आदरणीय भाई प्रेमजी, मैं आप के इस चिंतन से सहम्त हूं कि हमे जो कुछ भी आज के संदर्भ में अनुचित लगता है उसका परिमार्जन करें वर्ना हमारा समाज ठहरे पानी की तरह काई बन कर रह जाएगा। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि हम हमारी संस्कृति को ही नकार दें और पाश्चात्य चमक के पीछे दौडते फिरें।
रही बात नारी की स्थिति की, तो क्या हमारी माताएं हमें वो सब नहीं दिया जिससे हम अच्छे नागरिक बन सकें। अंग्रेज़ी पढ़ कर ही क्या हम शिक्षित कहलाएंगे। क्या हमारी माताओं ने वो नैतिक पाठ नहीं पढाईं जिससे हम सज्जन कहलाते हैं। आज की पाश्चात्य ढंग की कितनी माताएं यह पाठ पढा रही हैं\
आप ने वर्णाश्रम का प्रश्न उठाया है। क्या आज के संदर्भ में वह तर्कहीन बन गया है। यदि हां तो फिर आज के ओल्ड एज होम क्या हैं? अंध विश्वास को नकारना अलग है और अपनी संस्कृति को नकारना अलग। आशा है कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। आखीर समुद्र मंथन से ही अमृत प्राप्त होता है।
Prem Sahajwala
मित्र मौली प्रसाद जी को सादर नमस्कार पाश्चात्य संस्कृति ने ही हमारी नारी को शिक्षित किया वरना नारी घर में ही रह जाती व जैसा एक बार किसी शंकराचार्य जी महाराज ने कहा था, सती प्रथा भी वेदों के अनुकूल ही मानी जाती. पाश्चात्य संस्कृति ने विद्वा विवाह जो इश्वर चंद्र विद्या सागर ने ब्रिटिश की मदद से ही कानून पारित कर के शरू करवाया हमारे समाज में मान्यता पा सका तथा पाश्चात्य सभ्यता के आधार पर ही बाबा साहेब हिंदू कोड बिल लाये जिसमें नारी को कम से कम शराबी व जुआरी पति से तलाक लेने की सुविधा प्राप्त हुई. ऐसी अनेक अनेक बातें हैं तथा संक्षेप में कहना हो तो इतना कहना काफ़ी है कि आज जहाँ जहाँ पश्चिमी शिक्षा नहीं पहुँची वहाँ लड़कियां प्रेम करने के लिए जिंदा जलाई जाती हैं या एक ही गोत्र में शादी करने वाले जोडों को या तो जला कर नालों में फ़ेंक दिया जाता है या उन्हें भाई बहन करार दिया जाता है. इसलिए पश्चिमी सभ्यता से परहेज़ क्यों एंड प्राचीन गली सड़ी प्रथाओं से चिपके रहने का मोह क्यों. वैदिक संस्कृति में तो साठ वर्ष कि आयु में घर छोड़ कर जंगल में रहना पड़ता था तथा बीबी को बच्चों के भरोसे छोड़ना पड़ता था. सत्तर वर्ष कि आयु में कुटिया छोड़ भिक्षुक बन के सात घरों से भिक्षा मांग कर या तो खंडहर में रहना पड़ता था या किसी मन्दिर में. ऐसी विरासत का हम क्या करें मौली प्रसाद जी. मेरी एक ग़ज़ल का एक शेर है जो आप पर बखूबी लागू होता है -
उन्हें गुरूर है इस मुल्क कि विरासत पर मुझे है फिक्र अभी कल मिली वसीयत की.
धन्यवाद - प्रेम सहजवाला
mouli pershad cmpershad@yahoo।com
प्रकृति को समझना इतना सहज नहीं है सहजवाला जी। आप तो जानते ही होंगे कि किस प्रकार हमारी सोच ने ही आज की आधुनिक चीज़ों के अविष्कार के प्रथम पथ बने हैं। जब कोई अनुसंधान होता है तो पहले पहल त्रुटियां तो होती है। इसलिए हम यह नहीं कहते कि हमारे वैदिक चिंतक जो कुछ कह गए, वह पूरा का पूरा सही है परंतु यह भी सहीं है कि उनका चिंतन ही आधुनिक जीवन का पथ प्रदर्शक है। क्या आपने चंद्रकांता पढते समय यह अनुमान लगाया था कि तिलिस्म के बक्सों में नाचती गाती गुडि़या सच में सम्भव हो सकती हैं- परंतु आज आपके घर में आप दिन-रात बक्से में बैठी गुडिया को देख रहे हैं। वैसे ही पष्पक विमान और आग उगलते बाण कपोल कल्पना ही तो थे!
रही बात आप के बुद्ध का अनुसरण करने की - तो हर व्यक्ति को यह छूट है ही। आखिर वो भी तो एक हिंदू ही थे।
Prem Sahajwala pc_sahajwala2005@yahoo।com
Dear menon saheb
The vedic knowledge or science as u may call it was based merely on guess work and philosophy in which even the gravity and gravitation were there because the mother earth possessed some divine power. The Vedic scientist (u may love to call them so) came to conclusion by mere meditation while today's science is based on experiment observation hypothesis and theory and law. Aristotle had said -
Everything on the earth can be known by mere thinking.
For everything there is a supreme cause.
The first of these concepts is misplaced as no truth of the world has been known by mere thinking but all the progress of the world is based on experimenting and verifying.
I would ask you a simple question:
Which divine power is there to help the blast victims of Jaipur? So many people die in droughts floods earthquakes and cyclones (see the Burma). Divine is therefore some luxury of those happy persons who live peaceful individualistic life. Divine is our own halucination. I believe more in the Buddha who did not believe that our lives are controlled by some divine power or that what we do is a result of the karma in our previous births.
