इस सुख को बार-बार जीने की इच्छा हुई
(10th May : The day when the world comes together)
कल एक मित्र ने यह विडियो भेजा। इसे देखना स्वयं में इतना सुखद अनुभव था कि एक तो इस सुख को बार बार जीने की इच्छा हुई जाती थी, दूसरे यह भी कि बुजुर्गों से सुना है - "बाँटने से दुःख कम होता है व सुख बाँटने से बढ़ता है "। तो अब कोई इसमें तीन पाँच की बात ही नहीं रह गयी कि क्यों न अपने इस सुख को द्विगुणित किया जाए।
यों भी ऐसी चीजों को सहेज कर अपने लिए अलग रख लेने की कामना को (यह वीडियो देख कर ) स्वार्थ तो नहीं कहा जा सकता। गुडगाँव की मंजु बंसल जी के सौजन्य से उपलब्ध कराए गए इस विडियो की सराहना व प्रशंसा के शब्द ही बता सकते हैं कि यह प्रयास सभी को कितना रुचता है -
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