mouli pershad >cmpershad@yahoo.com
शायद आज इस ग्रूप का होना सार्थक प्रमाणित हुआ। बधाई डॉ. कविता वाचक्नवी जी,भारतीय इतिहास की इतनी अच्छी व्याख्या के लिए। शायद अब हमारी संस्कृति पर उंगली उठाने वालों की आंखें खुल जाए!
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अच्छी चर्चा चल रही है.
वेदों व वैदिक संस्कृति को नकारने वालों के साथ समस्या यह है कि वे वेद के नाम पर प्रचलित किसी भी अधकचरी संस्कृत में कही या मान्यता के रूप में प्रचलित बात को वेद की बात कह कर सुनी सुनाई के आधार पर गाली देते या नकारते चलते हैं. जैसा कि बहुधा साहित्य की मुख्य धारा के मुखिए अपने नेतृत्व को साबित करने अथवा विभाजन के लिए पाए मान व पैसे को पचाने एवम् खपाने के लिए दिखाए जाने वाले कार्यों की सूची को लम्बा करने के लिए एक यही मार्ग अपनाए जग जाहिर हैं. क्योंकि उनकी प्रतिबद्ध्ता प्रायोजकों के प्रति है, सो वे इस देश का अहित करके भी उनका हित पहले साधेंगे ही. दुर्भाग्य यह है कि उनकी इन कारस्तानियों के फलस्वरूप जाने कितने लोग, जो स्वयम् वेद या वैदिक ज्ञान तक पहुंचने का कष्ट नहीं उठाते या नहीं उठा पाते, वे, इन्हीं बातों को परम सत्य मान कर स्वयम् भी इन्हीं तर्कों का सहारा लेकर स्वयम् को फ़ॊरवर्ड अनुभव करते कराते हैं.
एक और दुर्भाग्य यह भी है कि इन लोगों से टकराने वाले भी जिन तर्कों व तथ्यों का आश्रय लेते हैं, वे तर्क व तथ्य भी स्वयम् उन्हें अधूरे जाने ही रेखांकित किए जाते हैं बहुधा. इसलिए प्रतिपक्ष द्वारा भोथरे प्रमाणित कर दिए जाते हैं. भले ही वह वर्णाश्रम व्यवस्था की बात हो या मनुस्मृति को नकारने की बात, या स्त्री या अन्य सामाजिक सहभागियों के सम्बन्ध में सामाजिक आचार संहिता के नियमन की बात.
मध्युगीन मान्यताओं को भारतीय संस्कृति का इतिहास समझने वालों पर केवल दया ही की जा सकती है. महाभारत के युद्ध के साथ( लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व) मूल वैदिक भारतीय संस्कॄति वाली सभ्यता का जब अन्त हो गया तब संसार की कोई भी अन्य जाति, मत, सम्प्रदाय अस्तित्व में आए. इसीलिए अंग्रेजीदां बाईबल के मतानुसार सारी सृष्टि को ५ हजार वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई मान कर लोगों को भरमाने के साथ साथ भारतीय वैदिक संस्कृति व काल को अल्पकालिक ठहराते व नकारते आए हैं. जबकि इस सृष्टि को बने तथा वैदिक सभ्यता को अस्तित्व में आए १अरब ९७ करोड़ से अधिक वर्ष हो चुके. और अब तो स्वयम् उस बाईबली कथन को पाश्चात्य विद्वानों की खोजों ने नकार दिया है. पर हमारे देश में न अपने देश का असल इतिहास लिखने वालों, बताने वालों की बातें पढ़ाई जाती हैं, न उन्हें कोई मान्यता दी जाती रही है. और सारे के सारे तथाकथित बहुपठ (?)होने का दम्भ पालने वाले अंग्रेज़ी जूठन को सिर माथे लिए देश व संस्कृति की कमियाँ व दोष देखते -दिखाते अपने आधुनिक होने का भरम ढोए जाते हैं.
स्वाध्याय में अनभ्यास इन सब के मूल में है. ठीक उसी तरह जैसे कभी बुद्ध के साथ हुआ था. मध्ययुगीन सामाजिक विसंगतियों व सत्य ज्ञान के स्थान पर अधकचरे बोझे को ढोती सामाजिक व्यवस्था के प्रति किसी भी सम्वेदनशील व्यक्ति का विद्रोह न्यायसम्मत है. यही बुद्ध के साथ हुआ. वे विचलित थे व परिवर्तकामी थे. किन्तु देश का दुर्भाग्य यह रहा कि उन्होंने वेद व धर्म के नाम प्रचलित तमाम अधार्मिकता व अवैदिकता को नकारने के लिए स्वयम् वेद व शास्त्र पर श्रम नही किया. जब एक विसंगति के प्रति विद्रोह जागा व व्यक्त हुआ तो तब के तमाम धर्म के ठेकेदारों ने यह कर चुप कराना चाहा कि नहीं - नहीं यह तो धर्म है. और बुद्ध ने कहा यदि यह धर्म है तो मैं इस धर्म को नहीं मानता, तब फिर कहा गया कि नहीं नहीं यह तो वेद में लिखा है, बुद्ध ने कहा -ओह यदि यह वेद में लिखा है तो मैं वेद को भी नहीं मानता. लोगों ने कहा -अरे वेद तो ईश्वरीय ज्ञान है, बुद्ध ने कहा तो मैं ऐसे ईश्वर को भी नहीं मानता. इन सब के बीच यदि बुद्ध स्वयम् वेदों पर श्रम करते तो आज इतिहास ही दूसरा होता. मध्युगीन महाभारतोपरान्त पतनकाल की विसंगतियों को धर्म व वेद का मुलम्मा चढ़ा कर प्रस्तुत करने वाले तथाकथित धार्मिकों ने जितनी हानि की , उस ही तर्ज पर उसे सुधारने व परिवर्तनकामी, सम्वेदनशील व समाजसुधार की वृत्ति वाली विचारधारा वालों के हाथों भी हुई. काश बुद्ध स्वयम् वेदों व इस देश की संस्कृति के अध्ययन पर श्रम करते, काश वे संस्कृत को स्वयम् पढ़कर वेद के नाम पर प्रचलित झूठ का समाहार करते. पर बस, ये सब काश ही है. क्योंकि ऐसा नही हुआ. व बौद्धकाल केवल समस्त संस्कृति,धर्म व शास्त्र का नकार काल ही बन कर रह गया. इसी लिए बौद्ध-दर्शन नास्तिक दर्शन के रूप में ख्यात व स्थापित हुआ.