With regards
pcsvavamenon
Dear Prem Sahajwala-ji,
Namasthe !!!
Did I say in mail not to learn english ? Please read the mail in full and try to understand the message / idea / concept in the mail. Your mail is an emotional response without even fully understanding the gist of what I wrote.
You say that Vedic knowledge should be kept well published as part of HISTORY. My dear friend, in fact VEDIC KNOWLEDGE is THE TOTAL KNOWLEDGE THAT ONE HAS TO ACQUIRE THROUGH OUR LIVES....... In our traditions, there is AVIDYA, VIDYA, PARA VIDYA AND APARA VIDYA..... With your english education (especially the "USA/UK accented angrezi), we acquire AVIDYA. VIDYA is knowledge of ATMA, PARA VIDYA is the knowledge of your own SELF. APARA VIDYA is the knowledge of BRAHMAM / BRAHMAN / ISHWAR. In english, there is only knowledge whereas in our traditions, the above are the four LEVELS OF KNOWLEDGE..... All our 1400 plus authoritative scriptures teach us to connect and keep us connected to THE DIVINE.
Poonamji, as regards patenting, please visit www.amiahindu.com and see how american senate library (Congress library) has already patented all the sanatana dharma scriptures and all the vedic knowledge and also gods and godesses.....
for Premji and the likes, our vedic knowledge is history.... for america and europe, they are trying to patent them so that after 50 - 100 years, we have to go to america and europe to learn our scriptures.......
With best regards,
vm
Re: [हिन्दी-भारत] Re: [hc] Re: HC clears Husain - mahabharatha and draupadi ji's plight
Prem Sahajwala
मित्र मौली प्रसाद जी को सादर नमस्कार
पाश्चात्य संस्कृति ने ही हमारी नारी को शिक्षित किया वरना नारी घर में ही रह जाती व जैसा एक बार किसी शंकराचार्य जी महाराज ने कहा था, सती प्रथा भी वेदों के अनुकूल ही मानी जाती. पाश्चात्य संस्कृति ने विद्वा विवाह जो इश्वर चंद्र विद्या सागर ने ब्रिटिश की मदद से ही कानून पारित कर के शरू करवाया हमारे समाज में मान्यता पा सका तथा पाश्चात्य सभ्यता के आधार पर ही बाबा साहेब हिंदू कोड बिल लाये जिसमें नारी को कम से कम शराबी व जुआरी पति से तलाक लेने की सुविधा प्राप्त हुई. ऐसी अनेक अनेक बातें हैं तथा संक्षेप में कहना हो तो इतना कहना काफ़ी है कि आज जहाँ जहाँ पश्चिमी शिक्षा नहीं पहुँची वहाँ लड़कियां प्रेम करने के लिए जिंदा जलाई जाती हैं या एक ही गोत्र में शादी करने वाले जोडों को या तो जला कर नालों में फ़ेंक दिया जाता है या उन्हें भाई बहन करार दिया जाता है. इसलिए पश्चिमी सभ्यता से परहेज़ क्यों एंड प्राचीन गली सड़ी प्रथाओं से चिपके रहने का मोह क्यों. वैदिक संस्कृति में तो साठ वर्ष कि आयु में घर छोड़ कर जंगल में रहना पड़ता था तथा बीबी को बच्चों के भरोसे छोड़ना पड़ता था. सत्तर वर्ष कि आयु में कुटिया छोड़ भिक्षुक बन के सात घरों से भिक्षा मांग कर या तो खंडहर में रहना पड़ता था या किसी मन्दिर में. ऐसी विरासत का हम क्या करें मौली प्रसाद जी. मेरी एक ग़ज़ल का एक शेर है जो आप पर बखूबी लागू होता है -
उन्हें गुरूर है इस मुल्क कि विरासत पर
मुझे है फिक्र अभी कल मिली वसीयत की.
धन्यवाद - प्रेम सहजवाला
mouli pershad
आदरणीय प्रेम सहजवाला जी ने अपने चिंतन में कुछ गडमड कर दिया लगता है। यह सही कहा है कि हमें जितनी अधिक भाषाओं का ज्ञान होगा हमें उसका अधिक लाभ मिलेगा। अंग्रेज़ी का लाभ तो हमें मिल ही रहा है - जो इस बात को नकारते हैं उन्हें अज्ञानी ही कहेंगे। रही बात संस्कृति और संस्कार की , वह तो हमारी धरोहर है जिसे छोड़ना हमारी जडों से बिछडने जैसा है। इस लिए यह कहना कि हमारी वैदिक संस्कृति पुरानी पड़ गई है और उसके चलते हम पिछड़ जाएंगे, यह न केवल मिराधार है बल्कि अज्ञानतापूर्ण भी है। आज हम अपनी संस्कृति को छोड कर पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड में लगे हुए हैं जो हमे किस ओर ले जा रही है उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
जब हम अपना छोड कर दूसरे की ओर भागते हैं तो बहुगुणा की परिस्थिति हो जाती है। [आप को अप्रासंगिक लग रहा होगा!}. जब बहुगुणा जी ने अपनी पार्टी का विलय इंदिराजी की कांग्रेस में कर दिया और फिर भी चुनाव हार गए थे तो प्रसिद्ध व्यग्यकार शैल चतुर्वेदी ने कहा था-
गुणा करते करते भाग हो गए
साडी की चक्कर में कुर्ते पर दाग हो गए।
मैंने यह प्रसंग माहौल को हलका करने के लिए लिखा है ताकि यदि प्रेम जी अपना प्रेम बनाए रखें
अच्छा एवं सार्थक विमर्श चल रहा है, शुभकामनाऐं.
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