पिछले अंक (३) तक आपने पढ़ा -----
एक दिन भैया के संदर्भ में वे जैसे ख़ुद से जूझते हुए बड़बड़ाए थे -‘साला आखि़र, अपनी उस कमीनी व धोखेबाज़ माँ की तरह ही निकला।’ ममी के लिए पापा इतने गंदे शब्द भी इस्तेमाल कर सकते हैं, उसने पहली बार सुना था। अमि को पतानहीं, ममी कैसी रही होगी।
एक चुप्पी क्रॊस पर चढ़ी
- प्रभु जोशी
अब आगे पढ़ें - (४)
पापा ने ममी के तमाम फोटोग्राफ्स फाड़ डाले थे। भैया के मुँह से ही यह भी जाना था कि ममी को लिखने-पढ़ने का खूब शौक था। साड़ियाँ या सौंदर्य प्रसाधन की चीज़ों की जगह ममी पत्रिकाएँ व किताबें भर लाती थीं और इसी बात को लेकर ममी व पापा के बीच टेन्शन बढ़ता गया था। नतीज़तन पापा ने ममी को एक कमरा अलग से दे दिया था। ऊपरी मंज़िल का। जिसमें ममी अपनी किताबों और कपड़ों की अल्मारियों के साथ अलग-सी रहने लगी थी। पापा से लगभग अलग और असम्पृक्त।
भैया ने ही बताया था ममी बहुत मर्मस्पर्शी कहानियाँ लिखा करती थीं और उनकी एक कहानी छपने पर पापा ने ममी को बूटों की ठोकरों व थप्पड़ों से बहुत बेरहमी से पीटा था।भैया तब काफी छोटे थे और उन्होंने भी तब किसी आई।पी.एस. अफसर का गुस्सा पहली बार देखा था। ममी खूब रोयी थीं। और जब सुबह हुई, तो ममी की लाश दुमँज़िले फ्लैट के पिछले पथरीले फर्श पर मिली थी। ममी ने टैरेस पर से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। और जब पापा व भैया के बीच झगड़ा हुआ था, तो अमि को डर लगने लगा था, भैया भी किसी भी क्षण, उसकी आँख लगते ही फ्लैट के टैरेस से पथरीले फर्श पर कूद पड़ेंगे। वह रात भर सिसकती हुई भैया के सीने में दुबकी सोयी रही थी। पूरी रात उसकी आँखों में पापा की अँगुलियों व जूतों की ’टो’ ही तैरती रही थी। चमकती हुई। अंधेरे में। किसी बनैल पशु की आँख-सी। अमि इतना सारा सोच कर घबरा-सी उठी। उठ कर उसने लाॅन की ओर की बंद खिड़की खोल दी। हवा का एक ठण्डा झोंका पीले गुलाबों से होता हुआ कमरे में आ गया। मगर, घुटन फिर भी कम नहीं हुई। अमि पीले गुलाबों की ओर टकटकी लगायेदेख रही थी। उसे याद आया, उस दिन अमि ने अपने बालों में पीला गुलाब लगा लिया था। काॅलेज के लिए निकलते वक़्त पापा लाॅन में टकरा गये थे। और उन्होंने अमि को आवाज़ लगा कर अपने पास बुलाया था। और चुपचाप उसके बालों में से वह पीला गुलाब निकाल कर फेंकते हुए बोले थे, ‘हाऊ अ गाॅडी-कलर्ड फ्लावर इट इज़’। अमि का चेहरा रुआँसा हो आया था। तब से अमि ने उन फूलों को हाथ नहीं लगाया। वे खिलते हैं और वहीं सूख जाते हैं। अमि को बहुत दिन बाद पता लगा था, ममी को पीले गुलाब और अशोक के पेड़ बड़े प्यारे लगा करते थे। इन्हें लाॅन में उन्होंने ख़ासतौर पर लगवाये थे। माली से कहकर। अपने सामने। ख़ुद खड़े रह कर। वह पीले गुलाबों की तरफ देखने लगी। देखकर उसे लगा, जैसे धूप भी अब इन पर कुछ ज़्यादा बेरहमी से ही गिरती है। अमि के भीतर उठे इस निष्कर्ष ने, आँखें गुलाबों से हटा कर अशोक की तरफ कर दी। वहाँ देखते हुए पहली बार ख़याल आया, ग़ालिबन अशोक के पेड़ ने भी पापा के ‘अटेंशन’ का कमाण्ड सुनकर अपनी शाखें अपनी देह से ऐसी चिपका ली कि आज तक खोल ही नहीं पाया। हमेशा सहमा सा, सीधा खड़ा रहता है। बिना हाथ के आदमी-सा।यक-ब-यक उसके भीतर भैया की याद एक टीस की तरह उठी और वह सिहर सी गई।उसने विश्लेषित किया कि ममी को याद करते वक़्त भैया व भैया को याद करते ही ममी याद आने लगती है.... भैया के चले जाने के बाद से उनके कमरे की ओर तो अमि से देखा तक नहीं जाता।
क्रमश:
आगामी अंक (५) में -
भैया ने जाने के तीसरे ही दिन बाद ख़त डाला था, अमि के नाम, जिसमें जिक्र था कि वे बम्बई में ही अपने एक इंजीनियर दोस्त के पास पवई के होस्टल में रूके हुए है। कुछ दिनोंबाद ही भैया ने अमि के लिए एक उपहार भेजा था। पापा ने उसे उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दिया था। अमि रोने लगी थी, तो शाम को पापा आफिस से लौटते समय उसके लिए ढेर सारे स्कर्ट व कुर्तियों के पीसेज़ उठा लाये थे। ......
भैया ने जाने के तीसरे ही दिन बाद ख़त डाला था, अमि के नाम, जिसमें जिक्र था कि वे बम्बई में ही अपने एक इंजीनियर दोस्त के पास पवई के होस्टल में रूके हुए है। कुछ दिनोंबाद ही भैया ने अमि के लिए एक उपहार भेजा था। पापा ने उसे उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दिया था। अमि रोने लगी थी, तो शाम को पापा आफिस से लौटते समय उसके लिए ढेर सारे स्कर्ट व कुर्तियों के पीसेज़ उठा लाये थे। ......
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