यह भी साथ ही स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि इस भारत देश में कभी किसी नास्तिक दर्शन के लिए सहानुभूति नहीं रही. परिणामस्वरूप बौद्धदर्शन भी भारत में जन्मने के बावजूद, नृपतियों के प्रश्रय के बावजूद यहाँ टिक या चल नहीं पाया, जितना व जैसे चीन आदि मंगोल देशों में फैला.
बुद्ध सर्वाधिक खिन्न थे पशुहिंसा व बलि आदि की हिंसक वृत्तियों से, इसी लिए उन्होंने अहिंसा को परम धर्म के रूप में मान्यता दिलाने पर सर्वाधिक बल दिया. किन्तु समय व इतिहास साक्षी हैं कि उनके नामलेवा व उस सम्प्रदाय की छतरी तले आने वाले देश ही अनुपात में सर्वाधिक हिंसक मांसाहारभोगी हुए.तो कहाँ क्या हुआ बौद्ध दर्शन?
केवल वैदिक संस्कृति को गाली देने के लिए उसका प्रश्रय लेने वालों ने अपने स्वार्थ के लिए देश के लोगों को वर्ग-विभाजित करने के स्वार्थ में प्रयोग का अस्त्र बना कर उसके नाम पर घात किए हैं. कर रहे हैं. जब तक भारतीय यह कुचाल नहीं समझते तब तक घृणा की ठेकेदारी को कोई नहीं रोक सकता. और वे ठेकेदार ऐसे हैं कि वे यहाँ तक ब्रेनवाश कर चुके हैं कि सच बताने वाले को भी शत्रु प्रमाणित कर वर्ग-दम्भी या कुछ भी और तमगे से टाँक कर अपनी साजिशों को अंजाम देते रहेंगे. और इतिहास की ही भाँति आज भी लोग इनके भ्रम में आकर संस्कृति,शास्त्र व देश की सभ्यता को नकारते रहेंगे......., जब तक कि देश इतना टुकड़े न हो जाए कि जगह जगह स्थानीयता वा क्षेत्रीयता, भाषा, मत, जन्म या किसी अन्य भी चीज पर बँट न जाएँ, सामन्तशाही होकर देश पुन: किसी गर्त में न चला जाए.
कितने भोले हैं हम या सच कहें तो मूर्ख.
---- कविता वाचक्नवी
poonam abbi
Re: [हिन्दी-भारत] Fwd: Re: [hc] Re: HC clears Husain - mahabharatha and draupadi ji's plight - VEDIC KNOWLEDGE & ENGLISH
If Prem Sahajwal ji so believes that Budhh is a better role-model than the vedic rishis, then why did he not follow in the path of his role model? it would have benefitted millions of people। What he does & the way he speaks is the opposite of what Buddh did.
poonam abbi
Re: [हिन्दी-भारत] Re: [hc] Re: HC clears Husain - mahabharatha and draupadi ji's plight
Then why is America enforcing Spanish in its schools? Why is it encouraging students to learn arabic, chinese, even Hindi? Why has the brit govt। started including the principles of Geeta in training their soldiers? If whatever is vedic is just rantings of senile men who were thinkinkg, then can you tell me the miraculous way of doing things without thinking? Well I do see what happens when people speak & do things without thinking, it is there all over the internet & =the news & events of the world are examples enough that what happens when things are done without thinking। The only people who are not required to think are those who are not people, but sheep ---
On Tue, 5/13/08, Prem Sahajwala
From: Prem Sahajwala
Hi dears
pl do not mind my comments. The arguments that Japan progressed without english are too outdated now. In the globalisation era a country should have as many english knowing people as possible and also those who know many other languages. This doesnt mean any loss to our national languages which are many. The English is our mouth to english speaking world and our own languages are for our own communication. When Mulayam Singh was Defence Minister he once went to the Defence HQ and ordered strictly that every thing should be done in Hindi and not even a single sentence should be in English. But the Army generals when they heard this must have felt like turning out this rustic Defence Minister as it was now next to impossible to convert the whole military lingo from English to HIndi. We must now kill the blessing like English just as a form of jingoism or pseudo patriotism but accept English also as an unseparable language from the Indians.
2. The Vedic knowledge need not be revived but should only be kept well published as a part of history. If u think today we can go for Manu smriti and the science of the Vedas you are simply bent upon going back.
Pl forgive my views and consider me a friend.
pcs
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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!