उन सबको नंगा करो......
तेवरी : ऋषभ देव शर्मा
ज्वालामय विस्फोट
पग पग घर घर हर शहर , ज्वालामय विस्फोटकुर्सी की शतरंज में , हत्यारी हर गोट
आग लगी इस झील में , लहरें करतीं चोटध्वस्त न हो जाएँ कहीं , सारे हाउस बोट
कुरता कल्लू का फटा , चिरा पुराना कोट पहलवान बाज़ार में , घुमा रहा लंगोट
सीने को वे सी रहे , तलवारों से होंठगला किंतु गणतंत्र का , नहीं सकेंगे घोट
जिनका पेशा खून है , जिनका ईश्वर नोटउन सबको नंगा करो , जिनके मन में खोट
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आपके विचारों से पूर्ण सहमत, और कविता की बानगी देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। साधुवाद।
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