल की निर्मलता को अनुभव करते रहे, सीता मैया का सान्निध्य महसूसते रहे और राम के उस प्रेम को अपने अन्दर समेटकर अपने साथ ले आए।
दीवाली पर आप सभी वैभव का स्मरण करते हैं, रोशनी और पटाखों की बाते करते हैं लेकिन कभी उस प्रेम का स्मरण भी कीजिए, कभी उस त्याग का स्मरण भी कीजिए। फिर देखिए दुनिया कितनी सुन्दर लगेगी। आज दीपावली पर्व पर हम भी भातृ-प्रेम और दम्पत्ती-प्रेम का स्मरण करें और फिर से इस दुनिया को प्रेममय बनाने की पहल करें। चित्रकूट जाने के लिए आगरा या दिल्ली से रेलमार्ग है। स्टेशन का नाम है चित्रकूट कर्वी धाम। लोग कामद गिरी की परिक्रमा भी करते हैं लेकिन मेरे आकर्षण का बिन्दु यह गुप्त गोदावरी कुण्ड बना। बरसों से गोदावरी गुप्त रूप से यहाँ कन्दराओं के मध्य प्रवाहित है। इसका निर्मल जल सभी को पावन करता है। अन्दर से बहकर आते पानी को बाहर भी एक कुण्ड में समेटा गया है, जिसमें सभी लोग स्नान कर सकते हैं। चित्रकूट जाएं तो गुप्त गोदावरी जरूर जाएं। यह प्रेम का प्रतीक है। एक अनोखा उपहार है, राम का सीता को।
गाइड कम ऑटो वाले ने मुझे कहा कि पानी में उतर जाइए, और आगे बढ़िए। यह छोटा सा कुण्ड आगे जाकर सुरंगनुमा है। अन्दर गुप्त गोदावरी प्रवाहित है।
आगे कितनी लम्बी सुरंग है? और पानी कितना है? साड़ी गीली हो जाएँगी। नहीं, मैं आगे नहीं जा पाऊँगी। सभी धार्मिक स्थानों पर ढेरों आख्यान सुनते हैं। गीले कपड़ों को लेकर ऑटो में बैठना सम्भव नहीं होगा।
अरे कोई यहाँ तक आने के बाद भी गुफा में नहीं जाएगा, ऐसा कैसे हो सकता है? साथी महिला-मित्र ने हाथ पकड़ा और पानी में कुदा दिया। कहा कि साड़ी को ऊपर बाँध लो।
पैरों के नीचे खुरदरी जमीन थी, लगातार पानी के बहाव के बावजूद वहाँ फिसलन नहीं थी। अन्दर सूर्य की किरण भी नहीं पहुँच पाती थी, फिर भी ‘काई’ का नामोनिशान तक नहीं था। हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़े। प्रकाश व्यवस्था वहाँ पर थी अतः गुफा का सौंदर्य दमक रहा था। हम चिकनी दीवारों को सहलाते हुए, पैरों को साधते हुए आगे बढ़ रहे थे। पानी तकरीबन हर जगह दो फीट तक तो था ही, बस कहीं-कहीं तीन फीट भी हो जाता था और हमारे घुटने तक आ जाता था। जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए, मार्ग कई जगहों से सकड़ा होता गया। लोगों की तादाद भी बढ़ती जा रही थी, कई जगह मार्ग इतना संकरा था कि एक बार में एक व्यक्ति ही आ-जा सकता था। लेकिन गोदावरी मैया की जय और सीता माता की जय के साथ सभी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे।
