मुम्बई के डॉ. महेंद्र कार्तिकेय द्वारा स्थापित वा पोषित `समकालीन साहित्य सम्मलेन' अपनी प्रति वर्ष की जाने वाली संगोष्ठियों की निरंतरता के साथ साथ इस कारण भी महत्त्वपूर्ण रहा है कि इसमें सभी प्रकार के वाद से मुक्त हो कर सभी खेमों के रचनाकार/ आलोचक सम्मिलित होकर निर्विवाद भाग लेते रहे हैं। यह भी ध्यातव्य है कि यह किसी सरकारी, विश्वविद्यालीय या ऐसे ही किसी खाते से संयोजित होने वाला सम्मेलन या संगोष्ठी नहीं होता है। चेन्नई व कानपुर के आर्मापुरा कॉलेज में आयोजित इसके वार्षिक अधिवेशनों में सम्मिलित होने का सुखद संयोग मुझे भी मिल चुका है। तब डॉ. महेंद्र कार्तिकेय जीवित थे व अपने स्वभाव की सहजता से सभी को सदा के लिए अपना मित्र व प्रशंसक बना लिया करते थे।
व्यक्ति - विशेष के प्रयासों द्वारा संचालित ऐसी बहुत कम संस्थाएं होती हैं जो अपने उस कर्णधार के न रहने के पश्चात् भी अनवरत उसी प्रकार कार्य करती रहें । हर्ष की बात यह है कि समकालीन साहित्य सम्मलेन के साथ ऐसा नहीं हुआ। डॉ.महेंद्र कार्तिकेय के सुपुत्र वैभव कार्तिकेय ने इसे उतनी ही लगन व निष्ठा से अपना लिया जैसी पिता की कभी अपेक्षा व स्वप्न रहा होगा। गत कई वर्षों से `समकालीन साहित्य सम्मेलन ' महेंद्र जी की अनुपस्थिति में भी निरंतर उसी प्रकार अपने वार्षिक अधिवेशन पूरी तन्मयता से आयोजित कर रहा है। जिसके लिए संस्था के अन्य पदाधिकारियों के साथ -साथ वैभव कार्तिकेय की लगन ही मूल है।
इस वर्ष संस्था का ३० वाँ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन (२९ जुलाई से ३ अगस्त तक) दुबई में आयोजित होने जा रहा है । जिसकी सूचना व प्रेस विज्ञप्ति को यहाँ देखा जा सकता है। दुबई अथवा आसपास के नगरों में रहने वाले जो भी लोग हिन्दी साहित्य के गंभीर चिंतन - मनन में रूचि रखते हों वे इसका लाभ उठा सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित
( कविता वाचक्नवी )
आभार जानकारी के लिए. कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाऐं.
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