पर्वतों से घिरी इस गुफा में कई मोड़ों और संकरे रास्तों से गुजरकर हम ऐसे स्थान पर थे जहाँ गुफा समाप्त हो रही थी। वहाँ एक पण्डितजी बैठे हुए मिले और एक छोटा सा मंदिर बनाकर वे लोगों की मनोकामना पूर्ण करा रहे थे। वापसी भी उसी रास्ते से थी। लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। पानी का आनन्द लेने का समय ही नहीं था। अन्दर गुफा संकरी हो गयी थी और अधिक लोग वहाँ ठहर नहीं सकते थे। बस हमने तो पानी को अपने सर पर छिड़का, पण्डितजी से आशीर्वाद लिया और वापस मुड़ गए। पण्डितजी सभी को इस गुफा का इतिहास बताने में कोताही नहीं बरत रहे थे।
जब रामचन्द्रजी अपने भ्राता लक्ष्मणजी के साथ चित्रकूट में आए थे तब उन्होंने सीता मैया के स्नान के लिए यहाँ गोदवरी मैया को प्रकट किया था। इसे गुप्त गोदावरी कहा जाता है। यह सीता मैया का स्नान कुण्ड था। पाताल तोड़ गोदावरी तभी से लगातार प्रवाहमान है। पण्डितजी अपनी बात बहुत ही श्रद्धा के साथ यात्रियों को बता रहे थे।
पहाड़ों के मध्य बनी यह गुफा प्राकृतिक स्नान कुण्ड है। गुफा के बाहर बोर्ड लगा है कि राम-लक्ष्मण द्वारा निर्मित सीता-कुण्ड। वनवासी राम ने अपनी पत्नी के स्नान के लिए इतना सुंदर और सुरक्षित स्थान का निर्माण किया, जिसकी तुलना किसी भी निर्माण से नहीं की जा सकती। तैरने का मन हो तो आप तैर सकते हैं, पानी के उद्गम से स्नान का मन हो तो आप स्नान कर सकते हैं, आप क्रीड़ा कर सकते हैं, आमोद-प्रमोद कर सकते हैं। चट्टानें किस पत्थर की बनी हैं? लगता है जैसे पीलाभ ग्रेनाइट यहाँ लगा हो। जमीन एकदम समतल नहीं है, कहीं-कहीं चट्टानों के कारण उबड़-खाबड़ भी है अतः पैरों को जमाकर चलना पड़ता है। फिर साड़ी पहनी हो तो एक हाथ तो साड़ी सम्भालने में ही लग जाते हैं। दूसरे हाथ में केमरा था, लेकिन अन्दर फोटो लेने का जुगाड़ ही नहीं बन पाया।
श्रीराम सरयू को पार कर चित्रकूट में माता अनुसुइया और अत्रि ऋषि के आश्रम में रहते हैं। चारों तरफ वन ही वन। एक तरफ मंदाकिनी बह रही है तो दूसरी तरफ पर्वत मालाएं भी उपस्थित हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र में वनवासी ही वनवासी। महलों में पली-बड़ी सीता का मन होता झरनों के मध्य स्नान का। लेकिन सुरक्षित स्थान का अभाव। केवल मंदाकिनी का तट ही ऐसा स्थान था जहाँ सीता मैया स्नान कर सकती थीं।
एक दिन घूमते-घूमते लक्ष्मण को दिखा वह पर्वत। लक्ष्मण ने देखा कि इसमें एक गुफा भी है। बस फिर क्या था श्रीराम ने उस गुफा में तीर से ऐसा संधान किया कि गोदावरी की निर्मल धारा बह निकली। इतनी अद्भुत स्नान-गृह की कल्पना तो सीता को भी नहीं थी। पूरे ग्यारह वर्ष और छः माह के चित्रकूट के आवास में सीता मैया ने न जाने कितने पल यहाँ गुजारे होंगे? वहाँ की मखमली चट्टानी दीवारें सीता मैया के स्पर्श की साक्षी बनी हुई हैं। श्री राम और लक्ष्मण भी तो अपने आपको रोक नहीं पाते होंगे! वे भी तो इस गोदावरी के चरणों में बैठकर उसके पवित्र जल से स्वयं को पावन बने रहने का संकल्प लेते होंगे!
चित्रकूट से 20 कि.मी. दूर स्थित इस मनोरम स्थान को देखने के लिए कई प्रयास करने पड़े। नानाजी देशमुख ने चित्रकूट को नवीन स्वरूप प्रदान किया है। इससे पूर्व बस वहाँ एक जंगल था और था वहाँ वनवासी जनजातियों का बसेरा। नानाजी ने वहाँ के पाँच सौ ग्रामों को दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत समग्र ग्रामीण विकास के लिए चयन किया। मुझे भी अभी सितम्बर मास में उस परिसर में जाने का अवसर मिला।
सितम्बर मास में जहाँ मौसम सुहावना होने लगता है वहीं चित्रकूट में सूर्य भगवान की पूर्ण कृपा थी। भास्कर अपने प्रखर तेज के साथ प्रातः छः बजे ही उपस्थित हो जाते और सायम् छः साढ़े छः बजे तक बने रहते। चित्रकूट स्टेशन जहाँ उत्तर-प्रदेश में है वहीं यह परिसर मध्य-प्रदेश में है। बिजली की आँख-मिचौनी दोनों ही प्रान्तों में समान है। भला जेनेरेटर भी कब तक साथ देगा? पसीने से नहाया हुआ बदन, ऊपर से चिलचिलाता सूर्य, मन कहीं भी भ्रमण के लिए जाने को मंजूरी नहीं दे रहा था। भ्रमण के लिए बस लगी हुई थी, लेकिन गर्मी से बेहाल बनी मैं कहीं भी जाने को समर्थ नहीं थी। देखते ही देखते बस भर गयी और हमारे लिए स्थान नहीं बचा। सोचा कि चलो जान छूटी, लेकिन साथी भला कब मानने वाले थे। फिर ढूंढ प्रारम्भ हुई टेक्सी की। लेकिन चित्रकूट में टेक्सी मिलना इतना आसान नहीं, हाँ ऑटो मिल सकता है। खैर हम भी ऑटो की तलाश में ही निकले और एक ऑटो मिल भी गया। भाव-ताव करके हम भी भ्रमण के लिए निकल ही पड़े। गुप्त गोदावरी बीस कि.मी. दूर थी, रास्ते में केवल जंगल ही जंगल और उनके किनारे बसे थे कुछ झोपड़े। हम तीन महिलाएं, ऑटो से सवार होकर निकल पड़े थे चित्रकूट का चक्कर लगाने। ऐसा लग रहा था कि हम मेवाड़ के वन्यप्रदेश में आ गए हों। यदि झोपड़ियों का स्वरूप पृथक नहीं होता तो हम यही समझते रहते कि हम कोटड़ा जा रहे हैं। वहाँ झोपड़ियों और उनकी छत का आकार गोल होता है। जैसे छाता तान दिया हो। कोई पक्का मकान नहीं, बस झोपड़ियां ही झोपडियाँ।
कभी राम ने अपने कदमों से इस स्थान को पवित्र किया था और आज हम उनकी चरण-धूलि लेने निकल पड़े थे इस बीस कोसी परिक्रमा के लिए। अनुसूइया मंदिर, कामद पर्वत, मंदाकिनी नदी, सभी कुछ तो देखा लेकिन मन मोह लिया इस गुप्त गोदावरी ने। मुझे लगा कि प्रेम का उपहार शायद यह भी कम तो नहीं, जो श्रीराम ने सीता मैया को प्रदान किया था। इतनी सुंदर कंदरा में उन्होंने गोदावरी को प्रकट करा दिया और निर्मित कर डाला एक स्नान पथ। हम तो उस जल की निर्मलता को अनुभव करते रहे, सीता मैया का सान्निध्य महसूसते रहे और राम के उस प्रेम को अपने अन्दर समेटकर अपने साथ ले आए।
दीवाली पर आप सभी वैभव का स्मरण करते हैं, रोशनी और पटाखों की बाते करते हैं लेकिन कभी उस प्रेम का स्मरण भी कीजिए, कभी उस त्याग का स्मरण भी कीजिए। फिर देखिए दुनिया कितनी सुन्दर लगेगी। आज दीपावली पर्व पर हम भी भातृ-प्रेम और दम्पत्ती-प्रेम का स्मरण करें और फिर से इस दुनिया को प्रेममय बनाने की पहल करें। चित्रकूट जाने के लिए आगरा या दिल्ली से रेलमार्ग है। स्टेशन का नाम है चित्रकूट कर्वी धाम। लोग कामद गिरी की परिक्रमा भी करते हैं लेकिन मेरे आकर्षण का बिन्दु यह गुप्त गोदावरी कुण्ड बना। बरसों से गोदावरी गुप्त रूप से यहाँ कन्दराओं के मध्य प्रवाहित है। इसका निर्मल जल सभी को पावन करता है। अन्दर से बहकर आते पानी को बाहर भी एक कुण्ड में समेटा गया है, जिसमें सभी लोग स्नान कर सकते हैं। चित्रकूट जाएं तो गुप्त गोदावरी जरूर जाएं। यह प्रेम का प्रतीक है। एक अनोखा उपहार है, राम का सीता को।
लेखिका राजस्थान साहित्य अकादमी की चेयरमैन व `मधुमती 'की सम्पादक हैं.
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